Total Users- 996,023

spot_img
spot_img

Total Users- 996,023

Sunday, May 25, 2025
spot_img
spot_img

बस्तर दशहरा : 600 साल पुरानी परंपरा आज भी है जीवित

विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरे की रस्म फूल रथ परिक्रमा का शुभारंभ हो चुका है. इस रस्म में बस्तर के आदिवासियों द्वारा हाथों और पारंपरिक औजारों द्वारा बनाए गए विशालकाय रथ की शहर परिक्रमा कराई जाती है. करीब 40 फीट ऊंचे व कई टन वजनी रथ को परिक्रमा के लिए खींचने सैकड़ों आदिवासी पहुंचते हैं. परिक्रमा के दौरान रथ पर मां दंतेश्वरी के छत्र को विराजमान कराया जाता है. दशहरे के दौरान देश में इकलौती इस तरह की परंपरा को देखने हर साल हजारों की संख्या में लोग पहुंचते रहे हैं, लेकिन इस साल कोरोना महामारी की वजह से विदेशी पर्यटकों के साथ-साथ प्रदेश के दूसरे हिस्सों के साथ ही देशभर से आने वाले पर्यटक व आम श्रद्धालुओं के आने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया है.


1410 ईस्वी में शुरू हुआ बस्तर दशहरा
बस्तर दशहरे की इस अद्भुत रस्म की शुरुआत 1410 ईस्वी में तत्कालीन महाराजा पुरुषोत्तम देव ने की थी. महाराजा पुरुषोत्तम देव ने जगन्नाथपुरी जाकर रथपति की उपाधि प्राप्त की थी, जिसके बाद से अब तक यह परंपरा इसी तरह चली आ रही है, हालांकि राजा पुरुषोत्तम देव को जगन्नाथ पुरी के राजा ने 16 चक्कों की रथपति की उपाधि दी थी, लेकिन विशालकाय रथ होने की वजह से इस रथ को विभाजन कर 4 चक्कों का रथ गोंचा पर्व के लिए और चार-चार चक्कों का रथ फूल रथ परिक्रमा के लिए चलाया जाता है. जबकि 8 चक्कों का रथ दशहरा पर्व के दौरान ‘भीतर रैनी बाहर रैनी रस्म के लिए चलाया जाता है.


फूल रथ में माई की सवारी
पिछले 610 सालों से यह परंपरा अनवरत चली आ रही है. हेमंत कश्यप ने बताया कि नवरात्रि के दूसरे दिन से सप्तमी तक माई जी की सवारी को परिक्रमा लगवाने वाले इस रथ को फूल रथ के नाम से जाना जाता है. दरअसल पहले आर्टिफिशियल सजावट की वस्तु नहीं होने की वजह से इस रथ को गेंदा फूल से सजाया जाता था और आज भी इस विशालकाय रथ को गेंदा फूलों से ही सजाया जाता है. इसमें दंतेश्वरी मंदिर से माई जी के मुकुट व छत्र को डोली में रथ तक लाया जाता है, इसके बाद जवानों द्वारा सलामी देकर इस रथ की परिक्रमा का आगाज किया जाता है.


600 साल पुरानी परंपरा
लगभग 40 टन वजनी इस रथ को सैकड़ों आदिवासी मिलकर खींचते हैं. इसे माई दंतेश्वरी के प्रति आदिवासियों की आस्था ही कहेंगे कि लगभग 600 साल पुरानी इस परंपरा में आधुनिकीकरण के दौर में भी कोई बदलाव नहीं आया है. बस्तर में दशहरा पर्व की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. हर वर्ष इस पर्व को लेकर लोगों में काफी उत्साह देखा जाता है,लेकिन इस साल कोरोना के कारण श्रद्धालुओं के शामिल नहीं होने के कारण बस्तर दशहरा में खास रौनक नजर नहीं आ रही है.

spot_img

More Topics

किसी सुपरफूड से कम नहीं है कच्चा पपीता

कच्चा पपीता एक ऐसा सुपरफूड है, जो पोषक तत्वों...

चिया सीड्स का करते हैं सेवन तो कई समस्याओं का बन सकता है कारण

चिया सीड्स सुपरफूड माने जाते हैं, जो फाइबर, प्रोटीन,...

दिल्ली से मुंबई और केरल में कोरोना का नया वैरिएंट- JN.1 सक्रिय

देश के कई बड़े शहरों में कोरोना वायरस के...

भारतीय सेना ने “ऑपरेशन सिंदूर” चलाकर पाक को घुटने टेकने पर किया मजबूर

भारत और पाकिस्तान के बीच हुए जबरदस्त सैन्य टकराव...

इसे भी पढ़े