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Sunday, December 8, 2024

अमरकंटक मंदिर : इतिहास और धार्मिक महत्व ,जानिए पवित्र स्थल की रोचक बातें

अमरकंटक मंदिर घूमने के लिए प्रमुख स्थलों में से एक है। यह मध्यप्रदेश के जिले अनूपपुर और शहडोल के तहसील पुष्पराजगढ़ में मेकल की पहाड़ियों के बीच बसा हुआ है। यह 1065 मीटर की ऊंचाई पर समाया हुआ है। पहाड़ों और घने जंगलों मे बीच मंदिर की खूबसूरती का आकर्षण कुछ अलग–सा ही प्रतीत होता है। यह छत्तीसगढ़ की सीमा से सटा है। यह जगह विंध्य, सतपुड़ा, और मैदार की पहाड़ियों का मिलन स्थल है, जिसका दृश्य मन मोह लेने वाला होता है। अमरकंटक तीर्थराज के रूप में भी काफ़ी प्रसिद्ध है।

अमरकंटक मां नर्मदा के उद्गम स्थल के साथ भगवान शिव के स्वयं-भू प्रकट स्वरूप धाम के लिए प्रसिद्ध है। यह स्थान घने जंगल और पर्वत स्थल पर है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमा से लगे इस स्थान में विभिन्न प्रांतों के श्रृद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है

अमरकंटक मंदिर घूमने के लिए प्रमुख स्थलों में से एक है। यह मध्यप्रदेश के जिले अनूपपुर और शहडोल के तहसील पुष्पराजगढ़ में मेकल की पहाड़ियों के बीच बसा हुआ है। यह 1065 मीटर की ऊंचाई पर समाया हुआ है। पहाड़ों और घने जंगलों मे बीच मंदिर की खूबसूरती का आकर्षण कुछ अलग–सा ही प्रतीत होता है। यह छत्तीसगढ़ की सीमा से सटा है। यह जगह विंध्य, सतपुड़ा, और मैदार की पहाड़ियों का मिलन स्थल है, जिसका दृश्य मन मोह लेने वाला होता है। अमरकंटक तीर्थराज के रूप में भी काफ़ी प्रसिद्ध है।

जीवन की आपा–धापी से दूर यह जगह आपके मन को शांत करेगी। यहां की शाम देखने मे ऐसी लगती है, मानो किसी ने आसमान में सिंदूर बिखेर दिया हो। घने जंगल और महकती हुई धरती, यहां सांसो में घुलती हुई महसूस होती है।

नर्मदा नदी का उद्गम स्थल प्रमुख सात नदियों में से नर्मदा नदी और सोनभद्रा नदियों का उद्गम स्थल अमरकंटक है। यह आदिकाल से ही ऋषि–मुनियों की तपो भूमि रही है। नर्मदा का उद्गम यहां के एक कुंड से और सोनभद्रा के पर्वत शिखर से हुआ है। यह मेकल पर्वत से निकलती है, इसलिए इसे मेकलसुता भी कहा जाता है। साथ ही इसे ‘माँ रेवा‘ के नाम से भी जाना जाता है।

नर्मदा नदी यहां पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है। इस नदी को “मध्यप्रदेश और गुजरात की जीवनदायनी नदी” भी कहा जाता है क्योंकि यह नदी दोनों ही राज्यों के लोगों के काम आती है। यह जलोढ़ मिट्टी के उपजाऊ मैदानों से होकर बहती है, जिसे नर्मदा घाटी के नाम से भी जाना जाता है। यह घाटी लगभग 320 किमी. में फैली हुई है।

कहा जाता है कि पहले उद्द्गम कुंड चारों ओर बांस से घिरा हुआ था। बाद में यहाँ 1939 में रीवा के महाराज गुलाब सिंह ने पक्के कुंड का निर्माण करवाया। परिसर के अंदर माँ नर्मदा की एक छोटी सी धारा कुंड है जो दूसरे कुंड में जाती है, लेकिन दिखाई नहीं देती। कुंड के चारों ओर लगभग 24 मंदिर है। जिनमें नर्मदा मंदिर, शिव मंदिर, कार्तिकेय मंदिर, श्री राम जानकी मंदिर, अन्नपूर्णा मंदिर, दुर्गा मंदिर, श्री सूर्यनारायण मंदिर, श्री राधा कृष्णा मंदिर, शिव परिवार, ग्यारह रुद्र मंदिर आदि प्रमुख है।

आयुर्वेदिक दवाईयां अमरकंटक कई पाए जाने वाले आयुर्वेदिक पौधों के लिए भी मशहूर है। लोगों द्वारा यह भी कहा जाता है कि पाए जाने वाले आयर्वेदिक पौधों में जीवन देने की शक्ति है। लेकिन इस समय दो पौधे ऐसे हैं जो कि अब गायब होने की कगार पर हैं। वह हैं गुलाबकवाली और काली हल्दी के पौधे। गुलाबकवाली घनी छांव में दलदली जगह और साफ़ पानी मे उगता है। यह ज़्यादातर सोनमुडा, कबीर चबूतरा, दूध धारा और अमरकंटक के कुछ बगीचों में उगता है।काली हल्दी का उपयोग अस्थमा, मिरगी, गठिया और माइग्रेन आदि के उपचार के लिए किया जाता है।

यहां टीक और महुए के पेड़ काफ़ी पाए जाते हैं। अमरकंटक का इतिहास लगभग छह हजार साल पुराना है, जब सूर्यवंशी शासक ने मन्धाता शहर की स्थापना की थी।मंदिर की वास्तुकला चेदि और विदर्भा वंश के काल की है। ऋग्वेद काल मे चेदि वंश के लोग यमुना और विंध्य के बीच बसे हुए थे।
भगवान शंकर, कपिल, व्यास और भृगु ऋषि सहित कई महान ऋषि–मुनियों ने इस जगह पर सालों तक तपस्या की है।
यहां के बायो रिज़र्व को यूनेस्को ने अपनी सूची में शामिल किया है। यहां की खास बात यह है कि यहां घूमने के लिए किसी भी मौसम में आया जा सकता है।
नर्मदा नदी दूसरी नदियों से अलग पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है। यह ढलान की बजाय ऊंचाई की ओर बहती है, जो की सबको बहुत चौकाने वाली बात लगती है।

अमरकंटक का यह स्थान सोन नदी का उद्गम स्थल है। इससे थोड़ी ही दूर पर भद्र का भी उद्गम स्थल है। दोनों आगे जाकर एक दूसरे से मिल जाती हैं, इसलिए इन्हें ‘सोन–भद्र‘ भी कहा जाता है। सोन को ब्रह्माजी का मानस पुत्र भी कहा जाता है।

कपिल धारा पवित्र नर्मदा नदी का पहला जलप्रपात है। यह पवित्र नर्मदा उद्गम कुंड से 6 किलोमीटर दूरी पर है। इस जलप्रपात में पवित्र नर्मदा जल 100 फीट की ऊंचाई से पहाड़ियों से नीचे गिरती है। कपिल धारा के पास ही कपिल मुनि का आश्रम है। कहा जाता है कि कपिल मुनि ने यहीं कठोर तप किया था और यहीं सांख्य दर्शन की रचना की थी। उन्ही के नाम पर इस जलप्रपात का नाम कपिल धारा पड़ा।

हर साल अमरकंटक में नर्मदा जयंती बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है। इस अवसर पर पूरे अमरकंटक को सजाया जाता है। रात को नर्मदा नदी के उद्गम स्थल पर महा आरती की जाती है। साथ ही एक विशाल मेला भी लगता है, जिसमें दूर–दूर से भक्त आते हैं।

अमरकंटक के पास यह प्रपात कपिल धारा से 1 किलोमीटर नीचे जाने पर मिलता है। इसकी ऊंचाई 10 फुट है। कहा जाता है यहां दुर्वासा ऋषि ने तपस्या भी की थी। इस प्रपात को दुर्वासा धारा भी कहा जाता है | यहां पवित्र नर्मदा नदी दूध के समान सफेद दिखाई देती है इसलिए इस प्रपात को ‘दूधधारा‘ कहा जाता है।

इस तरह से पहुंचे मध्‍यप्रदेश में सबसे नजदीकी एयरपोर्ट जबलपुर डुमना हवाईअड्डा है यह 245 किलोमीटर दूर है रायपुर से 230 किलोमीटर दूर है। वहां से आप कैब या बुक की हुई गाड़ी से अमरकंटक तक पहुंच सकते हैं
सड़क मार्ग से अमरकंटक मध्‍यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की सड़कों से जुड़ा हुआ है यहां आने के लिए सबसे अच्‍छी सड़क बिलासपुर है जबलपुर 245 किमी, बिलासपुर 125 किमी, अनूपपुर 72 किमी और शहडोल 100 किमी है
यहां पहुंचने के लिए बिलासपुर रेल सबसे सुविधाजन‍क है अन्‍य रेलमार्ग पेंड्रा रोड और अनूपपुर से है

वन विभाग द्वारा संचालित फॉरेस्ट रेस्ट हाउस और गेस्ट हाउस अमरकंटक और इसके आसपास के क्षेत्रों में स्थित हैं। ये आरामदायक रहने की जगह हैं और पर्यटकों को प्रकृति के करीब रहने का अनुभव प्रदान करती हैं।

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