वो ख्वाबों के दिन
( पिछले 11 अंकों में आपने पढ़ा : मन में अनेक अरमान लिए एक गांव से शहर पढ़ने आये
एक युवा के दिल की धड़कन बढ़ा देती है , एक दिन अचानक , एक बंगले की पहली मंज़िल की खिड़की . वह देखता है वहां पर एक नाज़ुक व बेहद खूबसूरत युवती जोकि उसकी कल्पना से भी ज़्यादा सुंदर होती है . फिर एक दिन उसे महसूस होता है कि उस खिड़की के सैंकड़ों चक्कर बिलकुल बेअसर नहीं हैं . उस युवती के इशारों इशारों में जवाब और आगे मस्ती से भरी फोन पर शुरू हो चुकी बातचीत ने एक खूबसूरत आकार लेना शुरू कर दिया . आगे पढें, पहली मुलाकात में मिलने वाले दिल को सुकून और दर्द के बारे में )
एक प्रेम कहानी अधूरी सी ….
(पिछले रविवार से आगे की दास्तान – 12 )
इतना कहकर उसने मेरे कंधे पर अपना सिर रख दिया . वो बेहद मासूमियत से अपनी बात कह गई . मेरी सांसे अटक सी गई . कितने ख्वाब बुनने लगा था पर उनको अंजाम तक पहुंचाने की उम्मीद एकदम धुमिल थी . पर यह स्पष्ट था कि जब तक साथ हैं , खूबसूरत ख्वाबों की दुनिया में मज़े लेंगे. मैं बोल पड़ा , देखो पूरी रिस्क लेकर मैं प्रेम पत्र तुम तक पहुंचा दूंगा पर मेरी भावना की तीव्रता तुमको बहा देगी . अब वह मेरा हाथ दबाते हुए बोली , वही तो चाहती हूं , मेरे ध्रुव . पता नहीं क्यों , अब आंखें भर आने की बारी मेरी थी . मैं आंखें बंद कर चुपचाप पड़ा रहा . वह फिर बोली , ध्रुव , ये क्या ,
तुम्हारी मलिका सामने है और तुम कहां खो गये
सो रहे हो या किसी और के सपनों में खो गये
ये मज़ेदार अंदाज़ मुझे फिर से पुराने फॉर्म में ले आया . मैं भी बोल उठा
दिल में आया ये ख्याल अभी ,एक ख़त तेरे नाम करे
ख्वाहिशो की फेहरिस्त में , एक ख्वाब तेरे नाम करे
वह फिर बोली , आप लिखेंगे ना , मेरे लिये अपने दिल के जज़्बातों को . अब मैं मज़े लेते हुए बोला , ताकि तुम मुझे सबूत के साथ शिकायत कर उसे अन्दर करा सको, पिटवा सको . पुलिस थाने में अपने मजनू को. वह खिलखिलाकर बोली , वही तो मैं चाहती हूं कि हमारी यह दोस्ती या अधूरा प्यार बेहद रोमांचक रहे , . बोला अब मैं जानबूझ कर विस्मित होकर अधूरा प्यार ? यह क्या बात हुई . पर मैं तो ‘मलिका’ की मोहब्बत में पूरी तरह से गिरफ्तार हो गया हूं. वह मुस्कुराते हुए बोली , दोस्ती के आगे किसी भी रिश्ते को कायम करने के लिये हमें कम से कम तीन साल इंतज़ार करना होगा. बोलो , तैयार हो या नहीं ? इस बार मैं उसके हाथ को अपने हाथ में लेकर झुलाते हुए बोला, बिलकुल , जैसा मलिका का हुक्म . वह फिर हंसी, बोली , आप बहुत शानदार आशिक बनोगे. पर अभी मुझे तीन साल अपनी पढ़ाई को और आपको डेढ़ साल की पढ़ाई के बाद , कुछ समय अपने कैरियर को भी देना होगा . तब तक दोस्त रहने की कोशिश करते हैं, फिर इस बीच जो भी होगा वह मंजूरे खुदा होगा . मैं भी साथ–साथ बोल उठा , और मंजूरे ‘ मलिका ‘ भी .
उसका खयाल दिल से निकाला नहीं जाता
बेदर्द यार हो तो भी भुलाया नहीं जाता
बेहोश हो के जल्द तुझे होश आ गया
मैं बद–नसीब, होश में आया नहीं जाता
वक़्त भाग रहा था . अब बिछड़ने का समय आया तो वह मुझसे लिपटकर बोली, मेरे सरकार , यह हमारी प्रेमी प्रेमिका की तरह आखरी मुलाक़ात है . अब हम आमने सामने केवल दोस्त रहेंगे और दूर से चिट्ठी या फोन पर आशिकी की बातें करेंगे . बड़ी अजीब सी शर्त थी पर मुझे तो यह बात माननी ही थीं क्योंकि हर हाल में मैं उसका साथ खोना नहीं चाहता था . फिर थोड़ा दूर होकर मुझसे हाथ मिलाते हुए बोली , अलविदा दोस्त , आज की शानदार मुलाक़ात के लिये शुक्रिया . फिर मिलेंगे . मैं भी जोश से उसके कोमल हाथ को हिलाते हुए बोला , और ऐसे ही मिलते रहेंगे . फिर ज़ोर देकर बोला , मेरी सहेली . दोनो खिलखिलाकर हंस दिये . वह लगभग भागती हुई , स्विमिंग पूल के एरिये की तरफ चली गई और मैं एक युद्ध में जीते हुए योद्धा की तरह , मन ही मन एक झन्नाटेदार चिट्ठी लिखने के बार में सोचते हुए होस्टल की तरफ चल पड़ा .
तेरे आशिक़ हैं , तेरे हैं दीवाने हम
सारी दुनिया से हो गये बेगाने हम
मुस्कुराऊं कैसे, ये दिल भटकता है
तुझको खोने की, सोच से डरता है
( अगले हफ्ते आगे का किस्सा )
इंजी. मधुर चितलांग्या , संपादक ,
दैनिक पूरब टाइम्स