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Friday, December 27, 2024

आर्ट ऑफ लिविंग के प्रणेता – गुरुवर श्री श्री रविशंकर

आर्ट ऑफ लिविंग एक जीने की ऐसी कला है जो मन को तनावरहित शांत कर देती है व उर्जा
से भर देती है . आर्ट ऑफ लिविंग को प्रैक्टिस करन वाले तन व मन से स्वस्थ रहकर सदैव
प्रफुल्लित रहते हैं .


श्री श्री रविशंकर का जन्म भारत के तमिलनाडु राज्य में 13 मई 1956 को हुआ। उनके
पिता का नाम व वेंकेट रतनम था जो भाषाविद्‌ थे। उनकी माता श्रीमती विषलक्षी सुशील
थीं। शंकराचार्य से प्रेरणा लेते हुए उनके पिता ने उनका नाम रखा शंकर।
शंकर शुरू से ही आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे। मात्र चार साल की उम्र में वे भवदगीता
के श्र्लोकों का पाठ कर लेते थे। बचपन में ही उन्होंने ध्यान करना शुरू कर दिया था।
उनके शिष्य बताते हैं कि फीजिक्स में अग्रिम डिग्री उन्होंने 17 वर्ष की आयु में ही
ले ली थी।
शंकर पहले महर्षि महेश योगी के शिष्य थे। उनके पिता ने उन्हें महेश योगी को सौंप
दिया था। अपनी विद्वता के कारण शंकर महेश योगी के प्रिय शिष्य बन गये। उन्होंने
अपने नाम रवि शंकर के आगे श्री श्री् जोड़ लिया जब प्रखयात सितार वादक रवि शंकर ने
उन पर आरोप लगाया कि वे उनके नाम की कीर्ति का इस्तेमाल कर रहे हैं।
रवि शंकर लोगों को सुदर्शन क्रिया सिखाते हैं। इसके बारे में वो कहते हैं कि 1982
में दस दिवसीय मौन के दौरान कर्नाटक के भाद्रा नदी के तीरे लयबद्ध सांस लेने की
क्रिया एक कविता या एक प्रेरणा की तरह उनके जेहन में उत्तपन्न हुई। उन्होंने इसे
सीखा और दूसरों को सिखाना शुरू किया।

1982 में श्री श्री रवि शंकर ने आर्ट आफ लिविंग की स्थापना की। यह शिक्षा और
मानवता के प्रचार प्रसार के लिए कार्य करती है। 1997 में इंटरनेशनल एसोसियेशन फार
ह्यूमन वैल्यू् की स्थापना की जिसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर उन मूल्यों को
फैलाना है जो लोगों को आपस में जोड़ती है।
श्री श्री रवि शंकर कहते हैं कि सांस शरीर और मन के बीच एक कडी की तरह है जो दोनों
को जोड ती है। इसे मन को शांत करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। वे इस बात पर
भी जोर देते हैं कि ध्यान के अलावा दूसरे लोगों की सेवा करनी चाहिए। वे विज्ञान और आध्यात्म
को एक.दूसरे का विरोधी नहींए बल्कि पूरक मानते हैं। वे एक ऐसी दुनिया बनाने का प्रयत्न कर रहे हैं
जिसमें रहने वाले लोग ज्ञान से परिपूर्ण हो ताकि वे तनाव और हिंसा से दूर रह सकें।

सुदर्शन क्रिया आर्ट आफ लिविंग कोर्स का आधार है। जो लोग सुदर्शन क्रिया सीखने की इच्छा जताते हैं
उन्हें एक समझौते पर हस्ताक्षर करना पड़ता है कि वे सुदर्शन क्रिया को किसी अन्य व्यक्ति को नहीं
बताएंगे केवल अधिकृत शिक्षक गुरूकृपा से इसे सिखा सकते हैं। सुदर्शन क्रिया के बारे में ऐसा कहा जाता
है कि यह शरीर मन और भावनाओं को ऊर्जा से भार देती है तथा उन्हें प्राकृतिक स्वरूप में ले आती है।

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