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Saturday, December 21, 2024

सादगी , ईमानदारी और चतुर राजनीतिक कामराज, प्रधानमंत्री का पद ठुकराया

15 जुलाई को स्वतंत्रता सेनानी और राजनीतिज्ञ के कामराज का जन्म हुआ था। के कामराज को उनकी सादगी, ईमानदारी और चतुर राजनीतिक बुद्धि के लिए जाना जाता था। देश की आजादी के बाद और पहले प्रधानमंत्री नेहरु के निधन के बाद उन्होंने अध्यक्ष के तौर पर कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व किया। लेकिन वह खुद कभी प्रधानमंत्री नहीं बनें। हालांकि लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाने में के कामराज ने किंगमेकर की भूमिका निभाई थी।


जन्म और शिक्षा-
तमिलनाडु के विरूधुनगर में 15 जुलाई 1903 को एक गरीब परिवार में के कामराज का जन्म हुआ था। आर्थिक स्थिति ठीक न हो पाने के कारण उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा भी पूरी नहीं की थी। वहीं महज 11 साल की उम्र से कामराज ने अपने चाचा के किराने की दुकान में काम करना शुरूकर दिया था। इसी दौरान उनके अंदर राजनीति को लेकर रुचि जागी। कामराज के लिए भी जलियांवाला बाग में हुआ नरसंहार एक ट्रिगर प्वाइंट रहा।


राजनीतिक जीवन-
इस घटना ने उनको अपना जीवन राष्ट्र के लिए समर्पित करने के लिए प्रेरित किया। जिसके बाद उन्होंने कार्यसेवक के तौर पर कांग्रेस पार्टी के लिए काम करना शुरू कर दिया। साल 1940 में वह कांग्रेस पार्टी की राज्य इकाई के प्रमुख बनें और फिर साल 1954 तक इस पद पर बने रहे। इसके बाद कांग्रेस पार्टी ने उनको मद्रास का सीएम बना दिया। के कामराज के नेतृत्व में कांग्रेस को मद्रास में संगठनात्मक मजबूती मिली।


मद्रास के सीएम बनने के बाद के कामराज ने राज्य की भीतरी शिक्षा और हेल्थ सेक्टर में अहम कार्य किए। इन दोनों ही क्षेत्रों में इंफ्रास्टक्चर डेवलपमेंट का श्रेय के कामराज को जाता है। उनके कार्यकाल में मद्रास भारत के सबसे अधिक औद्योगिकृत राज्यों में से एक था। बता दें कि साल 1962 तक मद्रास की 85 फीसदी आबादी मुफ्त शिक्षा प्राप्त कर रही थी। इसके अलावा ‘मध्याह्न भोजन योजनÓ भी के कामराज के दिमाग की उपज थी।


कामराज योजना- राष्ट्रीय स्तर पर के कामराज को अनुभवी नेता के तौर पर जाना जाने लगा था। उन्होंने पंडित नेहरु की मृत्यु के बाद कांग्रेस पार्टी का अच्छे से नेतृत्व किया था। नेहरु के निधन के बाद सवाल उठने लगा कि अब देश का अगला पीएम कौन बनेगा। कामराज जानते थे कि पं. नेहरु जैसा दूसरा कोई नहीं हो सकता है। इसलिए उन्होंने प्रधानमंत्री पद के लिए गैर विवादास्पद नाम लाल बहादुर शास्त्री को पीएम की कुर्सी तक पहुंचाया।

शास्त्री के पीएम पद तक पहुंचाने के बाद उनका अगला लक्ष्य पार्टी और सरकार में जोश भरना था। वह कामराज ही थे, जिनके द्वारा सामूहिक नेतृत्व पर जोर देने से पार्टी उस मुश्किल समय से बाहर निकली, जब कांग्रेस ने पं. नेहरु और शास्त्री दोनों को खो दिया था। वहीं दो युद्धों ने और सूखे ने देश की अर्थव्यवस्था को हिलाकर रख दिया था।

इसके अलावा कामराज ने इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री पद तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई। लेकिन इंदिरा का व्यक्तित्व धीरे-धीरे पार्टी और संगठन पर हावी होने लगा। इंदिरा गांधी के समर्थकों और ओल्ड गार्ड या सिंडिकेट के बीच मतभेद होने लगे। जिसके कारण साल 1969 में पार्टी का विभाजन हो गया। वहीं तब तक के कामराज का भी प्रभाव कम होने लगा था। साल 1967 में मद्रास में हुए विधानसभा चुनाव में डीएमके ने कांग्रेस और कामराज को हरा दिया था।

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