गुरु पूर्णिमा पर
गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥
आज गुरु पूर्णिमा है. आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है. माना जाता है कि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ मास की पूर्णिमा को हुआ था. वेदों के सार ब्रह्मसूत्र की रचना भी वेदव्यास ने आज ही के दिन की थी.बौद्ध ग्रंथों के अनुसार ज्ञान प्राप्ति के पांच सप्ताह बाद भगवान बुद्ध ने सारनाथ पहुंच आषाढ़ पूर्णिमा के दिन अपने प्रथम पांच शिष्यों को उपदेश दिया था. इसे बौद्ध ग्रंथों में ‘धर्मचक्र प्रवर्तन’ कहा जाता है. बौद्ध धर्मावलंबी इसी गुरु-शिष्य परंपरा के तहत गुरु पूर्णिमा मनाते हैं. मेरे विचार से विश्व में भगवान बुद्ध ही ऐसे गुरु हुए हैं जिन्होंने अतिसरलता से समता भाव , दृष्टा भाव , अनित्य बोध रखते हुए , पंचशील का पालन करते हुए सभी प्राणियों को विपश्यना विद्या दी जिसके माध्यम से हम निर्वाण (मोक्ष) की तरफ अपने कदम बढ़ा सकते हैं . मैं उन्हें शत शत नमन करता हूं ।
गुरु गोविन्द दोउ खड़े काके लागूं पाय,
बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो बताय ।
कलियुग में जिसने दीक्षा लेकर गुरु नहीं बनाये हैं वे मन ही मन भगवान सदाशिव शंकर या प्रभु बजरंग बली हनुमान को अपना गुरु मानकर उन्हें प्रणाम करें . इनके अतिरिक्त पिछली सदी में जन्मे महाप्रतापी पुरुषोत्तम , जिन्होंने अपने जाने के बाद भी अपना अस्तित्व बनाये रखा और हमेशा अपने भक्तों की तरफ सहायता का हाथ बढाए रखा सद्गुरु साईं नाथ को प्रणाम करता हूं . मैंने अभी तक अपने जीवन में दीक्षा नहीं ली परन्तु श्रद्धा से गुरुओं को नमन किया है और अनेक चमत्कारिक अनुभव प्राप्त किये हैं . परिवार के गुरु सिंदी के गौरीशंकर महाराज , पिता के गुरु आचार्य श्री राम शर्मा को श्रद्धा पूर्वक नमन करता हूं . दक्षिण भारत की संत जोड़ी ‘अम्मा भगवान ‘ ने सूक्ष्म रूप से गुरु की तरह मेरा मार्गदर्शन किया , मैं उन्हें कोटिशः नमन करता हूं .
गुरु-शिष्य संबंध संयोग मात्र भी है और एक होशपूर्ण चुनाव भी। मिश्च के रहस्यवादी कहते हैं, जब शिष्य तैयार हो जाता है, तब गुरु प्रकट हो जाता है। गुरु के लिए तो यह पूरी तरह से एक होशपूर्ण बात होती है।
जिस शिष्य को गुरु के वचनों में श्रद्धा, विश्वास और सदभावना होती है उसका कल्याण अति शीघ्र होता है।
इंजी.मधुर चितलांग्या , प्रधान संपादक,
दैनिक पूरब टाइम्स