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Friday, November 15, 2024

वो ख़्वाबों के दिन (भाग – 14)

वो ख्वाबों के दिन

( पिछले 13 अंकों में आपने पढ़ा : मन में अनेक अरमान लिए एक गांव से शहर पढ़ने आये

एकयुवाकेदिलकीधड़कनबढ़ादेतीहै , एकदिनअचानक , एकबंगलेकीपहलीमंज़िलकीखिड़की . वहदेखताहैवहांपरएकनाज़ुकबेहदखूबसूरतयुवतीजोकिउसकीकल्पनासेभीज़्यादासुंदरहोतीहै . फिरएकदिनउसेमहसूसहोताहैकिउसखिड़कीकेसैंकड़ोंचक्करबिलकुलबेअसरनहींहैं . उसयुवतीकेइशारोंइशारोंमेंजवाबऔरआगेमस्तीसेभरीफोनपरशुरूहोचुकीबातचीतनेएकखूबसूरतआकारलेनाशुरूकरदिया . आगेपढें,  प्यारकीपहलीमुलाकातपरशर्तकेकारणमिलेदिलकोसुकूनऔरदर्दकोउकेरतेहुआपहलेप्रेमपत्रकाआगेकाहिस्सा)

एकप्रेमकहानीअधूरीसी ….

(पिछलेरविवारसेआगेकीदास्तान – 14 )

दिल से बस, इतनी बात बड़ी मुश्किल से कलम पर आ पायी है कि मैं तुम्हारा दीवाना हो गया हूं. शायद तुम्हारी खूबसूरती का या  तुम्हारी मुस्कुराहट का , शायद तुम्हारी अदाओं का  या  सबसे ज़्यादा तुम्हारे नखराले अन्दाज़ का . सचमुच ‘मलिका’ नाम बना ही तुम्हारे लिये है . दिलों पर राज़ करने वाली मलिका ….. न..न.. मेरे दिल पर राज करने वाली मलिका .

पहले दिन जब तुमको  देखा था तब केवल तुम्हारी अंगड़ाई देखता रह गया था. बस सोचता रह गया कि जब एक अदा इतनी शोख है तो हर अदा कितनी ज़बर्दस्त होगी इस हसीना की ?  लोग कहते थे कि सुबह जल्दी उठकर सैर करने से ज़िंदगी लम्बी होती है , मेरी दुर्घटना वश हुई सुबह की सैर ने मेरी ज़िंदगी ही हसीन बना दी . 

अंगड़ाइयांवोलेरहेथेउठाकरहाथ 
देखाजोमुझकोगिरादिया , मुस्कुराकरहाथ

फिर पता नहीं कैसा चुंबकीय आकर्षण मुझे रोज़ सुबह तुम्हारी उस खिड़की के सामने खींच कर ले जाता था . शुरुआत में मैं यह चाहता था कि तुम्हारी हर अदा को मैं छुपकर अपनी नज़रों  में भर लूं और जब अकेला रहूं तब  अपनी कल्पनाओं के सागर में गोते लगाऊं .

जिक्रछिड़गयाजबउनकीदिलकशअंगड़ाईका
कैसेबयांकरूंउनकी , उनींदीअलसाईअदाका

एक दिन मुझे लगा कि तुमने मुझे देख लिया और कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई तो मैं सहज होकर खुलकर तुम्हें देखने लगा. धीरे धीरे लगने लगा कि तुम जानबूझ कर अदाएं देती हो इस परवाने को जलाकर खाक़ करने के लिये . जब मुझे अपने कॉलेज के साथियों के साथ स्टडी टूर में  जाना पड़ रहा था तो उस रात ना जाने क्यों मेरी आंखें भर आई ? तब अहसास हुआ कि मेरा लगाव, दीवानेपन तक बढ़ने लगा है .

इंदौरकेजीएसआईटीएस , इंजीनियरिंग कॉलेज का हमारा न्यू होस्टल 1 ,एक तरफा प्यार की ना जाने कितनी ही दास्तानों का प्रत्यक्षदर्शी था . कुछ लड़कों के ऐसे प्यार खुले आम थे तो कुछ के अंदर ही छिपाये दिल को दर्द देने वाले . पहले टाइप के लड़के अपने साथियों से बातें शेयर कर गम गलत कर लेते थे पर मैं तो दूसरे टाइप वालों की जमात में शामिल हो गया था . लोगों को पता ना लगे इसलिये ऊपर से शैतानियां ज़्यादा करने लगा था पर

अन्दर ही अन्दर जलता था .

एकतरफासहीप्यारतोप्यारहै
उसेहोहोपरमुझेतोबेशुमारहै

वापस लौट के आने के बाद पहले दिन खिड़की बंद दिखी और मेरा दिल बैठ गया था . अगले दिन भी पानीदार आंखों से , मुर्दों की तरह  लगातार तुम्हारी खिड़की को तकते बैठा रहा . अचानक खिड़की खुली और तुमने मुझे देखा और कुछ इस तरह का इशारा किया था कि इतने दिन कहां थे ? मुझे लगा कि वह सचमुच इशारा था या मेरा भ्रम था , पर जो भी हो , तुम्हें देखकर मेरी अटकी सांसें लौट आयी थीं .  फिर वही देखने दिखाने का सिलसिला चल पड़ा . मुझे लगता था कि तुम मुझे देखती हो पर मुझे भ्रमित करने की कोशिश करती हो कि तुम्हारी हर अदा मुझे दिखाने के लिये नहीं बल्कि नैचुरल है . कभी किसी कॉपी को गोल कर उसे माइक की तरह हाथ में लेकर कोई गाना गाने की एक्टिंग तो कभी आसमान को एकटक देखना . कभी छोटे बच्चे की तरह उछल कूद मचाना तो कभी बालों को उलझाना , सुलझाना और झटकना . फिर एक दिन मैंने भी अपनी जगह बदल कर दूसरी जगह छिपकर तुम्हें देखा. मैने पाया कि हर थोड़ी देर में तुम मेरी ओरिजिनल जगह पर देखकर मुझे खोजने की कोशिश कर रही हो . मैं फट से बाहर निकल आया और  हिम्मत कर इशारे ही इशारे में तुम्हें सलाम ठोक दिया . मुझे देखकर , तुम भाग खड़ी हुई और पर्दे के पीछे से छिपकर मुझे देखने लगी .  

आशिक़कोदेखतीहैवोदुपट्टातानतानकर 
देतीहैंहमेंशरबतेदीदारछानछानकर

अगलेहफ्तेआगेकाकिस्सा ) 

इंजीमधुरचितलांग्या , संपादक ,

दैनिकपूरबटाइम्स

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