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ढोलकल गणेश की मूर्ति एक रहस्यमयी और पुरानी प्रतिमा है,जिसके बारे में कई कथाएँ और मान्यताए प्रचलित है

प्रथम पूजनीय भगवान गणेश की प्रतिमाएं हर जगह मिल जाती हैं, परंतु छत्तीसगढ़ के बस्तर में 3,385 फीट ऊंचे ढोलकल शिखर पर स्थापित विघ्नविनाशक की प्रतिमा मध्य भारत की एकमात्र गणेश प्रतिमा है, जो इतनी ऊंचाई पर विराजित है। महादेव का दूसरा घर के नाम से विख्यात मध्य प्रदेश के पचमढ़ी की ऊंचाई 3,550 फीट है किंतु वहां भोलेनाथ विराजमान हैं। दक्षिण बस्तर की 14 पहाडिय़ों में एक पहाड़ की आकृति भगवान शिव के वाहन नंदी की पीठ जैसी है इसलिए यह प्रक्षेत्र बैलाडीला कहलाता है। इन पहाडिय़ों में ढोलकल शिखर सैलानियों को रोमांच के साथ आस्था का पुण्य भी प्रदान करता है।

1934 में हुआ सर्वेक्षण
इसका सर्वेक्षण तथा भूगर्भीय मानचित्र वर्ष 1934-35 में जियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया के डा. क्रुक्षांक ने तैयार किया था। उन्होंने 88 वर्ष पहले बता दिया था कि बैलाडीला की पहाडिय़ों में कई पुरानी मूर्तियां हैं। छिंदक नागवंशीय काली सिंधु नदी किनारे नरेश कश्यप गोत्र के बाशिंदे और शैव पंथी थे। वर्ष 1023 ईस्वी में जब नरेश नृपतिभूषण बारसूर आ रहे थे। तब उन्हें ढोलकल शिखर में बाल गणेश और परशुराम के मध्य युद्ध की कहानी ज्ञात हुई। चूंकि छिंदक नागवंशी शैव उपासक थे इसलिए उन्होंने शिखर पर गणेश प्रतिमा स्थापित कर उस पौराणिक घटना को चिर स्थायी करने का प्रयास किया था। यह गणेश मूर्ति दक्षिण भारतीय शैली में, ललितासन मुद्रा में काली चट्टान में उकेरी गई है। मूर्ति 36 इंच ऊंची तथा 19 इंच मोटी है।

पौराणिक मान्यता
दक्षिण बस्तर में यह कथा प्रचलित है कि बैलाडीला के नंदीराज शिखर पर महादेव ध्यान करते थे। एक दिन उन्होंने पुत्र विनायक से कहा कि वह ध्यान करने शिखर पर जा रहे हैं। कोई उनकी साधना में विघ्न न डाले। कुछ समय बाद भगवान परशुराम वहां पहुंचे और नंदीराज शिखर की तरफ जाने का प्रयास करते लगे। विनायक ने उन्हें रोका। इससे परशुराम जी क्रोध गए और फरसे से विनायक पर वार कर दिया। यह फरसा विनायक का एक दांत काटते हुए पहाड़ के नीचे जा गिरा, इसलिए विनायक एकदंत कहलाए और पहाड़ के नीचे की बस्ती का नाम फरसपाल पड़ा।

नंदीराज का सुखद दर्शन
जैसे ही आप ढोलकर शिखर पर पहुंचेंगे, आपको दूर-दूर तक हरियाली से ढकी पहाडिय़ां नजर आएंगी। ढोलकल शिखर के बाईं तरफ की चट्टान पर कभी सूर्य मंदिर हुआ करता था, परंतु यहां के सूर्यदेव की मूर्ति 25 वर्ष से गायब है। इस चट्टान के ठीक पीछे नंदी जैसी आकृति वाला दूसरा शिखर है। जिसे नंदीराज कहते हैं। बैलाडीला क्षेत्रवासी इसे नंदराज कह पूजते हैं। नंदराज शिखर तक पहुंचना मुश्किल है, इसलिए इनकी आराधना करने वाले अधिकांश लोग सूर्य मंदिर की चट्टान पर खड़े होकर ही नंदराज का आह्वान करते हैं।

दयूरमुत्ते करतीं थीं पूजा
ढोलकल शिखर के नीचे बिखरी पड़ी पुरातन वस्तुओं के संदर्भ में फरसपाल, भोगाम, कवलनार, पंडेवार आदि गांव में एक रोचक कथा प्रचलित है। आदिवासी समाज के वरिष्ठ कार्यकर्ता बल्लूराम भोगामी बताते हैं कि सैकड़ों वर्ष पहले डोलमेट्टा शिखर में एक दयूरमूत्ते (देवी) रहती थीं और डमरू जैसा वाद्य बजाकर गणेशजी की पूजा करती थीं। सैकड़ों वर्षों तक लोग डमरू की आवाज सुनते रहे हैं इसलिए शिखर को डोलमेट्टा कहने लगे। कालांतर में यह शिखर ढोलकल नाम से चर्चित हुआ। ढोलकल शिखर के नीचे पहाड़ी ढलान पर भी दयूरमूत्ते की पाषाण प्रतिमा थी। वह मूर्ति भी विगत 25 वर्षों से गायब है।

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शरारती तत्वों ने गिराई मूर्ति
ढोलकल शिखर गणेश प्रतिमा, जैव विविधता और हरी भरी खूबसूरत वादियों की वजह से लोकप्रिय हुआ और सैकड़ों लोग यहां आने लगे। अक्टूबर 2012 में जब यह तस्वीर ऐतिहासिक बस्तर दशहरा के निमंत्रण पत्र में प्रकाशित हुई तो छत्तीसगढ़ के तत्कालीन राज्यपाल शेखर दत्त यह तस्वीर देख अवाक रह गए। उन्होंने बकायदा ढोलकल तस्वीर युक्त नववर्ष 2013 का ग्रीटिंग कार्ड छपवाया और देश के अति विशिष्टजनों को भिजवाया। इस स्थल की बेहतरीन फोटोग्राफी के लिए छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा इस संवाददाता को गणतंत्र दिवस 2013 के अवसर पर दंतेवाड़ा परेड ग्राउंड में पुरस्कृत किया गया था।

25 जनवरी 2017 को कुछ शरारती तत्वों से इस प्रतिमा को तोड़ पचास मीटर गहरी खाई में फेंक दिया। जिसके कारण पूरे बस्तर में जबरदस्त आक्रोश उपजा। विरोध में दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय बंद रखा गया। जनाक्रोश को देखते हुए पुरातत्व विभाग की टीम ढोलकल शिखर तक पहुंची और ग्रामीणों की मदद से गणेश प्रतिमा के सभी टुकड़ों को एकत्र किया और जोड़कर पुन: शिखर पर विराजित कर दिया। जिस दिन इस मूर्ति की प्रतिस्थापना की गई थी, उस दिन शिखर नीचे जामगुड़ा (फरसपाल) में जमकर उत्सव मनाया गया था। उक्त घटना के बाद यह प्रतिमा और अधिक चार्चित हो गई तथा यहां आने वाले सैलानियों की संख्या कई गुना बढ़ गई है।

कैसे पहुंचें
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 384 किमी दूर दंतेवाड़ा में मां दंतेश्वरी शक्तिपीठ है। यहां से 16 किमी दूर फरसपाल गांव है। इस गांव से तीन किमी दूर जामगुड़ा बस्ती है। यहां पहाड़ के नीचे वाहन पार्किंग कर लगभग तीन किमी पैदल चढ़ाई कर ढोलकल शिखर तक पहुंचा जा सकता है। रायपुर से दंतेवाड़ा के लिए सीधी बस सेवा है। विशाखापट्टनम-जगदलपुर-किरंदूल एक्सप्रेस व पैसेंजर से दंतेवाड़ा पहुंचें या रायपुर, हैदराबाद वायुयान सेवा से जगदलपुर पहुंच टैक्सी से ढोलकल पहुंच सकते हैं।

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