उत्तर प्रदेश: पाटेश्वरी देवी मंदिर एक प्राचीन एवं पवित्र शक्ति पीठ है, जो भक्तों के लिए आस्था और भक्ति का प्रमुख केंद्र है। यह मंदिर देवी दुर्गा के एक स्वरूप माता पाटेश्वरी को समर्पित है और उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में स्थित है।
शास्त्रों के अनुसार, यह मंदिर 51 शक्ति पीठों में से एक माना जाता है, जहां माता सती के अंग गिरे थे। मान्यता है कि यहां माता सती का बायां कंधा (कंधे की हड्डी) गिरा था, जिससे यह स्थान एक सिद्ध शक्ति पीठ और योग पीठ के रूप में प्रसिद्ध हो गया।
तंत्र साधना और धार्मिक अनुष्ठान का प्रमुख केंद्र
यह मंदिर तंत्र साधना के लिए भी विख्यात है, जहां साधक विशेष अनुष्ठान और साधनाएं करते हैं। लोक मान्यताओं के अनुसार, माता पाटेश्वरी ने इसी स्थान पर राक्षसों का वध कर धर्म की रक्षा की थी। कहा जाता है कि भगवान राम ने भी अपने वनवास काल में यहां माता की आराधना की थी।
मंदिर के गर्भगृह में स्थित माता की मूर्ति स्वयंभू मानी जाती है, अर्थात यह मूर्ति स्वयं प्रकट हुई थी। पहले मंदिर के गर्भगृह में कोई मूर्ति नहीं थी, बल्कि वहां एक गोल चांदी का चबूतरा था, जिसके नीचे एक प्राचीन सुरंग बनी हुई है।
पातालेश्वरी देवी: माता सीता से जुड़ी मान्यता
इस मंदिर को पातालेश्वरी देवी मंदिर भी कहा जाता है। मान्यता है कि लंका से लौटने के बाद माता सीता ने समाज द्वारा किए गए चरित्र पर संदेह से आहत होकर यहां धरती माता की गोद में बैठकर पाताल लोक प्रस्थान कर लिया था। कहा जाता है कि मंदिर के गर्भगृह से पाताल तक एक अति प्राचीन सुरंग बनी हुई है।
सूर्य तालाब और महाभारत काल से संबंध
मंदिर के उत्तर में स्थित सूर्य तालाब भी ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है। कहा जाता है कि महाभारत काल में महारथी कर्ण ने यहां परशुराम से धनुर्विद्या सीखी थी। मान्यता है कि इस जल कुंड में स्नान करने से कुष्ठ रोग और त्वचा रोग दूर हो जाते थे।
आस्था और श्रद्धा का केंद्र
पाटेश्वरी देवी मंदिर न केवल आस्था और श्रद्धा का केंद्र है, बल्कि ऐतिहासिक और पौराणिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। नवरात्रि और विशेष पर्वों पर यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है, जो माता का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए यहां आते हैं।