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Saturday, October 12, 2024

चैतुरगढ़ का ऐतिहासिक किला , माँ महिषासुर मर्दिनी मंदिर , छत्तीसगढ़ के 36 किलों में से एक

कोरबा. छत्तीसगढ़ एक आदिवासी बहुल राज्य. नक्सल से प्रभावित. लेकिन ये है प्राकृतिक सौंदर्य और संपदा से भरपूर राज्य. यहां एक से बढ़कर एक प्राकृतिक औऱ रहस्य-रोमांच से भरे पर्यटन स्थल हैं. यहां का कोरबा जिला भी हरियाली और पहाड़ी से घिरा इलाका है. यहां मैकाल पर्वत श्रेणी की सबसे ऊंची चोटियों में से एक है चैतुरगढ़, जिसे ‘छत्तीसगढ़ का कश्मीर’ भी कहा जाता है.

कोरबा में कई प्राकृतिक-धार्मिक स्थल हैं. यहां प्रकृति की गोद में ऊंचे पहाड़ पर स्थित है मां महिषासुर मर्दिनी मंदिर जो छत्तीसगढ़ आने वाले पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है. इतनी ऊंचाई पर होने के कारण गर्मी के दिनों में भी यहां का तापमान 30 डिग्री से ऊपर नहीं जाता. खासकर देवी माता का मंदिर विशेष रूप से ठंडा रहता है. यहाँ चैतुरगढ़ का ऐतिहासिक किला, माँ महिषासुर मर्दिनी मंदिर, शंकर खोल गुफा, चारों तरफ पर्वत ऊंची ऊंची पर्वत की चोटियां समृद्ध जैव विविधता से परिपूर्ण हरा भरा जंगल, मां को मोहित करने वाले झरने हैं जो सैलानियों को अपनी ओर खींचते हैं. गर्मी की छुट्टियों में घूमने के लिए है यह एक परफेक्ट टूरिस्ट प्लेस है

चट्टानों से बना चैतुरगढ़ किला
चैतुरगढ़ कोरबा जिले के प्रमुख पर्यटन स्थलों मे से एक है. ये जिला मुख्यालय से करीब 70 किलोमीटर दूर स्थित है. इतिहासकारों के अनुसार इस किले का निर्माण 1069 ईसवीं में हुआ था. इसे राजा पृथ्वीदेव प्रथम ने बनवाया था.चैतुरगढ़ का किला छत्तीसगढ़ के 36 किलों में से एक था.इससे सुरक्षा की दृष्टि से चट्टानों से बनाया गया था. पुरातत्वविद इसे देश के सबसे मजबूत प्राकृतिक किलों में से एक मानते हैं. किले के भीतर जानें के लिए तीन मुख्य द्वार हैं. इन प्रवेश द्वारों के नाम सिंहद्वार, मेनका, ओमकारा द्वार हैं.यहां करीब पांच वर्ग किलोमीटर में किला फैला हुआ है. इतनी ऊंचाई पर पांच तालाब भी हैं.

महिषासुर का वध करने के बाद दुर्गा ने किया था विश्राम
महिषासुर मर्दिनी मंदिर के दर्शन के लिए आने वाले भक्तों ने आज भी चैतुरगढ़ किले को जीवंत रखा है. लोगों की आस्था का यह केंद्र अद्भुत शांति प्रदान करता है. ऊंचाई पर स्थित होने के कारण यहां का तापमान भीषण गर्मी के दिनों में भी 25 से 30 डिग्री तक ही रहता है. ऐसा कहा जाता है एक यात्रा के बाद जब राजा पृथ्वीदेव प्रथम यहां रुक कर विश्राम कर रहे थे तब देवी मां ने स्वप्न में आकर यहां मंदिर बनाने के लिए कहा था. लोगों की दूसरी मान्यता यह है कि महिषासुर का वध करने के बाद मां दुर्गा ने यहां थोड़ा विश्राम किया इसलिए इसे महिषासुर मर्दिनी मंत्री के नाम से जाना जाता है.

संकरी गुफा में लेट कर जाएं
चैतुरगढ़ के आसपास हरे भरे जंगल, कल कल करते झरने और पक्षियों की मधुर आवाज दिल और दिमाग को सुकून देने वाली होती है. यहां आपको सुरंग की तरह दिखने वाली शंकर खोला गुफा भीतर से करीब 25 फीट लंबी है. अंदर जाते-जाते बेहद संकरी होने के कारण इस गुफा में रेंग कर या घुटनों के बल ही जा सकते हैं. कहते हैं कि भगवान शिव और भस्मासुर की लड़ाई के दौरान दोनों यहां भी आए थे.

कैसे पहुँचे क्या मिलेंगी सुविधाएं
आप स्वामी विवेकानन्द अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा रायपुर पहुंचकर कैब से कोरबा जा सकते हैं. सड़क मार्ग से चैतुरगढ़, कोरबा बस स्टैंड से लगभग 50 किलोमीटर और बिलासपुर बस स्टैंड से 55 किमी की दूरी पर स्थित है. चैतुरगढ़ पहाड़ के ऊपर वन विभाग ने पर्यटकों के रुकने के लिए कॉटेज का निर्माण कराया है. साथ ही एसईसीएल ने यहां रेस्ट हाउश बनवाया है.

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