वो ख्वाबों के दिन
( पिछले 18 अंकों में आपने पढ़ा : उस बंगले की पहली मंज़िल की खिड़की पर अचानक दीदार देने वाली उस नाज़ुक व बेहद खूबसूरत युवती के पीछे महीनों मेहनत करने के बाद , इशारों इशारों में उसके जवाब और आगे मस्ती से भरी फोन पर शुरू हो चुकी बातचीत ने एक खूबसूरत आकार लेना शुरू कर दिया था . प्यार की पहली मुलाकात पर शर्त के कारण मिले, दिल को सुकून और दर्द को उकेरते हुए , पहले प्रेम पत्र में दिल के जज़्बात और उसे जोखिम उठा कर सही हाथों में पहुंचा दिया . फिर यह सिलसिला चल पड़ रात में गरबा की आंख मिचोली तक . अब आगे का किस्सा )
एक प्रेम कहानी अधूरी सी ….
(पिछले रविवार से आगे की दास्तान – 19)
मैंने खुद को समझाया कि किस से उसने खुद होकर लव लेटर मांगा होगा और किसने उसे मेरी तरह अपने प्रेम पत्र में दिल निकाल कर दे दिया होगा ? फिर वह अपनी सहेलियों के साथ बाहर निकल गई शायद दूसरी जगह गरबा करने . मैं भी अपने दोस्तों को छोड़कर होस्टल की तरफ चल पड़ा , अपनी कल्पना में तुम्हारे खूबसूरत वजूद को निहारने व उससे मीठी मीठी बातें करने .
क्या नज़ाक़त है कि उनके होंठ नीले पड़ गये
हमने तो बस , ख्वाब में चूमा था उनकी तस्वीर को
मैं कमरे में आकर अपने बिस्तर पर लेटकर तुम्हारी हर अदा के बारे में सोच ही रहा था तो मेरे अनेक दोस्त आ गये , अलग अलग गरबा देख कर . अब हंसी ठिठोली के बाद एक एक खूबसूरत लड़की की अदाओं पर बात करते हुए , उस हरी वाली यानि तुम पर भी बात आ गई . मेरे कान खड़े हो गये . एक ने कहा कि वो तो आज कहर बरपा रही थी लेकिन अपने मोहल्ले के लड़कों के साथ हंस हंसकर हमें जला रही थी . एक बार हम में से किसी को मुस्कुरा कर देख लेती तो उसका क्या जाता था ? दूसरा बोला , सच में अपने उस दोस्त के लिये हम सब अपना प्यार कुर्बान कर देते . इतने में तीसरा साथी बोला , और उसे देखा क्या ? जिसके लिये हमारे एक सीनियर व हमारी बैच के एक लड़के के बीच पिछले साल से कम्पीटीशन चल रहा है . वह तो उन दोनो भर को छोड़कर, हम सब की तरफ देख कर हंस रही थी . सब ठहाका लगाकर हंस पड़े . फिर अन्य की बातें चलने लगी पर मुझे अब सुनाई देना बंद हो चुका था . मैं जान बूझकर आंखें बंद कर केवल तुमको सोचते रहा.
मैंने मुद्दत से कोई ख्वाब नहीं देखा है
हाथ रख दे मेरी आंख पे कि नींद आ जाये
अगली सुबह मैं उसकी एक झलक पाने के लिये फिर उसी खिड़की की तरफ चल पड़ा . मैंने देखा कि वहां कोई और खड़ा होकर झांक रहा है . मैं नज़र व जान बचा कर भाग खड़ा हुआ . दोपहर को भी, मैंने किसी और की आवाज़ फोन पर सुनकर तुरंत फोन काट दिया . रात को गरबे में फिर दीदार ए यार हुए . मुझे कभी कभी कनखियों से देख लेती पर बेहद सावधानी से, चेहरे पर बिना किसी भाव के साथ . कभी मुझे लगता इतनी खूबसूरती से तैयार होना, अदा व लचक के साथ गरबा करना केवल मेरे लिये है तो कभी उसे दूसरों के साथ हंसते हुए देख कर जल कर खाक हो जाता था. और सबसे ज़्यादा परेशानी होती थी , जब थोड़ी देर के बाद वापस चली जाती . तीसरे दिन मेरे सब्र का बांध टूटने लगा तो मैं भी कुरता और चुड़ीदार में , जैसे गरबा खेलने को तैयार होकर , उस जगह खड़ा हो गया, जहां से कार से उतरकर सभी लोग गरबे की तरफ आते थे. मैंने देखा, आज भी बिजली गिराते पीले गुलाबी ड्रेस कॉम्बिनेशन में तुम अपनी सहेलियों के साथ गरबे के लिये आ रही हो . मेरी नज़र मिलती उसके पहले मैंने सुना , “हाय , क्या आप यहां आज गरबा करने आए हैं ? आज इसके कहने पर थोड़ी देर के लिये यहां आये हैं . हम सभी रोज़ रेस कोर्स में गरबा करने जाते हैं “. मैंने देखा , वह अन्नू थी , तुम्हारी खास सहेली . मैंने भी हाय किया . तुम्हारी तरफ देखा . तुमने मुझे नमस्ते किया और दूसरी तरफ देखने लगी . तुम्हारे चेहरे पर शरारती मुस्कान थी. अब अन्नू एक मिनट रुक कर बोली , आप भी रेस कोर्स के गरबे में आइये ना ? मुझे पता था कि वहां बिना पास व पहचान के एंट्री नहीं थी पर उसे मेरे रिश्तेदारों की , पहुंच की, जानकारी थी शायद इसलिये वह खटाक से बोल उठी . अब मैंने , सिर झुकाये , तुम्हारे चेहरे पर एक मीठी मुस्कान थी . अच्छा , वह थोड़ी देर के लिये यहां आना केवल मुझे अपने जलवे के दीदार कराने के लिये था , साथ ही मुझे भी कनखियों से देख घायल करने के लिये भी .
हया से सर झुका लेना अदा से मुस्कुरा देना
हसीनों को भी कितना सहज है बिजली गिरा देना
मैंने कहा , ठीक है अन्नू , मैं वहां कल से आखरी दो दिन ज़रूर आउंगा . आज थोड़ी देर बाद मुझे अपने दोस्तों के साथ कहीं और जाना है . बाय करते हुए, वे सभी परियां गरबा खेलने चल पड़ी और मैं दर्शक दीर्घा में . जहां से थोड़ी देर बाद मैं निकल पड़ा क्योंकि अन्नू मेरे करीब आकर मुस्कुराती थी और आंख के इशारे से गरबे में शामिल होने का जैसे निमंत्रण देती थी . मेरे दोस्तों का पूरा ध्यान मुझ पर आकर अटकने लगा था , इससे पहले कोई भी किसी तरह का कमेंट करता मैं खिसक लिया . मुझे अब अगले दिनों के लिये रेस कोर्स के गरबे के ,पास का, जुगाड़ भी करना था जोकि होस्टल वालों को मिलना बेहद मुश्किल होता था . गुजराती परिवारों के अलावा केवल कमेटी के पहचान वाले बाहरी परिवारों को मिलता था .
( अगले हफ्ते आगे का किस्सा )
इंजी. मधुर चितलांग्या , संपादक ,
दैनिक पूरब टाइम्स