झारखंड के देवघर में स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इसे शिव और शक्ति के मिलन स्थल के रूप में भी जाना जाता है, जहां माता सती का हृदय गिरा था। यही कारण है कि यह धाम आत्मालिंग और कामनालिंग के रूप में प्रसिद्ध है।
शिव और शक्ति का पवित्र मिलन
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, बाबा बैद्यनाथ धाम का सीधा संबंध माता सती और भगवान शिव से है। द्वादश ज्योतिर्लिंग मंत्र में इसका उल्लेख “परल्या वैद्यनाथं” के रूप में किया गया है। मान्यता है कि इस धाम में सच्चे मन से मांगी गई मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती हैं।
पौराणिक कथा: क्यों बना वैद्यनाथ धाम शक्ति और भक्ति का केंद्र?
इस धाम की कथा दक्ष प्रजापति के यज्ञ से जुड़ी हुई है। जब दक्ष ने भगवान शिव का अपमान किया, तो माता सती ने यज्ञ स्थल में आत्मदाह कर लिया। इस घटना से दुखी होकर महादेव तांडव करने लगे, जिससे सृष्टि संकट में आ गई। तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के 51 टुकड़े कर दिए, जो विभिन्न स्थानों पर गिरे और शक्तिपीठ बने।
देवघर वह स्थान है जहां माता सती का हृदय गिरा था, इसलिए इसे हृदयपीठ कहा जाता है। यही नहीं, यहां रावण द्वारा लाए गए शिवलिंग की भी स्थापना की गई थी, जिससे इसे आत्मालिंग का दर्जा प्राप्त हुआ।
बाबा बैद्यनाथ धाम की विशेषता
- यह स्थान भगवान शिव और माता शक्ति दोनों का संगम स्थल है।
- यहां पूजा करने से मनोकामनाएं पूर्ण होने की मान्यता है।
- द्वादश ज्योतिर्लिंगों में इसकी महिमा का विशेष उल्लेख किया गया है।
- श्रावण मास में लाखों भक्त कांवड़ यात्रा के माध्यम से यहां जल अर्पित करने आते हैं।
बाबा बैद्यनाथ धाम न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह श्रद्धालुओं के लिए अटूट आस्था और शक्ति का केंद्र भी है। जो भी भक्त सच्चे मन से यहां दर्शन करता है, उसकी हर इच्छा पूरी होती है।