एक बार एमबीए के प्रतिभागियों का इंटरव्यू चल रहा था . एक प्रतिभागी का नंबर आया तो प्रश्नकर्ता ने पूछा कि यातो तुम चार सरल सवालों के जवाब दो या एक कठिन सवाल का जवाब दे दो . प्रतिभागी ने तुरंत कहा , आप कठिन सवाल पूछ लें . प्रश्नकर्ता ने पूछा , बताओ पहले मुर्गी आयी या अंडा ? प्रतिभागी तपाक से बोला , मुर्गी . प्रश्नकर्ता ने पूछा, विस्तार से बताएं ? प्रतिभागी ने कहा, दूसरा कठिन सवाल मत पूछिए . और अपनी तात्कालिक बुद्धि के कारण वह चयनित हो गया.
जीवन में इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि हमारे पास क्या नहीं है परन्तु हमारे पास जो है , उससे साथ हम निर्णय लेकर क्या बेहतरी ला सकते हैं . यही सफलता का मूलमंत्र भी है. आजकल लोगों के जीने का अंदाज़ बेहद पेचीदा हो गया है. वे सरलतम परेशानी आने पर भी उसपर इतना ज़ोर देते हैं कि वह जटिल लगने लगती है. हर गतिविधि में जीतने की चाह ने अंदर के इंसान को यांत्रिक खिलाड़ी बना दिया है. जबकि सहजता से स्वीकार की हुई हर असफलता आदमी की काबिलियत बढ़ा देता है और सही मौका आने पर स्प्रिंग एक्शन की तरह वह कई गुना तेज़ी से ऊंचाई हासिल करता है . किसी भी परिस्थिति का गहनता से अवलोकन करना और सहज बुद्धि से निर्णय लेना सफल होने का पहला सूत्र है (ऑब्जरवेशन एवं कॉमन सेन्स ).
आज के दौर के सफलतम उद्यमी रतन टाटा ने कहा है कि मैं सही निर्णय लेने पर भरोसा नहीं करता बल्कि मैं सहज बुद्धि से निर्णय लेता हूँ और उन्हें सही साबित करने के लिए मेहनत करता हूँ . हम सब निर्णय लें फिर उससे बेहतरी लाने का पूरा प्रयास करें. इसी कामना के साथ यह अंक समर्पित …..
इंजी. मधुर चितलंग्या
संपादक , दैनिक पूरब टाइम्स