वो ख्वाबों के दिन
( पिछले 17 अंकों में आपने पढ़ा : उस बंगले की पहली मंज़िल की खिड़की पर अचानक दीदार देने वाली उस नाज़ुक व बेहद खूबसूरत युवती के पीछे महीनों मेहनत करने के बाद , इशारों इशारों में उसके जवाब और आगे मस्ती से भरी फोन पर शुरू हो चुकी बातचीत ने एक खूबसूरत आकार लेना शुरू कर दिया . आगे पढें , प्यार की पहली मुलाकात पर शर्त के कारण मिले, दिल को सुकून और दर्द को उकेरते हुए , पहले प्रेम पत्र में दिल के जज़्बात और उसे जोखिम उठा कर सही हाथों में देने के बाद , आगे का किस्सा )
एक प्रेम कहानी अधूरी सी ….
(पिछले रविवार से आगे की दास्तान – 18)
मैंने कहा , कौन कमबख्त तुमसे नज़रें मिलाना चाहता है , मैं तो तुम्हारी अदाओं के सैलाब में बरबाद हो जाना चाहता हूं . बस , एक बार मुझे फिर से गाली के साथ संबोधित करो . तुम फिर ज़ोर से हंसी और बोली, दुष्ट दिलचोर आशिक . और लाइन कट गई . अब मुझमे इश्क का सुरूर छाने लगा . आज रात से हसीन दिलरुबा का कई घंटे दीदार का मौका जो मिलना था .
तेरे दीदार को,तरसती आँखे,
वक़्त- बेवक़्त,बरसती आँखे,
कैसी पागल सी,ये मेरी आँखे,
कभी रोती,कभी हँसती आँखे,
नवरात्रि में गरबा वाली रातें , हम होस्टल वासियों के लिये सबसे बड़े नैनसुख का त्यौहार होता था . वैसे हमें इंदौर के जीएसआईटीएस इंजीनियरिंग कॉलेज में होने का गुरूर होता था पर यही हमारे लिये परेशानी का सबब बन जाता था . कोई भी लड़की , अकेले में किसी किसी लड़के को भाव दे देती थी पर जैसे ही ग्रुप में देखती तो उसका पत्ता परमानेंटली कट हो जाता था . खासकर यह बात वल्लभ नगर , विमल विनय बिल्डिंग , सीता बिल्डिंग , फिल्म कॉलोनी, लाड कॉलोनी , रेस कोर्स रोड , राणी सती मंदिर इत्यादि क्षेत्र के लिये तो पूर्णतः लागू होती थी . ऐसे में जिसका भी थोड़ा भी चक्कर चल जाता था वह अपने को अन्य लड़कों के ग्रुप से अलग कर लेता था. वैसे ज़्यादातर इश्व-विश्क के मामले अंत में एक तरफा ही साबित होते थे . गरबा के लिये सीनियर्स , बैच मेट से ज्यूनियर्स तक बड़े उत्साहित होते थे. रेस कोर्स व विमल विनय के गरबे में बिना पहचान , एंट्री नहीं होती थी पर वल्लभ नगर में सभी देखने जा पाते थे . वहां की अच्छे घरों की लड़कियां भी सज-धज कर पहले दो दिन तक वहीं गरबा करती थीं और आखरी के दो-तीन दिन रेस कोर्स रोड या अन्य जगह गरबा करने चली जाती थीं . और हम साथी-गण मन मसोस कर , उन्हीं आंटियों , अंकलों , दीदियों व भैयाओं को गरबा खेलते देखते, जिनसे हमें सच्ची खुशी नहीं मिल पाती थी . लेकिन अब तो मेरे लिये खुशियों का खज़ाना आने वाला था , जिसको मैं अपनी आंखों में भर कर रख सकता था .
खुली आंखों से सपना झांकता है
वो सोया है या कुछ कुछ जागता है
तेरी चाहत के भीगे जंगलों में
मेरा तन मोर बन कर जागता है
रात तक, हममें से ज़्यादातर दोस्त अपना जलवा दिखाने के लिये अपने सबसे अच्छे कपड़ों में , एकदम बेहतरीन तरीक़े से तैयार हो गये थे . जवां हसीनाओं को घायल करने का मुगालता पालना, हम सबको खुशमिजाज़ बना देता था . सब यह मानते थे कि हमारी पसंद की हमें नहीं देखेगी तो कोई बात नहीं पर कोई तो हमें देखेगी . मैंने सावधानी पूर्वक अपने दबंग स्मार्ट साथियों के ग्रुप को टालकर , ऐसे ग्रुप के साथ खड़ा होना तय किया जिसको कोई भी लड़की नज़र भर कर भी नहीं देखती होगी, जो केवल गरबे का आनंद लेने जाते थे. गरबा शुरू हुए कुछ वक़्त बीत गया था , मेरी आंखें उसे ढूंढती रही पर वो नहीं दिखी . निराश होकर मैं अनमना सा डांस करने वालों की महारथ और गरबा स्टेप्स देखने लगा . उन गरबा करने वालों में भी अनेक लड़के बेहद स्मार्ट व बेहतरीन डांसर थे , उन्हें देखकर मैं न जाने क्यों आशंकित होने लगा था .
आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो
साया कोई लहराए तो लगता है कि तुम हो
तभी देखता हूं बिजली गिराते हुए , एक खूबसूरत युवतियों का झुंड गरबे में शामिल हुआ . इस ग्रुप में तुम भी थी . एकदम चटक-मटक तैयार हुए . मैंने देखा , हमारे दोस्त अपनी अपनी पसंद को देखने में व्यस्त हो गये . मैं भी तुम में खो गया था . हरे रंग के घाघरे व उससे मैचिंग का सब कुछ पहने तुम किसी हिरणी की तरह गरबा कर रही थी . पर तुम्हारी निगाह कुछ ढूंढ रही थी , शायद मुझे . फिर तुम्हारी नज़र मुझ पर पड़ी . नज़र मिली , चमक बढ़ी , उसके साथ लचक और मुस्कुराहट भी . तुम बेहतरीन ढंग से डांस करते हुए अन्य खूबसूरत लड़कियों के अलावा स्मार्ट लड़कों से भी हंस हंस कर बात कर रही थी . मेरा दिल बैठने लगा , मैंने खुद को समझाया कि किस से उसने खुद होकर लव लेटर मांगा होगा और किस ने उसे मेरी तरह अपने प्रेम पत्र में दिल निकाल कर दे दिया होगा ? फिर वह अपनी सहेलियों के साथ बाहर निकल गई शायद दूसरी जगह गरबा करने . मैं भी अपने दोस्तों को छोड़कर होस्टल की तरफ चल पड़ा . अब अपनी कल्पना में तुम्हारे खूबसूरत वजूद को निहारने व उससे मीठी मीठी बातें करने .
( अगले हफ्ते आगे का किस्सा )
इंजी. मधुर चितलांग्या , संपादक ,
दैनिक पूरब टाइम्स