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Sunday, December 22, 2024

वो ख्वाबों के दिन (भाग – 21)

वो ख्वाबों के दिन


( पिछले 20 अंकों में आपने पढ़ा : उस बंगले की पहली मंज़िल की खिड़की पर अचानक
दीदार देने वाली उस नाज़ुक व बेहद खूबसूरत युवती के पीछे महीनों मेहनत करने के बाद ,
इशारों इशारों में उसके जवाब और आगे मस्ती से भरी फोन पर शुरू हो चुकी बातचीत ने
एक खूबसूरत आकार लेना शुरू कर दिया था . प्यार की पहली मुलाकात पर शर्त के कारण
मिले, दिल को सुकून और दर्द को उकेरते हुए , पहले प्रेम पत्र में दिल के जज़्बात और उसे
जोखिम उठा कर सही हाथों में पहुंचा दिया . फिर यह सिलसिला चल पड़ रात में गरबा की
आंख मिचोली तक . अब आगे गरबे का का किस्सा )


एक प्रेम कहानी अधूरी सी ….
(पिछले रविवार से आगे की दास्तान – 21)


मैंने तुमसे पूछा कि ये माजरा क्या है ? तुम हंसकर बोली , अन्नू कहती है कि तुम दोस्ती
के लिये परफेक्ट हो इसलिये या तो मुझे दोस्ती करने कहती है या खुद तुमसे दोस्ती कर
लेगी . मैंने कहा लेकिन उसे कैसे बताऊं कि मैं तो ऑलरेडी बरबाद हो चुका हू . इस बार
तुम हंसकर बोली , धत .

गरबा के इस राउंड के खत्म होने के बाद , अनेक पुराने नाचने वाले थक कर बाहर आ गये
और अनेक नये लोग अगले राउंड में जाने के लिये तैय्यार होने लगे थे . मैंने देखा कि तुम
भावेश की बड़ी बहन के साथ खड़े होकर बात कर रही थी . मैं भावेश के साथ खड़ा होकर
तुम लोगों की तरफ ही देख रहा था कि भावेश की बहन हमारी तरफ आकर बताने लगी कि
तुम्हारी भाभी की तबियत ठीक नहीं थी इसलिये वह आज गरबा में नहीं आई , कल भी
शायद ही आयेगी . समझ यह आया कि तुम्हारी भाभी , भावेश की बड़ी बहन भावना की,
अच्छी सहेली है और तुम भावेश की कज़िन लगती हो . अब भावेश तुम्हारी तरफ बढ़ने लगा
तो मैंने खुद को रोका और गरबा खेलने कूद पड़ा . मैंने देखा कि तुम भावेश व उसके साथ
की लड़कियों से बात कर रही हो पर तुम्हारा पूरा ध्यान मेरी तरफ ही है . तभी नाचते हुए
अन्नू मेरे सामने आ गई और बोली , जहां तेरी ये नज़र है , मेरी जां मुझे खबर है . मैं भी
हंसते हुए बोला, न जाने इनमें किसके वास्ते हूं मैं , न जाने इनमें से है कौन मेरे लिये .
अब अन्नू हंसते हुए बोली , जल्दी बताओ , इरादा क्या है ? तीन दिन बाद मैं बाहर जा रही
हूं . मैं कुछ बोलता , उससे पहले वह आगे निकल गई . मैंने देखा , मलिका , मुझे नाचते
देख कर तुम मज़े ले रही है , जिस प्रकार से मैं उसे नाचते देख कर, रोज़ वल्लभ नगर में
सुकून लेता था . आंखें मिलते ही मुस्कुराकर इधर उधर देखने लगती . सामने आने पर
अन्नू फिर बोली , बस . हम लोग घर जाने वाले हैं . पर तुमसे मिलकर बहुत अच्छा लगा .
मैंने भी हंस कर कहा , मुझे भी . पर बताओ , मेरे इरादे का क्या ? अन्नू हंसी और बोली ,
वो भी आगे देख लेंगे . अगले राउंड में मैंने देखा कि तुम लोग निकल रहे हो . तुम पलट
कर देख रही हो ताकि मुझसे एक बार आंखें मिल जाये और बाय हो जाये . आंखें मिली ,
तुम मुस्कुराई और बिना किसी इशारा किये निकल पड़ी . मैं समझ गया कि तुम्हें लौटना
ज़रूरी होगा .


आज गरबे का आखरी दिन था . मैं भी बिल्कुल गुजरातियों की तरह तैयार होकर आया था .
मैंने देखा कि आज तुम अपनी सहेलियों के साथ पहले से ही मौजूद हो . मैंने आज तय कर
रखा था कि आज मैं किसी भी तरह से , अपने प्रेम पत्र के जवाब के लिये , ज़रूर पूछूंगा .
अन्नू भी साथ ही थी . उसने दूर से ही मुझे देख कर , अपनी तरफ आने का इशारा किया .
मैंने पहुंच कर दूर से ही तुम लोगों को , हाथ हिलाकर हेल्लो कहा . तुम सब हंस पड़ी . बाद
में गरबा करते हुए तुमने बताया कि अन्नू ने आज हम सबको तुम्हारा झुक कर नमस्ते
करने की अदा देखने कहा था . मैंने पूछ लिया , क्या तुम्हें मेरी हैलो करना अच्छा नहीं
लगा . तुमने कहा आप हर हाल में में मुझे अच्छे लगते हैं . और वह आगे बढ़ गई . अब
मुझे अचानक अपनी गुजराती ड्रेसिंग का ध्यान आ गया . अन्नू सामने आते ही बोली ,
गज़ब , आज तो कोई यह नहीं कह सकता कि आप गुजराती नहीं हैं राजस्थानी हैं . मैंने
कहा कि तुम अप्सराओं को टक्कर देना ज़रूरी है . अन्नू तुम्हारी तरफ इशारे करते हुए बोली
, मेरे लिये या उसके लिये बोल रहे हो ? मुझे एक बार लगा कि तुमने उसे हम दोनों के बारे
में बता तो नहीं दिया है ? अन्नू फिर बोली , मैं परसों ही वापस अहमदाबाद वापस जा रही
हूं . मैंने कहा , मैं भी चलूंगा . अन्नू हंसते हुए बोली , बहुत पिटोगे . और आगे निकल गई
. भावेश और उसकी गर्ल फ्रैंड मेरे ही घेरे में थे इसलिये उनसे कोई बात नहीं होनी थी .
जब तुम मेरे सामने आई तो मैंने कहा , मेरी चिट्ठी का क्या हुआ ? तुम बोली, ध्रुव तुम
लाजवाब लिखते हो ? मैं आज तक उसी जवाब की तैयारी कर रही हूं . जल्दी ही अपके
हाथों पहुंच जायेगी आपकी मेहनत का फल . मैंने कहा , मलिका तुम बहुत ही अच्छी हो .


अन्नू सामने आते ही बोली , ना आप मुझे पहले मिली और ना ही मैं आपको . अब अगले
साल ही वापस आउंगी तब भी मुलाक़ात हो या नहीं . मैंने कहा , ज़िंदगी में आगे बढ़ने के
लिये बहुत सी चीज़ें और लोग पीछे छोड़ना पड़ता है . अन्नू बोली , एकदम सही बात . अब
जब तुम मेरे सामने आई तो मैंने पूछा कि ये सामने की दोस्ती से ज़्यादा मुझे दूर की महबूबा
ज़्यादा पसंद है . तुम भी हंसी और बोली , मुझे भी मलिका बनना पसंद है . कल से
गरबा बंद हो जायेगा तो कल से ही . मुझे अपने अंदर अलौकिक खुशी का अनुभव होने लगा
. गरबा खत्म होने के बाद एक दूसरे को मुस्कुराते हुए दूर से बाय करते हुए हम लौट गये
अपने अपने आशियाने की तरफ . मैं लौटा , एक अद्भुत खुशी की अनुभूति के साथ .

( अगले हफ्ते आगे का किस्सा )
इंजी. मधुर चितलांग्या , संपादक ,
दैनिक पूरब टाइम्स

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