महाराष्ट्र में चुनाव एक ऐसा अखाड़ा बन गया है, जिसमें हर पार्टी खुद को पहलवान समझ रही है. छह पहलवानों की जंग है यहां. और सारे गामा पहलवान हैं. मजाल है कोई सपने में भी हार की बात सोच रहा हो.
पहला पहलवान बीजेपी है जो मोदीजी के जादू से लोकसभा व अन्य ज़्यादातर राज्यों की बेहतरीन जीत से अभीभूत है . महाराष्ट्र लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बावजूद इस विधानसभा चुनाव में अपने को विजयी मानने का मुगालता पाल रहे हैं . उसके छोटे भाई बनकर चुनाव अखाड़े में जाने में शर्मिंदगी महसूस कर रहे , दूसरे और तीसरे पहलवान हैं, शिवसेना शिंदे व एनसीपी अजित पवार . अब चुनाव परिणाम ही बताएंगे कि इस तरह मिलकर पहलवानी करने का उनका आंकलन सही था या मुगालता .
दूसरी तरफ से चौथे पहलवान शिवसेना (उद्धव) है , जो अकड़कर बाळा साहेब ठाकरे के समय से ही अपने को सबसे बड़ा बताने की कोशिश करता था . 6 साल पूर्व में बीजेपी के साथ गठबंधन में उसे सहूलियत थी क्योंकि कई बिंदुओं पर विचारधारा में समानता नजर आती थी. लेकिन उस वक्त उद्धव ठाकरे अपने आलोचकों को करारा जवाब देकर अपनी नेतृत्व क्षमता दिखाने के लिये लालायित हो गये. उन्हें विपक्ष की पार्टियों ने दिलासा दिया कि ऐसा सुनहरा मौका बार-बार हाथ नहीं आता और वे विपक्ष के पाले में आकर महाराष्ट्र विकास अघाड़ी मे बस गये . उनकी इस करतूत से , उनकी ही पार्टी टूट गई और अब वह अपने अस्तित्व को आरपार की लड़ाई लड़ रहे हैं. इस दांव पर उनके बेटे आदित्य के राजनीतिक कैरियर का भविष्य भी लगा हुआ है . उनकी अतीत की महात्वाकांक्षाओं के कारण लिये निर्णयों का नुकसान यह हुआ है कि वे अब किंग की भूमिका की जगह किंग मेकर की भूमिका में रहने के लिये मजबूर होंगे .
महाराष्ट्र विकास अघाड़ी के अन्य दोनों शीर्ष पहलवानों , कांग्रेस और एनसीपी , के नेताओं की महत्वाकांक्षाएं भी शीर्ष पर हैं. लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन के बाद उनका आत्म विश्वास आकाश छू रहा है . बीजेपी विरोधी राजनीति का सबसे बड़ा फायदा कांग्रेस को मिल रहा है जोकि अकेले चुनाव लड़कर बड़े भाई की भूमिका छोड़िये , छोटे भाई की भूमिका में भी नहीं पहुंच सकते थे . एनसीपी (शरद पवार) की बात करें तो खिलंदड़ पहलवान शरद पवार के दावों का कोई भी आसानी से अनुमान नहीं लगा पाता. अफवाहों का बाजार अभी से ही गरम हो चुका है कि पवार मराठा राजनीति का फायदा पाकर अच्छी खासी बढ़त बना लेंगे . वे चुनाव के बाद फिर से कोई नया दांव चल सकते हैं . इसके अलावा एक और उद्दंड और निरंकुश पहलवान राज ठाकरे , भाजपा का पिट्टू बनकर, अपने बेटे के लिये राजनीतिक अस्तित्व बचाने का प्रयास कर रहे हैं .
मेरी उपरोक्त बातें सुनकर पत्रकार माधो बोले, आत्म विश्वास जीत का कारण बनता है और अहंकार सर्वनाश का . महाराष्ट्र में इस वक्त सभी पार्टियां अहंकार में सीना फुलाए हुए हैं. पर कौन मुंह के बल गिरेगा, अभी उसका कयास लगाना मुश्किल है. वोटर भ्रमित है क्योंकि अचानक उसके सामने विकल्पों के कई दरवाजे खुल गए हैं, वह किस दरवाजे से निकले ? वैसे भ्रम अगर ज्यादा हो जाए , तो ‘नोटा’ नाम का भी एक दरवाजा है.
इंजी. मधुर चितलांग्या , संपादक
दैनिक पूरब टाइम्स