मेरा बचपन राजनांदगांव में गुज़रा था. वहां हर साल गणेशोत्सव और अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रम होते थे . हर मोहल्ले के लोग टोलियां बनाकर चन्दा लेने जाते और गणमान्य लोग चन्दा अवश्य देते थे. छोटे-छोटे बच्चे भी छोटे चंदे की चाह में बेधड़क उन लोगों के पास जाते थे. ज़्यादातर जगह असफल होते थे , पर कुछ लोग उन्हें भी चन्दा अवश्य देते थे. मैं अक्सर सोचता था कि लोग दूसरे सार्वजनिक सामाजिक और सांस्कृतिक कार्य में अपनी मेहनत की कमाई का हिस्सा क्यों देते हैं ? वैसे , दूसरों को बेझिझक कुछ देना, बड़े दिलवाले ही कर सकते हैं.
कुछ बड़ा हुआ तो मुझे किसी ने बतलाया कि बिड़ला परिवार के इतने धनी होने के पीछे एक आशीर्वाद है . जिसके अनुसार जब तक बिड़ला परिवार दान-पुण्य, धार्मिक और मंदिर निर्माण का कार्य करता रहेगा तब तक उनकी समृद्धि बढ़ती रहेगी. और बड़ा हुआ तो यह बात बिलकुल समझ आ गयी कि जो लोग दूसरों के लिए और सत्कर्मो में खर्च करते हैं उनकी बरकत (बढ़त ) कई गुना होती है . निस्वार्थ सेवा और दान से प्रकृति और प्रभु दोनों की मेहरबानी आप पर होती है.
मुझे एक कहानी ने बेहद प्रेरित किया. एक आदमी ने देखा कि एक गरीब बच्चा उसकी कीमती कार को बड़े गौर से निहार रहा है . आदमी ने उस लड़के को कार में बिठा लिया . लड़के ने कहा – आपकी कार बहुतअच्छी है, बहुत कीमती होगी ना ? आदमी- हाँ, मेरे भाई ने मुझे गिफ्ट दी है . लड़का (कुछ सोचते हुए)- वाह ! आपके भाई कितने अच्छे हैं . आदमी- मुझे पता है तुम क्या सोच रहे हो, कि काश मेरा भी ऐसा ही एक भाई होता , तुम भी ऐसी कार चाहते हो ना ? लड़का- नहीं ! मैं आपके भाई की तरह बनना चाहता हूँ . सचमुच, कितनी ज़बरदस्त सोच थी वह. अपनी सोच में हम अपनी सामर्थ्य के अनुसार अपनों-परायों को देने की प्रवृत्ति रखेंगे तो प्रभु भी अपनी दयालुता बरसाते हैं. यह बात मेर जीवन में आजमाई हुई है. आप भी बड़ा दिल करिये , ईश्वर भी आप पर आशीर्वाद बरसाएंगे , इन्हीं शुभकामनाओं के साथ आज का यह अंक समर्पित
इंजी. मधुर चितलांग्या , संपादक
दैनिक पूरब टाइम्स