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संस्मरण : होते हैं प्रकृति के खेल निराले ! अपने ढंग से लोगों को सबक-सज़ा-पुरस्कार देती है


कल रात भर आंधी तूफ़ान के साथ भारी बारिश हुई . हवाओं की सांए-सांए पूरी रात संगीत की तरह चलती रही . वृक्षों की इस तरह की लगातार सरसराहट  वर्षों बाद देखकर मेरा मन प्रफुल्लित हो गया . लेकिन मैं जानता हूं कुछ लोगों का नुकसान भी हुआ होगा , उन्हें मेरी तरफ से सचमुच  की संवेदना. मां-प्रकृति की लीला अपरम्पार है , मैं उनसे बेहद प्रेम करता हूँ. वह अपने ढंग से लोगों को सबक-सज़ा-पुरस्कार देतीं हैं
       लगभग 25-26 साल पहले की एक घटना मुझे याद आ गई . मैं , मधुर कंस्ट्रक्शन कंपनी नाम से राजनांदगांव , दुर्ग में इंजीनियर-कॉन्ट्रेक्टर का काम करता था , साथ ही वाटर प्रूफिंग का कार्य करता था. कालंतर मैं सरकारी ठेकेदारी करने लग गया . मई माह की एक शाम मैं अपनी मोटर सायकल से शाम लगभग साढ़े तीन – चार बजे दुर्ग से राजनांदगांव अच्छे कपड़ों के साथ तैयार होकर एक बड़ा टेंडर देने के लिए आ रहा था . मुझे पता था कि यह टेंडर मुझे ही मिलना तय है . अन्य ठेकेदारों व विभागीय अधिकारियों से हुई बात से मुझे यह अहसास हो गया था . दुर्ग राजनांदगांव की दूरी मात्र 27 कि.मी. है . रास्ते के बीचों बीच सोमनी अंजोरा के बीच अचानक तेज़ आंधी चलने लगी , फिर उसकी रफ़्तार बढ़ते गई . मुझे लगा कि मैं बाइक समेत उड़ जाऊँगा . मैं एक झाड़ की तरफ बढ़ा तो देखा कि वह गिर सकता है , आगे दूसरे झाड़ की तरफ बढ़ा तो देखता हूँ कि वह बिजली के तार से टकरा रहा है और उससे चिंगारी निकल रही है . देखते ही देखते  अन्धेरा बढ़ने लगा . घबराकर , मैंने  सड़क से नीचे उतारकर अपनी बाइक को जमीन पर सुला दिया और जाकर एक मेढ़ के पीछे जाकर लेट  गया . कुछ देर में घुप अन्धेरा हो गया . ऐसा लगने लगा अंधड़ के साथ
कोई आफत आ रही है . फिर धीरे – धीरे अँधेरा छंट गया और तूफ़ान भी बंद हो गया . मैं धीरे- धीरे किसी प्रकार नांदगांव पहुंचा पर देर होने के कारण टेंडर नहीं जमा कर पाया . बेहद दुखी मन से मैंने यह बात अपने एक हित-चिंतक को बताई तो उन्होंने मुझसे एग्रीमेंट कर अपनी एक बेहतरीन ज़मीन पर बिल्डर लाइन में आने का प्रस्ताव रखा . जिसमे मैं बेहद अधिक सफल रहा . आर्थिक रूप से भी मेरी
अप्रत्याशित तरक़्क़ी हुई .

10 साल में एक बेहतर स्थिति में पहुंचने के बाद , स्वेच्छा से पढ़ने लिखने में अपार रुचि के कारण ,
मैं अपननी मनपसंद मीडिया लाइन में आ पाया . आज सोचता हूँ तो लगता है कि एक प्राकृतिक घटना ने, मानो,  जैसे मेरी ज़िंदगी बदल दी . मां प्रकृति के खेल अपरम्पार हैं , वह छिपे रूप में भी वरदान देती है
. यह भेद हम बरसों बाद समझ पाते हैं .  बिना प्रतिफल की चाह में मां प्रकृति हमें कितनी ही चीज़ें मुफ्त में देती है . आप सभी से अनुरोध कि आप सभी मां प्रकृति के लिये ज़रूर कुछ ना कुछ करने का संकल्प लें जैसे– वृक्षारोपण , रेनवाटर हार्वेस्टिंग , प्रदूषण नियंत्रण में मदद इत्यादि. भरोसा रखिये पूरी कायनात आपको अप्रत्याशित रूप से मदद करने  तैयार रहेगी . 

इंजी. मधुर चितलांग्या , संपादक
दैनिक पूरब टाइम्स

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