बालोद: प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण ‘ओना-कोना मंदिर’, गंगरेल का अंतिम छोर
छत्तीसगढ़ की धरती प्राकृतिक और सांस्कृतिक धरोहरों से समृद्ध है, जहां कई पर्यटन स्थल अपनी अलग पहचान बना रहे हैं। इन्हीं में से एक है ‘ओना-कोना मंदिर’, जो बालोद जिले से लगभग 35-40 किलोमीटर दूर NH-30 जगदलपुर रोड पर स्थित है। यह स्थान न केवल अपने दिव्य वातावरण और भव्य मंदिर निर्माण के लिए प्रसिद्ध हो रहा है, बल्कि इसे गंगरेल बांध का अंतिम छोर भी माना जाता है।
प्राकृतिक सौंदर्य और शांति का संगम
यह मंदिर गुरुर विकासखंड के एक कोने में महानदी के तट पर स्थित है, जहां से गंगरेल बांध का जल क्षेत्र शुरू होता है। यहां की ठंडी हवाएं, लहरों की कल-कल ध्वनि और चिड़ियों की चहचहाहट एक अद्भुत अनुभूति कराती हैं। सालभर इस स्थान पर एक नमीभरा वातावरण बना रहता है, जिससे यह गर्मी में भी सुकूनदायक लगता है और ठंड के दिनों में किसी हिल स्टेशन जैसा अहसास कराता है।
मंदिर के आसपास का क्षेत्र बेहद रमणीय है। यह गांव एक पहाड़ी की तलहटी में स्थित है, जहां पहुंचने के लिए कच्चे और संकरे रास्तों से गुजरना पड़ता है। गंगरेल बांध के जलभराव क्षेत्र में होने के कारण यह स्थान और भी आकर्षक और दर्शनीय लगता है। यहां स्थानीय मछुआरे बोटिंग की सुविधा भी प्रदान करते हैं, जिससे पर्यटक जल में नौकायन का आनंद भी ले सकते हैं।
सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व
स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, इस स्थान पर वर्षों पहले सूफी संत बाबा फरीद आए थे और यहां पर उन्होंने गंभीर तपस्या की थी। तब से यहां एक अखंड धूनी जल रही है, जिसे गांववाले अब तक श्रद्धा से प्रज्वलित रखे हुए हैं। कहा जाता है कि यहां आने वाले श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। मंदिर के पास ही एक मजार का भी निर्माण किया गया है, जो धार्मिक सौहार्द्र का प्रतीक है।
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की तर्ज पर हो रहा निर्माण
हाल के वर्षों में यह स्थान नवनिर्मित भव्य मंदिर के कारण भी चर्चा में बना हुआ है। मंदिर के संस्थापक तीरथराज फुटान ने बताया कि यह मंदिर महाराष्ट्र के नासिक स्थित त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग धाम की तर्ज पर बनाया जा रहा है। इस मंदिर का उद्देश्य उन गरीब और आर्थिक रूप से कमजोर श्रद्धालुओं को लाभ पहुंचाना है, जो नासिक स्थित त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की यात्रा नहीं कर सकते।
जिस प्रकार उत्तर भारत में गंगा नदी का आध्यात्मिक महत्व है, उसी प्रकार दक्षिण भारत में प्रवाहित गोदावरी नदी भी धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस मंदिर के निर्माण के बाद, श्रद्धालु नासिक गए बिना ही यहां त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर सकेंगे और पुण्य लाभ प्राप्त कर सकेंगे।
पर्यटन और विकास की संभावनाएं
बालोद जिले में कई दर्शनीय स्थल हैं, लेकिन अभी भी कई स्थान पर्यटन के नक्शे पर अपनी पहचान बनाने के लिए प्रयासरत हैं। ‘ओना-कोना मंदिर’ का यह धार्मिक और प्राकृतिक महत्व इसे एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की क्षमता रखता है। यदि इसे उचित संरक्षण और प्रचार मिले, तो यह छत्तीसगढ़ के पर्यटन मानचित्र में एक विशिष्ट स्थान बना सकता है।