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Sunday, February 9, 2025
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शिवरीनारायण मंदिर,शिवरीनारायण धाम,छत्तीसगढ़

भगवान श्री शिवरीनारायण धाम रायपुर से करीब 178 km. की दूरी पर स्थित एक अत्यंत प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। जो की जांजगीर चांपा जिले के शिवनाथ, महानदी तथा जोक इन तीन नदियों के पवित्र संगम पर शबरी-नारायण नाम का यह अद्भुत मंदिर स्थित है

वास्तुकला की दृष्टि से लगभग 12वीं शताब्दी में हैह्य वंश के शासन काल में हैह्य वंशी राजाओं द्वारा शबरी नारायण मंदिर में चतुर्भुजी भगवान विष्णु तथा माता शबरी जी की प्रतिमा गर्भगृह में प्रतिस्थापित किया गया था, जो आज भी यथावत स्थित हैं।

शिवरीनारायण का इतिहास- जांजगीर जिले के शिवरीनारायण में स्थित मंदिर की इतिहास काफी पुरानी है। महानदी के तट के किनारे बने इस मंदिर के बारे में यह कहा जाता है कि इसका निर्माण 11वीं शताब्दी में करवाया गया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रभु श्री राम के अनन्य भक्त शबरी का आश्रम भी मंदिर के पास ही है।
लक्ष्मीनारायण मंदिर में वैष्णव शैली की अत्यंत ही उत्कृष्ट वास्तुशिल्प की डिजाइन देखी जा सकती है। माघ पूर्णिमा के मौके पर यहां एक उत्सव का आयोजन किया जाता है। लेकिन शिवरीनारायण धाम का इतिहास तो रामायण काल के समय से जुड़ा हुआ है।

पुरुषोत्तम तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध एवं विख्यात शिवरीनारायण जनश्रुति के अनुसार मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्री राम की वनवास काल के दौरान दंडकारण्य में ही शबरी माता से भेंट हुई थी, तथा उनके जूठे बेर भी प्रभु श्री राम इसी स्थान पर खाये थे
यही कारण है कि शबरी नारायण से इस स्थान का नाम शिवरीनारायण हो गया एवं प्रभु श्री राम के अनन्य भक्त शबरी की कथा जन-जन में यही से प्रचलित हुई।

नर नारायण मंदिर की महिमा- धार्मिक नगरी शिवरीनारायण प्राचीन मंदिरों में से एक है. यहां नर नारायण भगवान के मंदिर को बड़ा मंदिर के नाम से जाना जाता है. वहीं मंदिर के सामने माता शबरी का प्राचीन मंदिर विद्यमान है, जहां लोग आस्था के साथ आते हैं और अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए दर्शन करते हैं
यहां मंदिर के सामने अक्षय कृष्ण वट वृक्ष है, जिसका हर पत्ता दोना आकृति में बना है. मान्यता है कि, इसी दोने में माता शबरी ने अपने जूठे बेर राम चंद्र जी को खिलाए थे.

द्वापर से त्रेता तक शबरी ने की प्रतीक्षा- भगवान कृष्ण ने जिस कुबड़ी महिला को मथुरा में सुंदरी कहकर आवाज लगाई थी और उसे कुबड़ से मुक्ति दिलाई थी. उसी देव कन्या ने अपना प्रेम प्रकट करने के लिए कृष्ण जी से फिर मिलने की इच्छा जताई थी.
जिसे भगवान कृष्ण ने राम अवतार में मिलने का वादा किया था. त्रेता युग में माता शबरी अपने अंत काल तक राम का इंतजार करती रही और राम वन गमन में माता शबरी ने अपने जूठे बेर खिलाए. राम के प्रति माता शबरी की आस्था, राम के प्रति प्रेम और समर्पण का भाव राम के आने का विश्वास और इंतजार आज भी यहां देखा जाता है.

यही है भगवान जगन्नाथ का मूल स्थान- शिवरीनारायण में हर साल माघी पूर्णिमा से 15 दिनों का मेला लगता है. मान्यताओं के अनुसार भगवान जगन्नाथ का मूल स्थान यही है. माघी पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ अपने मूल स्थान आते हैं, जिसके कारण भगवान नर नारायण के दर्शन के लिए लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं.
लोगों की भीड़ और उत्साह को ध्यान में रखते हुए छत्तीसगढ़ शासन प्रतिवर्ष 3 दिनों तक शबरी महोत्सव का आयोजन करता है. साथ ही महानदी के घाट को सुन्दर बनाया गया है.शासन राम वन पथ गमन के प्रथम चरण में शामिल कर शिवरीनारायण को पर्यटन के क्षेत्र में बढ़ावा दे रही है.

स्थापत्य कला एवं मंदिर- शिवरीनारायण का मंदिर समूह दर्शनीय है। यहां की स्थापत्य कला और मूर्तिकला बेजोड़ है। यहां नर-नारायण मंदिर है, इसका निर्माण राजा शबर ने करवाया था। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। केशवनारायण मंदिर ईंटों से बना है, यह पंचरथ विन्यास पर भूमि शैली पर निर्मित है। यहां चंद्रचूड़ महादेव मंदिर, जगन्नाथ मंदिर भी दर्शनीय है। यह पुरी के जगन्नाथ मंदिर के सदृश्य है।

प्रसिद्ध है यहां की रथ यात्रा- शिवरीनारायण शैव, वैष्णव धर्म का प्रमुख केन्द्र रहा है। यह स्थान भगवान जगन्नाथ का मूल स्थान होने के कारण यहां रथयात्रा का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ की विग्रह मूर्तियों को यहीं से जगन्नाथपुरी ले जाया गया था। यहां पुरी की तर्ज पर रथ यात्रा का आयोजन होता है। इसमें छत्तीसगढ़ के अलावा अन्य राज्यों के साधु संत और श्रद्धालु शामिल होते हैं।

प्रभु राम महानदी मार्ग से यहां पहुंचे थे – प्रभु राम वनवास काल में मांड नदी से चंद्रपुर ओर फिर महानदी मार्ग से शिवरीनारायण पहुंचे थे छत्तीसगढ़ में कोरिया जिले के भरतपुर तहसील में मवाई नदी से होकर जनकपुर नामक स्थान से लगभग 26 किलोमीटर की दूर पर स्थित सीतामढ़ी-हरचौका नामक स्थान से प्रभु राम ने छत्तीसगढ़ में प्रवेश किया था। प्रभु राम ने अपने वनवास काल के 14 वर्षों में से लगभग 10 वर्ष से अधिक समय छत्तीसगढ़ में विभिन्न स्थानों पर व्यतीत किया था।
आज शिवरीनारायण धाम प्रदेश ही नहीं पुरे देश के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुवा है यह प्रतिवर्ष लाखो श्रद्धालु दर्शन करने आते है

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