प्राण प्रतिष्ठा एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है, जिसमें मूर्ति, यंत्र, या मंदिर में देवता की ऊर्जा का आवाहन किया जाता है। यह प्रक्रिया देवता को स्थायी रूप से स्थान प्रदान करने का प्रतीक होती है। इसे विशेष रूप से हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है।
प्राण प्रतिष्ठा कौन कर सकता है?
- योग्य पुजारी या आचार्य:
- प्राण प्रतिष्ठा को संपन्न करने के लिए वेदों और शास्त्रों में पारंगत पुजारी या आचार्य का होना आवश्यक है।
- उनके पास वैदिक मंत्रों, अनुष्ठानों, और अग्निहोत्र विधियों का ज्ञान होना चाहिए।
- साधक या गुरु:
- यदि कोई व्यक्ति आध्यात्मिक रूप से सशक्त और सिद्ध हो, तो वे भी प्राण प्रतिष्ठा कर सकते हैं।
- इसमें ध्यान, तपस्या, और भक्ति का महत्व होता है।
- समूह या संस्थान:
- बड़ी मूर्तियों या यंत्रों की प्राण प्रतिष्ठा मंदिर के संस्थान द्वारा आयोजित होती है, जिसमें कई पुजारी और विद्वान सम्मिलित होते हैं।
- आम व्यक्ति:
- यदि व्यक्ति स्वयं श्रद्धालु हो और पूरी विधि का पालन कर सके, तो वह आचार्य की मदद से इसे संपन्न कर सकता है।
प्राण प्रतिष्ठा की प्रक्रिया:
- स्थान की शुद्धि:
- यज्ञ, हवन, और जल छिड़काव के माध्यम से स्थान शुद्ध किया जाता है।
- मूर्ति या यंत्र का अभिषेक:
- दूध, दही, घी, शहद, और गंगाजल से मूर्ति या यंत्र को स्नान कराया जाता है।
- मंत्रोच्चार:
- वैदिक मंत्रों का उच्चारण किया जाता है, जो देवता की उपस्थिति का आह्वान करते हैं।
- नेत्र अनावरण:
- मूर्ति के नेत्रों पर पट्टी होती है, जिसे पूजा के अंत में हटाया जाता है। इसे देवता की उपस्थिति का प्रतीक माना जाता है।
- प्रसाद और आरती:
- पूजा के बाद प्रसाद चढ़ाया जाता है और आरती की जाती है।
महत्वपूर्ण बातें:
- प्राण प्रतिष्ठा के बाद मूर्ति या यंत्र को साधारण वस्तु के रूप में नहीं माना जाता।
- इसकी नियमित पूजा और देखभाल आवश्यक होती है।
- यदि मूर्ति खंडित हो जाए या स्थानांतरण की आवश्यकता हो, तो इसे विधिपूर्वक निष्क्रिय (अवस्थापन) किया जाता है।