तुरतुरिया, छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले से लगभग 84 किलोमीटर और बलौदाबाजार जिले से 29 किलोमीटर दूर, कसडोल तहसील से 12 किलोमीटर और सिरपुर से 23 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक अद्भुत धार्मिक एवं प्राकृतिक स्थल है। इसे सुरसुरी गंगा भी कहा जाता है। यह स्थान अपनी प्राकृतिक सुंदरता, धार्मिक महत्व और ऐतिहासिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है।
प्राकृतिक सुंदरता और ऐतिहासिक महत्व:
तुरतुरिया एक पहाड़ी क्षेत्र है, जो बारनवापारा अभ्यारण के पास स्थित है। यह स्थान अपने आसपास के सुरम्य पहाड़ियों और हरियाली से घिरा हुआ है, जो इसे एक मनोरम स्थल बनाता है। तुरतुरिया का नाम “तुरतुरिया” इसलिए पड़ा क्योंकि बलभद्री नाले का जलप्रवाह चट्टानों के माध्यम से गुजरते हुए बुलबुलों की आवाज उत्पन्न करता है, जिसे “तुरतुर” कहा जाता है। यही कारण है कि इस स्थान को तुरतुरिया नाम से जाना जाता है।
इस स्थान पर एक जलकुंड भी है, जहाँ जलप्रवाह एक लंबी संकरी सुरंग से होकर गिरता है। इस जलकुंड के पास एक गाय के मुंह की आकृति बनाई गई है, जिससे जल उसके मुँह से गिरते हुए दिखाई देता है। इस स्थान पर कई प्राचीन कलात्मक मूर्तियाँ और शिलालेख भी पाए गए हैं, जो इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को प्रमाणित करते हैं।
धार्मिक महत्व:
प्रदत्त जनश्रुति के अनुसार, त्रेतायुग में महर्षि वाल्मीकि का आश्रम यहीं स्थित था और लवकुश का जन्म भी यहीं हुआ था। यह स्थल बौद्ध, वैष्णव और शैव धर्म से संबंधित मूर्तियों और शिलालेखों से समृद्ध है, जो यह सिद्ध करते हैं कि यहां तीनों धार्मिक संप्रदायों का संगम हुआ करता था।
यह स्थल बौद्ध संस्कृति का केंद्र भी माना जाता है, और सिरपुर के पास होने के कारण यह संभावना और अधिक प्रबल हो जाती है कि यह एक प्राचीन बौद्ध विहार का स्थल रहा होगा, जहाँ बौद्ध भिक्षुणियों का निवास था। यहां से प्राप्त शिलालेखों और मूर्तियों का समय 8वीं-9वीं शताब्दी का माना जाता है।
विशेष स्थल और मूर्तियाँ:
- विष्णु प्रतिमाएँ: तुरतुरिया के जलकुंड के पास दो विष्णु प्रतिमाएँ हैं, एक खड़ी हुई स्थिति में और दूसरी में विष्णुजी शेषनाग पर बैठे हुए हैं।
- वीरों की मूर्तियाँ: जलकुंड के पास दो वीरों की पाषाण मूर्तियाँ भी हैं, जिनमें एक वीर को सिंह से लड़ते हुए और दूसरे को जानवर की गर्दन मरोड़ते हुए दर्शाया गया है।
- शिवलिंग और स्तंभ: इस स्थल पर अनेक शिवलिंग और प्राचीन पाषाण स्तंभ पाए गए हैं, जिनमें कलात्मक खुदाई की गई है।
- बुद्ध की मूर्तियाँ: कुछ प्राचीन बुद्ध की मूर्तियाँ भी इस स्थल पर पाई जाती हैं, जो इसके बौद्ध धार्मिक महत्व को साबित करती हैं।
पारंपरिक पूजा और मेला:
तुरतुरिया स्थल पर स्त्री पुजारिनों की नियुक्ति एक प्राचीन परंपरा के रूप में होती है। यह स्थल पूष माह में आयोजित तीन दिवसीय मेले के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं।
आकर्षण और पर्यटकों के लिए:
तुरतुरिया न केवल धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध है, बल्कि अपनी अद्भुत प्राकृतिक सुंदरता के कारण यह पर्यटकों को भी आकर्षित करता है। यहाँ के शांत वातावरण, पहाड़ी दृश्य और प्राचीन अवशेष यह स्थल एक अद्वितीय पर्यटन स्थल बनाते हैं।
निष्कर्ष:
तुरतुरिया एक ऐसा स्थल है जो धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के साथ-साथ प्राकृतिक सुंदरता से भी भरपूर है। यहाँ की प्राचीन मूर्तियाँ, शिलालेख और ऐतिहासिक स्थल इसे एक महत्वपूर्ण धार्मिक और पर्यटन स्थल बनाते हैं। अगर आप धार्मिक स्थलों और ऐतिहासिक धरोहरों में रुचि रखते हैं, तो तुरतुरिया एक आदर्श स्थल है जहाँ आप आकर मानसिक शांति और आत्मिक संतोष प्राप्त कर सकते हैं।