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Saturday, October 12, 2024

कवर्धा पैलेस : इटैलियन मार्बल से बना , खूबसूरत राजमहल

कवर्धा रियासत की 79 वर्ष पुराने राजमहल की खूबसूरती आज भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रही है। सकरी नदी के तट पर बसे कवर्धा नगर पर पहले नागवंशी और हैह्यवंशी शासकों का शासन था। उन्होंने यहां पर कई मंदिर और किले बनवाए थे।

इन मंदिरों और किलों के अवशेष आज भी यहां देखे जा सकते हैं। इटैलियन मार्बल से बना कवर्धा महल बहुत सुंदर है। इसका निर्माण महाराजा धर्मराज सिंह ने 1936-39 ई. में कराया था। 11 एकड़ में फैले इस महल के दरबार के गुम्बद पर सोने और चांदी से नक्काशी की गई है।

गुम्बद के अलावा इसकी सीढ़ियां और बरामदे भी बहुत खूबसूरत हैं, जो पर्यटकों को बहुत पसंद आते हैं। इसके प्रवेश द्वार का नाम हाथी दरवाजा है, जो बहुत सुंदर है। कवर्धा कुल 805 वर्गमील क्षेत्र में फैला हुआ है।

राजा-महाराजाओं के चले जाने के बाद उनके महल सरकारी कार्यालयों का हिस्सा बनकर रह गए हैं। कवर्धा पैलेस का एक बड़े हिस्से में भी सरकारी दफ्तर लगता है लेकिन अब भी एक ऐसा पैलेस बचा हुआ है, जो दर्शनीय है। किलों और मंदिरों के अलावा पर्यटक यहां पर सतपुड़ा की पहाड़ियों की मैकाल पर्वत श्रृंखला देख सकते हैं। इसकी अधिकतम ऊंचाई 925 मीटर है।

महाराजा योगेश्वरराज ने दी नई पहचान

महाबलि सिंह, उजियार सिंह, टोकसिंह, बहादुर सिंह, रूपकुंवर, गौरकुंवर, राजपाल सिंह, पदुमनाथ सिंह, देवकुमारी, धर्मराज, विश्वराज के बाद जब योगेश्वरराज पर पैलेस की जवाबदारी आई तो उन्होंने अपने पुरखों से मिली समृद्ध विरासत को एक नई पहचान देने का काम किया।

पैलेस में लगभग तीन सौ तरह की तलवारें मौजूद हैं। इसके अलावा युद्ध में प्रयुक्त होने वाली 35 बंदूकें, कई जानवरों के सिर, बेशकीमती कपड़े, टोपियां, छड़ियां, सोने-चांदी के बर्तन, छुरी और कांटों का अनोखा संग्रह भी है।

रखरखाव पर सालाना होते हैं लगभग 10 लाख रुपए खर्च

कभी कवर्धा स्टेट का एक बड़ा हिस्सा भोंसले के कब्जे में था। बाद में जब राजा धर्मराज सिंह के पास आया तब उन्होंने इसकी देखरेख पर ध्यान देना प्रारंभ किया। पैलेस के भीतर जितनी भी लकड़ी प्रयुक्त हुई है, वह बर्मा देश की है।

सारे मार्बल इटैलियन हैं जबकि कुछ पत्थर कवर्धा के पास मौजूद सोनबरसा गांव से मंगवाए गए हैं। एक अनुमान है कि पैलेस के रखरखाव के लिए हर साल 10 लाख रुपए खर्च होते हैं।

पर्यटकों के आने से होने वाली आय का उपयोग बैगाओं के इलाज में

कवर्धा पैलेस से राष्ट्रीय पार्क कान्हा की दूरी मात्र 95 किलोमीटर है। जो देसी-विदेशी पर्यटक कान्हा जाने के इच्छुक रहते हैं, वे एक बार कवर्धा पैलेस में जरूर रुकते हैं। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में विधायक रहे योगेश्वरराज बताते हैं कि वर्ष 1991 में महल को पैलेस के रूप में बदल दिया गया था।

पर्यटकों के आने से जो आय होती है, उसका उपयोग इस क्षेत्र में रहने वाली एक अति प्राचीन जनजाति बैगा के इलाज के लिए किया जाता है। उन्होंने बताया कि यह बात कोई ठीक-ठाक नहीं बता सकता कि सत्यमेव जयते की शुरुआत कब हुई और भारत सरकार ने इसे अपना स्लोगन कब बनाया लेकिन यह तय है कि कवर्धा स्टेट की राजपत्रित मुहरों में लिखा होता था- सत्यमेव जयते।
कवर्धा पैलेस कैसे पहुंचे
कवर्धा पहुंचने के लिए आप सड़क, रेल और हवाई मार्ग का उपयोग कर सकते हैं। यहां तक ​​पहुंचने के लिए अलग-अलग विकल्प उपलब्ध हैं:
सड़क मार्ग कवर्धा छत्तीसगढ़ के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। आप बस, टैक्सी या अपनी कार से आसानी से कवर्धा पहुंच सकते हैं।

रुकने की व्यवस्था
यदि आप एक शाही अनुभव चाहते हैं, तो कवर्धा पैलेस में ठहरना एक बेहतरीन विकल्प हो सकता है। यह एक हेरिटेज होटल के रूप में संचालित है, जहाँ आपको शाही ठाट-बाट और ऐतिहासिक महल का अनुभव मिलेगा। इसके अलावा सरकारी रेस्ट हाउस, प्राइवेट होटल और लॉज ,धार्मिक स्थानों के पास धर्मशालाएं है जिसमे आप रुक सकते है
कवर्धा पैलेस
इस्कॉन मंदिर रायपुर

छत्तीसगढ़ की राजधानी अब धर्मनगरी का स्वरुप लेता जा रहा हैं। यहां मौजूद राम मंदिर, सालासर बालाजी मंदिर और जगन्नाथ मंदिर के बाद टाटीबंध क्षेत्र में इस्कॉन मंदिर भी भक्तों के आकर्षण का केंद्र बनकर उभर रहा है। इस्कॉन मंदिर एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। इस्कॉन मंदिरों की श्रृंखला पूरी दुनिया में फैली हुई है, और हर मंदिर का उद्देश्य कृष्ण भक्तों को एकत्रित करना और उनके बीच आध्यात्मिक जागरूकता फैलाना है। आइए इस मंदिर के बारे में विस्तार से जानते हैं:

मंदिर की संरचना और वास्तुकला
इस्कॉन मंदिर रायपुर का वास्तुशिल्प बहुत ही भव्य और आध्यात्मिक वातावरण वाला है।
मंदिर की संरचना आधुनिकता और पारंपरिक भारतीय वास्तुकला का संयोजन है, जो इसे एक अद्वितीय पहचान देता है।
मंदिर के मुख्य भवन में भगवान श्रीकृष्ण और राधा जी की भव्य मूर्तियां स्थापित हैं, जिन्हें अत्यंत सुंदरता और भाव से सजाया गया है।

बता दें कि इस श्रीराधा-रासबिहारी इस्कॉन मंदिर को तैयार होने में 12 साल का समय लगा है। इस्कॉन मंदिर साल 2012 में बनना शुरू हुआ था। इसमें 13 शिखर बनाए गए हैं और हर शिखर पर सोने से बने कलश रखे गए हैं। 13 सोने के कलश का कुल वजह 1.25 किलो है।

बता दें कि विगत दिनों इस्कॉन मंदिर का प्राण-प्रतिष्ठा समारोह हुआ। प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में विदेश से भी मेहमान पहुंचे हैं। समारोह 3 दिन तक चला जिसमें हवन, भजन समेत कई आयोजन हुए। इसमें 19 अगस्त को सुबह 5 बजे भगवान के विग्रह को नए मंदिर में स्थापित किया गया

हवन के लिए कुल 21 कुंड बनाए गए थे। सुबह से हरी नाम संकीर्तन चला। इस आयोजन में जापान, अमेरिका और साउथ अफ्रीका से प्रतिनिधि रायपुर पहुंचे थे। देश के सभी राज्यों से इस्कॉन के अध्यक्ष भी शामिल हुए थे।

मंदिर में 13 शिखर हैं। इन सभी शिखरों पर स्वर्ण कलश लगाए गए है। 1 किलो 250 ग्राम सोने से कलश का निर्माण किया गया है। 7 जुलाई को मुख्य शिखर पर स्वर्ण कलश, कपि-ध्वज और सुदर्शन चक्र की स्थापना की गई। बाकी के 12 कलश 16 अगस्त को स्थापित किए गए हैं।

परिसर के लिए 2001 में सवा तीन एकड़ जमीन मिली थी। इसका विस्तार 10 एकड़ में हो चुका है। मंदिर के निर्माण में अब तक 51 करोड़ रुपए से अधिक खर्च हो चुके हैं। मंदिर परिसर में ही 64 कमरों का सुविधायुक्त गेस्ट-हाउस तैयार किया गया है।

इस्कॉन मंदिर कैसे पहुंचे
इस्कॉन मंदिर रायपुर शहर के टाटीबंध इलाके में स्थित है।
यह मंदिर रायपुर रेलवे स्टेशन से लगभग 8 किमी और स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट से लगभग 15 किमी की दूरी पर स्थित है।
मंदिर तक शहर के विभिन्न हिस्सों से आसानी से पहुंचा जा सकता है।

ठहरने की व्यवस्था
इस्कॉन मंदिर रायपुर में भक्तों और पर्यटकों के लिए ठहरने की व्यवस्था है, ताकि वे मंदिर में आध्यात्मिक अनुभव का आनंद लेते हुए आराम से रह सकें।
रायपुर में इस्कॉन मंदिर के आसपास कई प्राइवेट होटल उपलब्ध हैं, जो विभिन्न बजट और सुविधाओं के अनुसार ठहरने की व्यवस्था प्रदान करते हैं।

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