वो ख्वाबों के दिन
( पिछले 22 अंकों में आपने पढ़ा : उस बंगले की पहली मंज़िल की खिड़की पर अचानक दीदार देने वाली उस नाज़ुक व बेहद खूबसूरत युवती के पीछे महीनों मेहनत करने के बाद , इशारों इशारों में उसके जवाब और आगे मस्ती से भरी फोन पर शुरू हो चुकी बातचीत ने एक खूबसूरत आकार लेना शुरू कर दिया था . प्यार की पहली मुलाकात पर शर्त के कारण मिले, दिल को सुकून और दर्द को उकेरते हुए , पहले प्रेम पत्र में दिल के जज़्बात और उसे जोखिम उठा कर सही हाथों में पहुंचा दिया . फिर यह सिलसिला चल पड़ रात में गरबा की आंख मिचोली तक . अब गरबा समाप्त होने के बाद की आंख मिचौली का किस्सा , अब उसकी बारी थी दबंगाई से अपना प्रेम पत्र मुझे पहुंचाने की )
एक प्रेम कहानी अधूरी सी ….
(पिछले रविवार से आगे की दास्तान – 23)
मुझे लगा कि हम दोनों का, एक दूसरे से लगाव, इतना ज़्यादा हो रहा है कि हमारे बीच तयशुदा कंडीशन धराशाही हो जायेगी . फिर मैंने अपने आप से कहा कि मैं किसी भी हालत में शर्त के अनुसार अपनी मर्यादा से बाहर नहीं जाउंगा परंतु यदि ‘मलिका’ शर्तें बदलना चाहे तो मैं उसकी मर्ज़ी मान लूंगा . यह बात मुझे अंदर तक गुदगुदा दी .
कोई वादा नहीं , कोई इरादा नहीं
कोई इसरार नहीं, कोई इकरार नहीं
फिर क्यों बसी है दिल में तू ही तू
और कोई नहीं , बस कोई नहीं ..
पता नहीं मुझे तुम्हारे बारे में सोचते सोचते कब नींद आ गई ? सुबह एक पड़ोसी दोस्त ने मुझे उठाते हुए कहा , यार अब उठ भी जा , कितनी देर हो गई है ? मैंने कहा , ऐसा क्या पहाड़ टूट पड़ा है , आज तो छुट्टी है . वह हंसते हुए बोले , बाहर अनेक बेचैन आत्माएं तेरी दुल्हनों के बारे में जानने को उत्सुक हैं . मुझे याद आ गया कि मुझे देर रात छोड़ने आई कार में तीन, सजी-धजी, खूबसूरत अप्सराएं भी थीं . मैं जानबूझकर उबासी लेते हुए बोला , दो मेरी कज़िन थी और एक उनकी फ्रैंड . अब वह दोस्त जबरदस्ती लढ़ियाते हुए बोला , तो एक फ्रैंड थी . मैं बोला , मेरा जो कज़िन छोड़ने आया था , वह उसकी गर्ल फ्रैंड थी . वह दोस्त निराशा के भाव के साथ अन्य साथियों को बताने निकल पड़ा . तभी मुझे याद आया कि मुझे तो सुबह उस खिड़की के सामने अपनी हाजरी देनी थी . बहुत लेट हो चुका था सो जल्दी से हाथ- मुंह धोकर , कपड़े बदल कर मैं लगभग दौड़ते हुए निकल पड़ा . वहां पहुंच कर देखता हूं कि खिड़की बंद है और कोई हलचल भी नहीं हो रही है . मुझे इस बात का मलाल रहा पर तसल्ली भी हुई कि तुमको मेरी राह देखत हुए निराश तो नहीं होना पड़ा . मैं खुद ही बुदबुदा उठा .
राह देखेंगे तेरी चाहे ज़माने लग जाये,
या तो आ जाये तू ,
या हम ही ठिकाने लग जाये..
इतने में देखता हूं कि खिड़की खुली और तुम बेहद बेचैनी से इधर उधर देखकर कुछ ढ़ूंढ रही हो . मुझे देखते ही जैसे तुम्हारे चेहरे की रंगत लौट आई । ज़ोर से मुस्कुराते हुए अपने कान पकड़े , जैसे कह रही हो कि आपसे मिलने पर सभी शिक़ायतें दूर कर दूंगी. तुम्हें लगा कि मैं 7 बजे से ‘ ध्रुव’ की तरह उसी जगह पर खड़ा हूं । तुम्हारी उस अदा पर और खुद देर से आने वाले चोर के ना पकड़ाने पर , मैंने खुश होकर , बड़ी अदा से सलाम का इशारा कर दिया . तुम जैसे मस्ती में झूमते हुए भाग खड़ी हुई . मैं फिर उसी तरफ देखता रहा . मैंने देखा कि तुम टोपी पहन कर , हाथ में क्रिकेट का बैट लेकर वापस आ गयी और मेरी तरफ ना देखते हुए , उस से झूठमूठ का गिटार बजाने लगी . फिर मेरी तरफ देख कर एक बार बल्ला घुमाया . और जैसे इशारे से बताया 10 बजे , उसी जगह . मैं तो भूल ही गया था कि आज रविवार है और तुम शायद उसी तरह अपने भतीजे को लेकर नेहरू पार्क में क्रिकेट खेलने जाओगी . मैने अपने लिये प्रेमपत्र के बारे में इशारा किया तो तुम जानबूझकर गुस्सा दिखाते हुए पैर पटकते हुए चली गई . दस मिनट तक तुम वापस नहीं लौटी तो मैं समझ गया कि अब क्रिकेट के खेल में मुलाकात होगी .
कुछ हद तक एक जैसी कहानी है हमारी तुम्हारी,
तुम्हे प्यार से डर लगता है हमें दूरियों से तुम्हारी..
तैयार होकर मैं पौने दस बजे , नेहरू पार्क में उसी जगह पर जाकर एक झाड़ के नीचे , अपने चेहरे पर टोपी ढंक कर लेट गया और तुम लोगों का इंतज़ार करने लगा . मेरी निगाह लगातार चौकन्ना होकर इधर उधर देख रही थीं कि कहीं हमारे होस्टल या कॉलेज का कोई साथी मुझे ना देख ले और मेरे पास आकर ना बैठ जाये . लगभग 10 बजे तुम जींस , टीशर्ट में कैप व गॉगल्स के साथ अदाएं देते हुए , अपने साथियों के साथ मेरी तरफ ही चलकर आने लगी . तुम मुझे देखकर अनजान बन रही थी . तुम्हारे 6 साल के भतीजे की उस आयानुमा 12-13 साल की लड़की को तुमने स्टम्प लगाने के लिये कहा . मैने देखा तुम्हारे साथ , वही गरबे वाली सुंदरी ‘अन्नू’ भी है . वह भी तुम्हारी तरह खेलने की तैयारी से आई हुई , दिखती थी . तुम्हारा भतीजा उत्साहित होकर बॉल को ऊपर उछाल कर उसे कैच करने की प्रैक्टिस कर रहा था . मैंने देखा कि तुम लोग खेल शुरू करने वाले हो तो मैं झट से , सबको , गुड मोर्निंग करते हुए बोला , मुझे भी खिला लो ना , उस दिन की तरह मैं मदद करूंगा . मैंने देखा कि इस बात से तुम्हारा भतीजा व वह छोटी लड़की एकदम खुश हो गये परंतु तुम कड़क आवाज़ में बोली , नहीं , आज नहीं . उस दिन हमारे पास फिल्डर की कमी थी . आज अन्नू भी है .
न जाने करीब आना किसे कहते है
मुझे तो आपसे दूर जाना ही नहीं आता ..
( अगले हफ्ते आगे का किस्सा )
इंजी. मधुर चितलांग्या , संपादक ,
दैनिक पूरब टाइम्स