वो ख्वाबों के दिन
( पिछले 4 अंकों में आपने पढ़ा : मन में अनेक अरमान लिए एक गांव से शहर पढ़ने आये एक युवा के दिल की धड़कन बढ़ा देती है , एक दिन अचानक , एक बंगले की पहली मंज़िल की खिड़की . वह देखता है वहां पर एक नाज़ुक व बेहद खूबसूरत युवती जोकि उसकी कल्पना से भी ज़्यादा सुंदर होती है . फिर एक दिन उसे महसूस होता है कि उस खिड़की के सैंकड़ों चक्कर बिलकुल बेअसर नहीं हैं . उस युवती के इशारों इशारों में जवाब और आगे बातचीत करने की पहल अब कैसा स्वरूप लेती है . पढ़िये, आगे की दास्तान )
एक प्रेम कहानी अधूरी सी ….
(पिछले रविवार से आगे की दास्तान – 5)
इतने में खुशबू की बारिश करते वह मेरे पास से गुज़री, वह अपनी भाभी के साथ मॉर्निंग वॉक से लौट रही थी . जानबूझकर वह थोड़े पीछे रह गयी थी . मुझे मुस्कुराकर धीरे से , गुड मॉर्निंग कहा . और मुझे एक कागज़ की पर्ची थमाकर भाग खड़ी हुई. उस पर्ची में एक फोन नंबर लिखा था और लिखा था ‘आज ३ बजे ‘. मैं तो दीवाना था ही अब पागल हो चुका था .
उस दिन मैं कॉलेज ही नहीं गया और अपने रूम पार्टनर को तबियत का बहाना बना दिया. उसके जाने के बाद, मैं सपनों की दुनिया में खो गया. सोचने लगा कैसे मैं अपना इंट्रो दूंगा और कैसे उसे इम्प्रेस करूंगा. जब कन्फ्यूज़ हो गया तो कागज़ कलम लेकर अनेक शेर और बातचीत के मुद्दे तैयार करने लगा. इसी उधेड़बुन में लगभग डेढ़ बज गए , इतने में ना जाने मुझे कैसे नींद आ गयी .
जब मिलेंगे , तब मिलेंगे आप
जाने क्या होगा जब मिलेंगे आप
क्या दिल के फूल खिलेंगे आज
पहली बार फोन पर मिलेंगे आप
जब नींद खुली तो देखता हूं पौने तीन बज गए . तीर की तरह भागते हुए मैं टेलीफोन बूथ पहुंचा . ठीक तीन बजे मैंने फोन लगाया , पूरी घंटी गयी किसी ने फोन नहीं उठाया. मेरा दिल कुशंकाओं से भर गया. क्या उसके घर पर पता चल गया ? क्या घर पर और कोई आ गया ? या उसने अपना इरादा बदल दिया ? पांच मिनट रूककर मैंने फिर से फोन लगाया . एक मीठी सी आवाज़ आयी , ‘जी बोलिये ‘ . मैंने कहा कि मैं वही हूं जो रोज़ सुबह चौक पर खड़ा रहता हूं . वह हंसते हुए बोली, इसीलिए तो फोन नंबर दिया था, बताइये क्यों खड़े होते हैं वहां ? क्या यह ठीक बात है ? मैं घबरा सा गया , पर मैं बोला , मैं आपसे मिलना चाहता हूं . वही मीठी आवाज़, क्यों ? मैंने कहा, मैं आपसे दोस्ती करना चाहता हूं . उसका मीठा सवाल, किसलिए ? मुझमें थोड़ा सा आत्म विश्वास बढ़ा तो मैंने एक शेर ठोक दिया ,
आपसे बात करना फितरत है हमारी
आप खुश रहें यही चाहत है हमारी
आप देखें या ना देखें, तरफ हमारी
आपके दर पर आना आदत है हमारी
वह खनकती हंसी के साथ फोन पर बोली, लगता है , बेहद तैयारी से आये हैं जनाब ? पर सच सच बताइये , आपका इरादा क्या है ? रोज़ इस तरह से खड़े होकर मेरे घर की तरफ तांक झांक करना क्या ठीक बात है ? क्या आप मुझे बदनाम करना चाहते हैं ? क्या आपको अच्छा लगेगा जब जब दूसरे लड़के भी इसी तरह से हमारी प्राइवेसी खराब करेंगे ? मेरा फ्यूज़ उड़ गया. फिर एक मिनट के लिये फोन पर शान्ति छा गयी . समय जैसे रुक सा गया था . फोन पर केवल एक दूसरे की सांसों की आवाज़ सुनाई दे रही थी शायद साथ ही साथ दिल के ज़ोर ज़ोर से धड़कने की भी . मैंने फिर अपनी आवाज़ में मिठास लाते हुए जवाब दिया
इस जहां में बस अब इतनी सी चाहत है मेरी
भले ही एकतरफा हो, तुमसे ज़िंदा रहे दोस्ती मेरी
फिर से मुझे एक इठलाती हुई मीठी हंसी , सुनाई दी . तो जनाब केवल एकतरफा दोस्ती से भी खुश हैं. मेरे इशारों , मेरी पहल की कोई कीमत नहीं है . तब तो मुझे अब फोन रख देना चाहिये . और रोज़ सुबह अलार्म से भी पहले खुलने वाली नींद को वापस अपने आगोश में बुलाना चाहिये . कम से कम , रोज़ अल सुबह तैयार होकर किसी को अपने नाज़ और नखरे दिखाने की मेहनत तो नहीं करनी पड़ेगी . मुझे समझ आ गया कि वह केवल खूबसूरत ही नहीं साहित्य में अभिरुचि रखने वाली है . फिर चिहुक कर बोली , सच में , आप बहुत मेहनती , ईमानदार , निष्ठावान , अनुशासित व दृढ़ निश्चयी हैं वर्ना महीनों से मेरी एक झलक के लिये खड़े नहीं रहते . शायद इसीलिये मैंने कम से कम एक बार आपसे बात करने का इरादा किया इसके साथ ही उसने एक खूबसूरत शायरी का मिसाइल दाग ही दिया .
हुस्न के समझने को उम्र चाहिए जनाब
दो घड़ी की चाहत में लड़कियां नहीं खुलतीं
वह फिर से बोली , मेरी इस बातचीत को आप ना दोस्ती समझें और प्यार समझने की तो गलती ही मत करना . मैं तो उसकी बातों में इतना खो गया था कि मेरी सोचने समझने की ताक़त मेरे से मीलों दूर भाग गई थी .
( अगले हफ्ते आगे का किस्सा )
इंजी मधुर चितलांग्या , संपादक ,
दैनिक पूरब टाइम्स