वो ख्वाबों के दिन
( पिछले 15 अंकों में आपने पढ़ा : उस बंगले की पहली मंज़िल की खिड़की पर अचानक दीदार देने वाली उस नाज़ुक व बेहद खूबसूरत युवती के पीछे महीनों मेहनत करने के बाद , इशारों इशारों में उसके जवाब और आगे मस्ती से भरी फोन पर शुरू हो चुकी बातचीत ने एक खूबसूरत आकार लेना शुरू कर दिया . आगे पढें , प्यार की पहली मुलाकात पर शर्त के कारण मिले, दिल को सुकून और दर्द को उकेरते हुए , पहले प्रेम पत्र में दिल के जज़्बात और आगे का किस्सा )
एक प्रेम कहानी अधूरी सी ….
(पिछले रविवार से आगे की दास्तान – 16 )
अब मैं यह सोचने लगा कि किस तरह , इस खत को उस तक पहुंचाया जाये ताकि रोमांच बना रहे . क्या फिल्मी स्टाइल में पत्थर में बांधकर , खिड़की के भीतर फेंक दूं ? पर सोचा कि दूसरी मंज़िल में यदि वह पत्थर निशाने पर नहीं बैठा तो पूरी मेहनत बेकार जायेगी . वैसे नाम सही ना होने की वजह से पकड़ाने पर ना बदनामी और ना ही पिटने का डर था इसलिये मैं हर तरह की रिस्क लेने तैयार था . बहुत उत्साहित हो रहा था मैं क्योंकि मेरी इस प्यार की पहली पाती का जवाब भी मुझे मिलने वाला था .
कल इक ख़त लिखा था मैंने , लिखते लिखते आंसू आए
झट पहुंचा दूं उन हाथों में, पढ़कर वो भावुक हो जाए
हमारे प्यार की नैया चले, हर पल बेझिझक बढ़ती जाए
जबभी मिलूं उनसे अकेले, आकर वो गले लग जाए
अलसुबह मैं फिर चल पड़ा अपनी, उस मंज़िल , उस दिलकश खिड़की की तरफ . आज मुझे ‘ मलिका ‘ को अपना पहला प्रेम पत्र पहुंचाना था . मेरा दिल बेधड़क होकर धड़क रहा था क्योंकि चिट्ठी पहुंचाने का तरीक़ा मैं बेहद रोमांचक बनाना चाहता था . आज वह खिड़की बंद थी तो, मेरा दिल कहने लगा ऐसा तो हो ही नहीं सकता है कि इतने स्पेशल लमहे का वह इंतज़ार नहीं करे . एकटक उस खिड़की को देखते हुए पता नहीं क्यों मेरी आंखों में आंसूं आने लगे . मैने अपना मुंह दूसरी ओर फेर लिया .
इतने में खुशबू का एक झोंका मेरे पास से निकला और साथ ही खिलखिलाहट . पलट कर देखता हूं एक से एक खूबसूरत लड़कियों के घिरी , मलिका , सुबह की सैर को निकल गई थी . वे कुछ इस तरह से निकलीं कि जैसे उन्होंने मुझे देखा ही नहीं हो . मुझे ऐसा लगा कि यह मलिका की ट्रिक थी मुझे परेशान करने की . मैं भी झट से अपने जूते ठीक करने बैठ गया , उसने बिलकुल पलट कर नहीं देखा . अब मैं कंफ्यूज़ होने लगा कि सचमुच उसने मुझे देखा ही नहीं या वह मेरे इस चिट्ठी पहुंचाने के रोमांच को बढ़ा रही है .
हुस्न को इश्क़ में भिगो देने में वक़्त तो लगता है
दिल की बात बयां करने में वक़्त तो लगता है
अब मैं भी उसके इस अन्दाज़ को चैलेंज मानते हुए , जॉगिंग करते हुए , उन तितलियों को पीछे छोड़ते हुए आगे निकल गया . आंख के कोने से मैंने दिखा कि उसके चेहरे पर शरारती मुस्कान आ गई था . अगले चौक के किनारे खड़ा हो गया और जानबूझ कर हांफते हुए सीधे उन लोगों की तरफ देखने लगा . दूसरी लड़कियां मेरी इस दबंगाई से हैरान थीं . करीब आते ही मैंने तुम्हारी तरफ देखकर , सीधे ’ हाय ‘ कहा . ‘ पहचाना नहीं , उस दिन आप लोगों को एक फिल्डर की ज़रूरत थी , तब मुझ अनजान को भी अपने साथ क्रिकेट खेलने रख लिया . अब पहचान हो गई है तो फिर अनजान क्यों बन रही हैं ? तुम जानबूझकर थोड़ा सा कड़क होते हुए बोली , ‘ हाय ‘ . हम लोग मॉर्निंग वॉक पर निकले हैं , आपको कोई काम हो तो बताइये .
अब मैं उनके साथ चलता हुआ , सबकी तरफ देखते हुए बोला, लगता है कि आप लोग आज पहली बार सुबह सैर के लिये निकले हैं , इसलिये सीधे रीगल चौराहे की तरफ जा रहे हैं वर्ना बाल विनय मंदिर के सामने से होते हुए , जीएसआटीएस से घूमकर राणी सती मंदिर होते हुए वापस लौट जाते तो ट्रैफिक बहुत कम मिलता . अब तुमने हंसते हुए जवाब दिया , और तुम्हारी तरह लड़के बहुत ज़्यादा मिलते . तुम्हारी सभी सहेलियां भी खिलखिला उठीं. फिर एक सहेली बोली , आप अब अपने रास्ते पर जा सकते हैं . उनमें से दूसरी सहेली मेरी तरफ ध्यान से देख रही थी . मुझे लगा , हम कहीं मिले हैं . फिर याद आया कि मेरी एक आंटी के यहां पार्टी में मिले थे . वो सबसे बोली , इन्हें मैं पहचानती हूं . इनसे कोई डरने की बात नहीं है . अब मैं बोल पड़ा , तो क्या आप लोग लड़कों से डरती हैं . तो तीसरी सहेली बोली , हम उनसे कम नहीं हैं . मैं बोला, तो फिर रेस लगाते हैं . सचमुच , सब दौड़ने लगे . मैं जानबूझकर फिसल गया , तुम तुरंत मेरे पास आई और अपना हाथ दिया . और मैंने अपना काम कर दिया . उस प्रेम पत्र को तुम्हारे हाथ में दे दिया . घबराकर तुमने अपनी मुट्ठी बंद कर ली .
( अगले हफ्ते आगे का किस्सा )
इंजी. मधुर चितलांग्या , संपादक ,
दैनिक पूरब टाइम्स