उत्तर भारत के सबसे प्रसिद्ध और पौराणिक मंदिरों में से एक, चंडी मंदिर न केवल भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है, बल्कि यह वह पवित्र स्थान भी है जिसके नाम पर आधुनिक शहर चंडीगढ़ का नामकरण किया गया। हरियाणा के पंचकूला में शिवालिक पहाड़ियों की तलहटी में स्थित यह मंदिर हजारों वर्ष पुराना बताया जाता है और इसका इतिहास सीधे महाभारत काल से जुड़ा हुआ है।
शक्ति और विजय का प्रतीक
देवी शक्ति को समर्पित इस मंदिर में माँ चंडी देवी (दुर्गा का ही एक रूप) की पूजा की जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी चंडी ने चंड और मुंड नामक राक्षसों का संहार किया था, जिससे उन्हें ‘चंडी’ नाम मिला।
मंदिर से जुड़ी प्रमुख मान्यताएँ:
- महाभारत काल का संबंध: लोक मान्यताओं के अनुसार, पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान इस क्षेत्र में समय बिताया था। कहा जाता है कि अर्जुन ने यहाँ कठोर तपस्या कर माता चंडी को प्रसन्न किया था और उनसे युद्ध में विजयश्री का वरदान प्राप्त किया था। इसी वरदान के बल पर पांडवों ने कुरुक्षेत्र में महाभारत का युद्ध जीता था।
- स्वयंभू मूर्ति: भक्तों का मानना है कि मंदिर में स्थापित माँ की मूर्ति स्वयंभू (स्वतः प्रकट) है और इसमें माँ की दिव्य ऊर्जा विराजमान है।
- चंडीगढ़ का नामकरण: चंडी देवी के नाम पर ही पास के क्षेत्र का नाम ‘चंडी मंदिर’ पड़ा, और इसी मंदिर के नाम पर केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ का नाम रखा गया। यहाँ पास में ही भारतीय सेना की पश्चिमी कमान का मुख्यालय चंडीमंदिर छावनी भी स्थित है।
- सिद्ध पीठ: यह मंदिर भक्तों द्वारा एक सिद्ध पीठ के रूप में भी पूजनीय है, जहाँ सच्ची श्रद्धा से मांगी गई हर मनोकामना पूरी होती है।
आस्था का केंद्र
यह मंदिर शिवालिक पहाड़ियों की सुंदर पृष्ठभूमि के बीच स्थित है। यहाँ माँ चंडी के अलावा राधा कृष्ण, हनुमान, शिव और राम जैसे अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ भी मौजूद हैं। नवरात्रि के दौरान, यहाँ भक्तों का तांता लगा रहता है और दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।


