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संस्मरण : कभी कभी ऐसा भी होता हैं

एक बार मैंने कवर्धा के पानी टंकी के निर्माण कार्य को देख कर बेमेतरा के रास्ते दुर्ग लौटने की जगह गण्डई के रास्ते दुर्ग लौटना तय किया। शाम के लगभग 5 बज गये थे और अपनी महिन्द्रा जीप का ड्राइवर न आने की वजह से मुझे स्वंय चला कर लौटना था।
गण्डई से लगभग आठ-दस किलोमीटर पहले गाड़ी के इंजन से एक बार जोर से खड़-खड़ की आवाज आई और वह गर्म होने लगी । मैने गाड़ी रोक कर कुछ देर ठण्डा कर पानी डाला और फिर चल पड़ा। मुझे गाड़ी की स्थिति बिलकुल ठीक नही लग रही थी। किसी तरह हिचकोले खा खाकर चल रही थी। गण्डई के पहले एक मंदिर के सामने वह पूरी तरह से रूक गई। मैंने उसे चालू करने की बहुत कोशिश की, फिर उतरकर लोगों की मदद से धक्का भी लगवाया पर वह चालू ही नही हुई।
तरह-तरह के विचार मेरे मन मे आने लगे। सोचने लगा कि बिना ड्राइवर के मैं आया ही क्यों ? क्या गण्डई में जीप का अच्छा मिस्त्री मिलेगा ? मिस्त्री मिल भी गया तो क्या इंजन का सामान मिलेगा ? क्या मेरी लापरवाही की वजह से हजारों रुपए का फटका लगेगा ? क्या मैं कोई अन्य गाड़ी पर जीप को बांध कर दुर्ग तक खींच कर ले जाऊँ ? या आज जीप को किसी सुरक्षित जगह पर रख कर कल ड्राइवर को किसी मिस्त्री के साथ भेंजू ?
इसी सोच में डूबा था कि मंदिर की घण्टी सुनाई पड़ी। मैने खुद से कहा पहले मंदिर हो आता हूं फिर आगे क्या होगा, देखूंगा। भगवान के सामने आंख बंद कर अपनी परेशानी में मदद मांग कर मैं पल्टा ही था कि धम से आवाज आई। मैंने देखा की लगभग 30-35 वर्ष की संभ्रात घर की दिखने वाली महिला गिर गई। मंदिर में दो तीन लोग और थे। किसी ने उसे उठाया कोई भाग कर पानी लाने गया और मैं भी भागकर उसके पास पहुंचा। वह बहुत कमजोर दिख रही थी और ऐसा लग रहा था कि वह कुछ दिनों से भूखी हैं। उसे गिरने से ज्यादा चोट नही लगी थी। पूछने पर उसने बताया कि वह बेमेतरा की रहने वाली हैं और जबलपुर अपने मायके जा रही हैं। उसके साथ उसके दो बच्चे भी हैं। जब मैने उससे पूछा कि बेमेतरा से कर्वधा होते हुए वह जबलपुर क्यों नही गई और यहां गण्डई क्यों आई हैं तो वह रोने लगी । उसने बताया कि शादी के बाद वह अपने पति के साथ बेमेतरा में रह रही थी। चार माह पहले उसके पति का देहान्त हो गया था। उसके मां बाप, उसे जबलपुर वापस ले जाने आयें थे परन्तु स्वाभिमानी होने की वजह से उसने अपने माता पिता को मना कर दिया था और कहा कि मै अपना और अपने बच्चों का गुजर बसर स्वंय कर लूंगी। उसके बाद उसे बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ा। पिछले दो महीने से तो वह मकान का किराया भी नही दे पा रही थी और बच्चों को ठीक से खिला-पिला भी नही पा रही थी। इसके अलावा अकेली महिला पर बुरी नजर डालने वालों से बहुत हलाकान हो गई थी। आज सुबह उसने अपने बच्चों व अपने कुछ आवश्यक सामानों के साथ जबलपुर जाने का निर्णय किया। उसके पास जबलपुर तक की टिकिट के पैसे भी नही थे। गण्डई में उसके पिता के कोई परिचित रहते थे। उनकी मदद से वह जबलपुर चली जायेगी। ऐसा सोचकर, कुछ पैसा उधार ले, वह अपने बच्चों के साथ गण्डई आ गई। परिचित के घर ताला मिला। उसने सोचा कि वह परिचित अपने घर कुछ देर में आ जायेगा। शाम को पता चला कि वह परिचित सहपरिवार कुछ दिनों के लिए बाहर गया हुआ हैं। वह अपने किराये, खाने का पैसा न होने की बात तथा रात में ठहरने की जगह न होने की बात बच्चों को नही बताना चाहती थी क्योंकि वे वैसे भी डरे हुऐ थे। वह बच्चों को सड़क के दूसरी तरफ, छोटे से होटल में बैठा कर, भगवान से प्रार्थना करने आई थी। मैने उससे कहा, चलो देखते हैं यदि मै तुम्हारी कोई मदद कर सकता हूं।
मैने दो प्यारे से थके हारे बच्चे देखे। होटल वाले से पता चला कि जबलपुर की बस यहीं पर रूकती हैं। वह भला आदमी था। मैंने तीनों के लिए जबलपुर के टिकट व खाने का पैसा होटल वाले को दिया और आग्रह किया कि वह खिला पिला कर, उन्हे बस में बैंठा दे। जब मैने उस महिला को पैसे देने का प्रयास किया तो वह मेरा नाम पता पूछने लगी और कहने लगी कि यह उधार, वह वापस लौटाएगी। मेरे इंकार करने पर उसने पैसे लेने से इंकार कर दिया। किसी प्रकार से मैं जबरदस्ती उसके बच्चे को, यह कह कर कुछ पैसे थमा पाया कि रास्ते में काम आ सकता है। वह महिला मेरे पैरों पर पड़ कर बोली, आपको भगवान ने मेरे मदद के लिए भेजा हैं। बल्कि आप मेरे लिए भगवान ही हैं। मैंने उसे कहा, ऐसा नही कहते। बस, प्रभु पर अटूट विश्वास रखो। इस दरमियान मैं अपनी समस्या तो भूल ही गया था। याद आते ही, मैं तत्काल अपनी जीप की तरफ आया। फिर से दो-तीन लोगो से धक्का लगाने का आग्रह किया। मेरे आर्श्चय का ठिकाना ही न रहा, जीप चालू हो गई और भगवान का नाम लेकर मै बिना किसी भी परेशानी के, धीरे-धीरे दुर्ग भी पहुंच गया। मैने प्रभु को लाख-लाख धन्यवाद दिया, मेरी मदद करने के लिये तथा मुझे किसी और की मदद का निमित्त (साधन) बनाने के लिए। सच में, इस घटना ने मुझे झकझोर दिया । ऐसा लगा, ऊपर वाले ने मुझे उन लोगों की मदद करने के लिए नहीं, बल्कि मेरी परीक्षा लेने और अपने अस्तित्व का अहसास कराने यह परिस्थिति बनाई थी.

इंजी. मधुर चितलांग्या, प्रधान संपादक
दैनिक पूरब टाइम्स

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