“कोड ब्लू” एक आपातकालीन स्थिति का संकेत है, जिसे अस्पतालों में विशेष रूप से तब बोला जाता है जब किसी मरीज की हृदय गति रुकने या सांस लेने में कठिनाई जैसे गंभीर चिकित्सा संकट का सामना होता है। इसका उद्देश्य अस्पताल के सभी स्टाफ को यह सूचित करना होता है कि तुरंत प्रतिक्रिया करने की जरूरत है ताकि मरीज को जीवन रक्षक सहायता प्रदान की जा सके।
कोड ब्लू का उद्देश्य: यह एक चेतावनी होती है कि मरीज को कार्डियक अरेस्ट (हृदय रुकने) या रेस्पिरेटरी अरेस्ट (सांस रुकने) का सामना करना पड़ सकता है। इसके बाद, सुसज्जित चिकित्सा टीम जैसे डॉक्टर, नर्स और अन्य स्टाफ तुरंत इलाज शुरू करते हैं। इलाज में शामिल होते हैं:
- CPR (कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन)
- डिफिब्रिलेशन (अगर जरूरी हो)
- मरीज की स्थिति को स्टेबलाइज करने के लिए उपयुक्त उपकरण और तकनीकों का उपयोग।
कोड ब्लू कब बोला जाता है: यह तब बोला जाता है जब मरीज के जीवन को तुरंत खतरा हो, और यह संकेत देता है कि आपातकालीन टीम को तुरंत सक्रिय किया जाए।
कोड ब्लू के बाद की प्रक्रिया: इसके बाद अस्पताल में कर्मचारियों को त्वरित प्रतिक्रिया देने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है ताकि मरीज को सही समय पर उपचार मिल सके। इस प्रणाली में अस्पताल में एक विशेष संख्या डायल करने से कोड ब्लू को सक्रिय किया जाता है (जैसे, पुणे के ससून अस्पताल में 7 डायल करके)।
अन्य कोड्स:
- कोड रेड: आग या धुएं की स्थिति
- कोड येलो: बम की धमकी या सुरक्षा समस्या
- कोड ग्रीन: अस्पताल से निकासी
- कोड ब्लैक: बम धमकी या संदिग्ध पैकेज
- कोड पिंक: लापता शिशु या बच्चे का अपहरण
भारत में भी कई प्रमुख अस्पतालों में कोड ब्लू सिस्टम को लागू किया गया है, जैसे ससून जनरल अस्पताल, पुणे, ईएसआईसी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल, हैदराबाद, और अपोलो अस्पताल, नवी मुंबई।
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