संबलपुर, कांकेर जिले में 100 वर्ष पुराना गणेश मंदिर आस्था का केंद्र है। भक्तों का विश्वास है कि बप्पा के द्वार पर आने वाले हर भक्त की इच्छाएं पूरी होती हैं। सप्ताह के प्रत्येक मंगलवार को, पं. लालबहादुर मिश्रा शास्त्री ने बताया कि यहां गणेश को चोला चढ़ाया जाता है और खिचड़ी महाप्रसादी भोग चढ़ाकर भक्तों में बाँटा जाता है।
रायपुर, बिलासपुर, धमतरी, दुर्ग, राजनादगांव और अन्य जिलों से बहुत से लोग गणेशजी को देखने आते हैं। गणेशजी मंगलवार को पूजे जाते हैं, इसलिए वे हनुमानजी से बहुत जुड़े हैं। यही कारण है कि यहां बप्पा कुमकुम रेंज में हैं। गणेशजी को हर दिन पंडित स्वयं भोजन बनाते हैं।
मन्दिर में प्रतिमा रखने की भी रोचक कहानी है। मंदिर का इतिहास पूछने पर पुराने लोगों ने बताया कि एक पंडित ने कांकेर राजवाड़ा की बासला में तालाब में मूर्ति को तैरते देखा। इसके बाद गणेश प्रतिमा को संबलपुर ले जाना पड़ा।
बैलगाड़ी से भगवान गणेश की प्रतिमा संबलपुर लाने का कार्य शुरू हुआ। यह मूर्ति छोटी थी, इसलिए बैलगाड़ी मंगवाई गई और यात्रा शुरू हुई। बैलगाड़ी कुछ दूर चलने के बाद अचानक पहिए टूट गए।
लोगों ने दूसरी बैलगाड़ी मंगवाई और फिर से प्रयास किया, लेकिन पहिए फिर से टूट गए। भगवान गणेश ने अपने अनुयायियों को परीक्षण दिया। सात किलोमीटर की इस यात्रा में बारह बैलगाड़ियों के पहिए एक के बाद एक टूटते चले गए। अंत में भगवान गणेश की प्रतिमा को संबलपुर ले जाते समय बारहवीं बैलगाड़ी का पहिया तब भगवान गणेश की प्रतिमा को कोई नहीं हिला सका, इसलिए वहीं मंदिर बनाया गया।