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Monday, June 23, 2025
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संस्मरण : सचमुच ऐसी होती थी छोटे शहरों व गांव में रहने वालों के बचपन की दीपावली

सबसे पहले उल्लास रहता था, स्कूल से पच्चीस दिनों की दिवाली की छुट्टियों का. फिर जुनून सवार होता था उन छुट्टी के दिनों में कई घंटे हॉकी खेलने जाने का और भरकापार स्कूल मे कैनेडी मेमोरियल हॉकी टूर्नामेंट में हिस्सा लेने का . शाम होते ही घर की बहनों को रंगोली बनाने में मदद करने का , इसमे रंगोली के रंग लाने से लेकर घर के सामने के आंगन मे गोबर लीपने तक के काम होते थे. फिर आंगन को और सजावटी बनाने के लिये पुट्ठे से रंगोली के छप्पे भी बनाते थे. घर की साफ सफाई और रंगाई पोताई मे भी हमारा रोल होता था. दुकानों के सामने कटनी के गीले चूने के ढेर लगे रहते थे. खरीद कर लाने से पेंटर द्वारा चूना – नील मिलाना , कूची चलाना इत्यादि कामों मे कभी-कभी शामिल होना बेहद सुखकर लगता था. दुकान की सफाई मे अपने पिताजी के निर्देशों का पालन करना , उनसे डांट खाना , फिर उनसे यह सुनना कि बेहतर सफाई और व्यवस्था मे सुधार से दिवाली मे लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं और वही ज़्यादा ग्राहकी के माध्यम से हमारे पास आती हैं , एक दिव्य अनुभव सा लगता था. घर मे भी सफाई के दौरान अनेक ऐसी चीज़ें मिल जाती थीं जो गुम हो चुकी होती थीं और बचपन मे हमें अतिप्रिय होती थी. भाई- बहनों का बेतरतीब बिखरे घरों में धमा चौकड़ी मचाकर, शोर मचाते हुए खेलना , फिर मां से डांट खाना , कुछ देर शांत रहकर फिर मस्ती चालू करना बेहद सुहाना लगता था.

इस सबमे सबसे सुखद क्षण होता था जब पिताजी हम भाई बहनों को फटाके दिलाने म्युनिसिपल ग्राऊंड स्कूल के फटाका बाज़ार ले जाते थे. हर साल कोई ना कोई नया फटाका बाज़ार मे आता था , हम सभी तरफ गिद्ध निगाहें रखते कि को नया आइटम हमारी निगाह से छूट ना जाये . फिर पिताजी द्वारा दिये गये बजट पर अपने खरीदी बिठाने की कोशिश करते थे. कुछ फटाके साझा और कुछ फटाके पर्सनल लेकर आते. धनतेरस से दीवाली तक की हर पूजा मे नये कपड़े पहनकर शामिल होते थे पर फटाके चलाने की ज़्यादा जल्दबाज़ी होती थी. दियों एवम्‌ लाईट सीरीज़ों से सज़ा अपना घर सचमुच मनभावन होता था. पूजा फटाकों के बीच दूसरे के घरों की रंगोली और रौशनी देखने जाने का भी प्रचलन था. दूसरे दिन सभी कज़िन इकट्ठा होकर पूरे मोहल्ले मे दीवाली का धोक देने (प्रणाम करने ) जाते थी और सभी काकियां – ताईयां मनवार कर के मिठाई – नाश्ते कराती थीं .

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