वो ख़्वाबों के दिन
( पिछले 2 अंकों में आपने पढ़ा : मन में अनेक अरमान लिए गांव से शहर पढ़ने आये एक युवा के दिल की धड़कन बढ़ा देती है , एक दिन अचानक , एक बंगले की पहली मंज़िल की खिड़की . वह देखता है वहां पर एक नाज़ुक व बेहद खूबसूरत युवती जोकि उसकी कल्पना से भी ज़्यादा सुंदर होती है . फिर एक दिन उसे महसूस होता है कि उस खिड़की के सैंकड़ों चक्कर बिलकुल बेअसर नहीं हैं . एकतरफा आकर्षण के कारण उस युवा की अंदरूनी कश्मकश और समर्पण की दास्तान )
एक प्रेम कहानी अधूरी सी ….
(पिछले रविवार से आगे की दास्तान भाग 3 )
आज खिड़की जल्दी खुल गयी . देखता हूं वह सोनपरी मुझे देख रही है और इशारे कर पूछ रही है , कहां थे तुम ? मुझे पहले विश्वास नहीं हुआ पर सचमुच दूर से नज़र आती उसकी मुस्कराहट से मैं झूम उठा . आज एक दोस्ती की शुरुआत का पक्का अहसास हो गया था . फिर दिल में, अपने लिये ही , संशय होने लगा कि क्या वह मेरे मज़े ले रही है ? वह क्यों मुझ पर अपनी मेहरबानी बरसाएगी ? क्या किसी दूसरे को दिखाने या जलाने के लिये उसने मेरे साथ यह मज़ाक़ किया था ? फिर दिल ने कहा कि भले ही वह बेहद खूबसूरत है पर मैं भी किसी से कम नहीं हूं . दिखने में अच्छा खासा हूं , स्मार्ट हूं . इंजींनियरिंग के फोर्थ इयर में पढ़ रहा हूं, और एक साल बाद इंजीनियर बन जाऊंगा . फिर सोचने लगा कि मेरे जैसे तो अनेकों दोस्त , जूनियर व सीनियर , होस्टल से टल्ले खाने एक एकदम अच्छे से तैयार होकर निकलते हैं . इंदौर में एक से एक स्मार्ट व पैसे वाले बेशुमार लड़के हैं , तो क्या उनमें से किसी से मेरी इस सोनपरी की नज़रें चार नहीं हुई होंगी . फिर खुद से बोल उठा ..
जो देख रहा हूं मैं वो ख्वाब तो नहीं
कांटो के बीच छिपा हुआ गुलाब तो नहीं
उसका एक बेहद छोटा सा इशारा कि तुम कहां थे ? सचमुच अद्भुत था . मुझपर मानो बिजली गिर गयी थी , मैं बुत सा बन वहां खड़ा रह गया . जब होश आया तो वह खिड़की से जा चुकी थी. एक बारगी मुझे लगा कि मैं सपना तो नहीं देख रहा हूं, फिर लगा कि कहीं मेरे समझने में कोई चूक तो नहीं हुई . पर मुझे इशारा सचमुच स्पष्ट लगा था . मेरे कान और गाल लाल हो गए . मुझे बुखार सा आ गया . मैंने कॉलेज से छुट्टी मार दी . मैं अकेले में उस मदहोश करने वालेअहसास का पूरी तरह मज़ा लेना चाहता था . कालेज से लौट कर मेरे एक खास दोस्त ने मुझसेपूछा , कैसी है तुम्हारी तबियत ? मैं बोल पड़ा-
क्या बताऊं तुम्हे ? क्या समझ सकोगे?
दर्द पहली बार हुआ, मर्ज से निपट सकोगे ?
वह हंसते हुए बोला , चित्तू तू गया काम से . मुझ पर ग़ालिब का भूत सवार हो चुका था . मैं बोला-
काम तो सभी करते हैं , निकम्मा बनकर दिखलाओ
प्यार तो सभी करते हैं, परवाना बनकर दिखलाओ |
वह गंभीर होकर बोला, क्या सचमुच ? अब मैं हंसते हुए बोला , एक तरफ़ा इश्क़ करने में इस हॉस्टल के हर लड़के की मास्टरी है और मैं भी इसी होस्टल में रहता हूं. वो भी आहें भरते बोला, सच है यार, जब वो लाइन देती थी तो मैं पढ़ता रहता था. अब मैं लाइन चाहता हूं तो वो मेरी तरफ यह सोचकर देखना छोड़ चुकी है कि मैं पढ़ाकू हूं . फिर मुस्कुराते हुए बोला , थोड़ी सी कसक ज़रूरी होती है, हम जवान लड़कों में ज़िंदा होने का अहसास दिलाने के लिए . वर्ना क्या फर्क रह जाएगा हममे और उन बेजान चीज़ों में. मैंने राहत की सांस ली कि उसका ध्यान मुझपर से हट गया . उस पूरी रात मैं सो नहीं पाया . एक अजीब सी बेचैनी सी छाई थी .
सोचता था कि कल मैं बुत बनकर खड़ा नहीं रहूंगा . इशारों में ही अपना हाल दिल बयान कर दूंगा . सोचता था कि इज़हार के बाद प्रेम गहरा होता है पर इंकार हुआ तो क्या होगा ? सुबह , जब मैं उसके घर के पास पहुंचा तो वह खिड़की खुली हुई थी. मैं आंखे गड़ाकर देखता रहा कोई हलचल नहीं दिखी . बेहद मायूस और रुंआसा खुद से कहने लगा –
मायूस तो हूं वायदे से तेरे , कुछ आस नहीं पर आस भी है
मैं तेरे ख्यालों के सदके, तू पास नहीं पर पास भी है .
(अगले रविवार अगली कड़ी )
इंजी.मधुर चितलांग्या, संपादक,
दैनिक पूरब टाइम्स