वो ख्वाबों के दिन
( पिछले 5 अंकों में आपने पढ़ा : मन में अनेक अरमान लिए एक गांव से शहर पढ़ने आये एक युवा के दिल की धड़कन बढ़ा देती है , एक दिन अचानक , एक बंगले की पहली मंज़िल की खिड़की. वह देखता है वहां पर एक नाज़ुक व बेहद खूबसूरत युवती जोकि उसकी कल्पना से भी ज़्यादा सुंदर होती है. फिर एक दिन उसे महसूस होता है कि उस खिड़की के सैंकड़ों चक्कर बिलकुल बेअसर नहीं हैं. उस युवती के इशारों इशारों में जवाब और आगे फोन पर शुरू हो चुकी बातचीत अब कैसा स्वरूप लेती है ? पढ़िये, आगे की दास्तान )
एक प्रेम कहानी अधूरी सी ….
(पिछले रविवार से आगे की दास्तान – 6 )
वह फिर से बोली , मेरी इस बातचीत को आप ना दोस्ती समझें और प्यार समझने की तो गलती ही मत करना . मैं तो उसकी बातों में इतना खो गया था कि मेरी सोचने समझने की ताक़त मेरे से मीलों दूर भाग गई थी . अब बोलने की बारी मेरी थी . मैंने अपनी आवाज़ को और अधिक मधुर बनाते हुए कहना शुरू किया , आप केवल खूबसूरत ही नहीं हैं, बातें भी बहुत ही अधिक प्यारी करती हैं . उससे भी ज़्यादा मुझे पसंद आई आपकी भाषा व शैली . अब छेड़ते हुए बोला , मुझे लगता है कि टेलीफोन पर मुझे लम्बे समय तक आपसे ट्यूशन लेनी पड़ेगी . सामने से फिर मुझे फिर स्निग्ध हंसी सुनाई दी . साथ ही मस्ती भरी आवाज़ , तो जनाब , बेहद लम्बी बात कर टेलीफोन बूथ को खूब पैसे चढ़ाना चाहते हैं . वैसे आपने मेरी तारीफ के बहुत मज़बूत पुल बनाने शुरू कर दिये हैं लेकिन जब वे टूटेंगे तो बड़ी चोट भी लग सकती है. अब मैंने अपनी तैयार की हुई एक शायरी ठोक दी ..
कांटो के बदले फूल दोगे क्या,
आँसू के बदले खुशी दोगे क्या,
हम चाहते है आप से उम्र भर की दोस्ती,
हमारी इस शायरी का जवाब दोगे क्या
वह खिलखिला उठी और उसने मेरे ही अन्दाज़ में मुझे जवाब दिया ..
तुम्हारे आने से पहले बदमज़ा जिये जा रही थी
तुम जो आये तो एक हल्का सा रंग आ गया
खुशियों और गम की परवाह नहीं है मुझको
अब तुमसे दोस्ती करना मेरा मकसद बन गया.
अब मैं मुस्कुराते हुए बोला , हम ही से ? तो वह बोली , हां आप ही से . फिर अलविदा कहते हुए उसने कहा , बात करेंगे, फिर कभी . मैंने झट से कहा , बात करेंगे , फिर कल ही . अगले दिन फिर फोन पर बात करने का वादा लेकर मैंने फोन रख दिया. उसकी मीठी आवाज़ , मदहोश करने वाली खिलखिलाहट, मेरे कानो में गूंजती रहीं. उसके शेर कहने के अंदाज़ से मैं पक्का कह सकता था कि उसने भी मेरी तरह ही बातचीत करने की तैयारी की थी . वहां से होस्टल लौटते वक़्त पता नहीं क्यों, मेरी आंखों में आंसू आ गये . पता नहीं वे आंसू , नई दोस्ती की खुशी के लिये थे या उस दोस्ती के जल्दी टूट जाने के अज्ञात डर के लिये . उस शाम मेरा दिल बल्लियों उछल रहा था . मैं एकतरफा प्यार में पागल अपने एक दोस्त के पास गया . वह मुझसे अपनी अनाम प्रेमिका के बारे में बोला , यार , वो मेरी तरफ देखती ही नहीं और मैं उसे भुला नहीं पा रहा हूं . मैं उसे पूरी आत्म विश्वास के साथ बोला , मेहनत कर . देखेगी भी और बात भी करेगी . उसने मुझे गले लगा लिया और रात को अपनी तरफ से फिल्म दिखाने का ऑफर दिया , जिसे मैंने हंसते हंसते स्वीकार कर लिया. फिल्म रोमैंटिक थी . मेरे मन में रह रह कर ये शेर आ रहा था
लोग कहते हैं कि इतनी दोस्ती मत करो,
के दोस्त दिल पर सवार हो जाए..
मैं कहता हूं दोस्ती इतनी करो कि,
उस बेदर्द को भी तुमसे प्यार हो जाए…
सुबह फिर मुझे चौक के उसी कोने से उसकी खिड़की को ताकते देख कर वह खिलखिला कर हंस पड़ी. मैंने भी अपने बालों को सहलाते हुए उसे सलाम ठोक दिया . वह जान बूझकर अंदर भाग गयी , फिर दूसरी खिड़की के पीछे से मुझे ताकने लगी . मुझे और उसे, इस लुकाछिपी के खेल में बेहद मज़ा आ रहा था . सुबह का ट्रैफिक बढ़ रहा था , उसने बाल झटक कर मुझे अलविदा का इशारा किया.
छिपे रिश्ते को वो रुस्वासरे आम कर रहे हैं
मैंनज़र बचा रहा हूं , वो सलाम कर रहे हैं
( अगले हफ्ते आगे का किस्सा )
इंजी. मधुर चितलांग्या , संपादक ,
दैनिक पूरब टाइम्स