उम्र बढ़ने के साथ- सथ महिलाएं कई तरह की परेशानियाें में घिर जाती हैं, हालांकि वह अकसर छोटी- मोटी तकलीफों को नजरअंदाज कर लेती हैं जो आगे चलकर बड़ी मुसीबत बन जाती है। बहुत सी महिलाओं के यूट्रस यानी बच्चेदानी के अंदर या बाहर गांठें बन जाती हैं जिन्हें ट्यूमर कहते हैं, जिसका समय पर इलाज ना करने पर खतरा बढ़ जाता है। बच्चेदानी में गांठ को मेडिकल भाषा में यूटराइन फाइब्रॉइड (Uterine Fibroids) कहा जाता है। यह महिलाओं में होने वाली एक सामान्य समस्या है, जो आमतौर पर 30-50 वर्ष की उम्र में देखी जाती है। हालांकि, यह कैंसर नहीं होती, लेकिन बड़ी हो जाने पर यह कई दिक्कतें पैदा कर सकती है।
बच्चेदानी में गांठ होने पर महिलाओं में ये लक्षण नजर आ सकते हैं:
अनियमित मासिक धर्म: पीरियड्स का समय बदलना या ज्यादा देर तक ब्लीडिंग होना।
भारी रक्तस्राव:पीरियड्स में ज्यादा मात्रा में रक्त आना या बार-बार ब्लीडिंग होना।
पेल्विक दर्द: निचले पेट में लगातार दर्द या भारीपन महसूस होना।
पीठ या टांगों में दर्द: गांठ का दबाव बढ़ने पर पीठ या टांगों में दर्द हो सकता है।
बार-बार पेशाब आना: फाइब्रॉइड बढ़ने पर ब्लैडर पर दबाव पड़ता है, जिससे पेशाब बार-बार आता है।
बच्चेदानी मे बड़ी गांठ होने पर गर्भधारण में समस्या हो सकती है।
इस उम्र के बाद महिलाओं को होती है ये समस्या
30 से 50 साल की उम्र की महिलाएं इस समस्या की ज्यादा शिकार होती हैं। 40 के बाद फाइब्रॉइड का जोखिमबढ़ जाता है, क्योंकि इस उम्र में हार्मोनल बदलाव ज्यादा होते हैं। जिन महिलाओं को जल्दी मासिक धर्म शुरू हो गया हो या जिन्हें बांझपन की समस्या हो, उनमें फाइब्रॉइड का खतरा बढ़ सकता है। मोटापा, गलत जीवनशैली और तनाव भी इसका कारण बन सकते हैं।
बच्चेदानी में गांठ होने के कारण
एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन का असंतुलन इसका सबसे बड़ा कारण है, ये हार्मोन गर्भाशय की दीवार को प्रभावित करते हैं, जिससे फाइब्रॉइड बनते हैं। परिवार में किसी को पहले यह समस्या रही हो, तो अगली पीढ़ी में यह होने की संभावना रहती है। अनहेल्दी लाइफस्टाइल से भी गांठें बनने का खतरा बढ़ जाता है। गर्भनिरोधक दवाओं का ज्यादा सेवन भी इस मुसीबत को न्यौता देता है, क्योंकि इससे हार्मोनल असंतुलन हो सकता है।
बिना ऑपरेशन के फाइब्रॉइड का इलाज संभव है या नहीं?
बिना ऑपरेशन के फाइब्रॉइड का इलाज छोटे फाइब्रॉइड में संभव है, लेकिन बड़े फाइब्रॉइड में सर्जरी की जरूरत पड़ सकती है। फाइब्रॉइड को छोटा करने के लिए हार्मोनल दवाइयां दी जाती हैं, मासिक धर्म को नियमित करने और ब्लीडिंग कम करने के लिए दवाइयां दी जाती हैं। हालांकि अगर समस्या बड़ी है तो एम्बोलाइजेशन थेरेपी की सलाह दी जाती है, जिसमें डॉक्टर फाइब्रॉइड तक खून की सप्लाई रोकने के लिए इंजेक्शन देते हैं। इससे फाइब्रॉइड सिकुड़ने लगता है। इसके अलावा अल्ट्रासाउंड थेरेपी की मदद से फाइब्रॉइड को गर्म करके नष्ट किया जाता है। यह प्रक्रिया दर्द रहित होती है और ऑपरेशन की जरूरत नहीं पड़ती।
कब करानी पड़ती है सर्जरी?
अगर फाइब्रॉइड बहुत बड़े हो जाएं और दवाइयों से फर्क न पड़े या गर्भधारण में रुकावट डालें। बार-बार ब्लीडिंग या दर्द होने और मूत्राशय या आंतों पर दबाव डलने पर डॉक्टर लैप्रोस्कोपिक सर्जरी या ओपन सर्जरी करने की सलाह देते हैं।