ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना ब्रिटेन में 1600 ईस्वी में हुई थी। यह कंपनी मुख्य रूप से व्यापार के उद्देश्य से स्थापित की गई थी। इसका पूरा नाम “गवर्नर एंड कंपनी ऑफ मर्चेंट्स ऑफ लंदन ट्रेडिंग इन्टू द ईस्ट इंडीज” था, लेकिन इसे आमतौर पर “ईस्ट इंडिया कंपनी” के नाम से जाना जाता है। इस कंपनी को ब्रिटेन की महारानी एलिज़ाबेथ प्रथम द्वारा शाही चार्टर प्राप्त हुआ था, जो इसे पूर्वी देशों के साथ व्यापार करने का विशेषाधिकार प्रदान करता था।
ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना और प्रारंभिक उद्देश्य
- 1600 में स्थापना: 31 दिसंबर 1600 को इंग्लैंड की महारानी एलिज़ाबेथ प्रथम ने इस कंपनी को पूर्वी देशों के साथ व्यापार करने का अधिकार दिया।
- मुख्य उद्देश्य: मसालों, रेशम, कपास, चाय, और अन्य व्यापारिक वस्तुओं का आयात-निर्यात करना। कंपनी का प्रारंभिक उद्देश्य भारत और दक्षिण पूर्व एशिया से व्यापार करना था, लेकिन बाद में इसका फोकस मुख्य रूप से भारत पर हो गया।
भारत में प्रवेश
- सूरत में पहला कारखाना (1613): ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1613 में मुगल सम्राट जहांगीर से सूरत में पहला व्यापारिक केंद्र (फैक्टरी) स्थापित करने की अनुमति प्राप्त की। सूरत भारत में कंपनी का पहला प्रमुख व्यापारिक केंद्र बना।
व्यापार से साम्राज्य तक का सफर
- प्लासी की लड़ाई (1757): 1757 में बंगाल के नवाब सिराज-उद-दौला और रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच प्लासी की लड़ाई हुई। इस युद्ध में जीत ने कंपनी को बंगाल पर शासन करने का अधिकार दिया। इसके बाद, कंपनी ने भारत के अन्य हिस्सों में भी अपना प्रभाव बढ़ाया।
- 1765 में दीवानी अधिकार: कंपनी को 1765 में मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय से बंगाल, बिहार और उड़ीसा के दीवानी (राजस्व वसूलने का अधिकार) प्राप्त हुआ, जिससे कंपनी का भारत पर आर्थिक और प्रशासनिक नियंत्रण और मजबूत हो गया।
शासन का विस्तार
- राजनीतिक प्रभाव: व्यापारिक कंपनी से धीरे-धीरे कंपनी ने एक राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरना शुरू किया। कंपनी ने भारत में अपनी सैन्य और प्रशासनिक शक्तियों को बढ़ाया और विभिन्न भारतीय शासकों को हराकर भारत के अधिकांश हिस्सों पर अपना नियंत्रण स्थापित किया।
- डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स: लॉर्ड डलहौजी द्वारा लागू की गई नीति के तहत, बिना उत्तराधिकारी वाले भारतीय शासकों की रियासतें ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन में विलीन कर दी गईं।
ईस्ट इंडिया कंपनी का मुख्यालय लंदन में स्थित था। इसे “ईस्ट इंडिया हाउस” कहा जाता था, जो लंदन के लीडेनहॉल स्ट्रीट (Leadenhall Street) में था। यह इमारत कंपनी की स्थापना के कुछ समय बाद से ही इसका मुख्यालय बन गई और यहाँ से कंपनी अपने वैश्विक व्यापार और प्रशासनिक कार्यों का संचालन करती थी।
ईस्ट इंडिया हाउस का महत्व:
- यहीं से कंपनी के निदेशक और अधिकारी पूरे व्यापारिक और राजनीतिक फैसलों को नियंत्रित करते थे।
- कंपनी के भारत और अन्य एशियाई देशों में होने वाले व्यापारिक और राजनीतिक अभियानों की योजना और प्रबंधन यहीं से किया जाता था।
1857 का विद्रोह और कंपनी का अंत
- 1857 का भारतीय विद्रोह: भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ पहला बड़ा विद्रोह 1857 में हुआ, जिसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का पहला युद्ध माना जाता है। इसे “सिपाही विद्रोह” या “1857 का विद्रोह” भी कहा जाता है।
- कंपनी का अंत (1858): विद्रोह के बाद, ब्रिटिश सरकार ने ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रशासन को समाप्त कर दिया और 1858 में भारत सीधे ब्रिटिश क्राउन के नियंत्रण में आ गया। इसके बाद, कंपनी को आधिकारिक रूप से भंग कर दिया गया।
प्रमुख घटनाएँ और उपलब्धियाँ
- बंगाल का विभाजन (1905): हालांकि कंपनी का शासन 1858 में समाप्त हो गया था, लेकिन इसके समय के दौरान कंपनी ने भारत के विभिन्न हिस्सों में विभाजन और शासन की नीतियों को लागू किया।
- रेलवे, टेलीग्राफ, और शिक्षा प्रणाली की शुरुआत: कंपनी ने अपने शासनकाल में भारत में आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर की नींव रखी, जिसमें रेलवे, टेलीग्राफ और आधुनिक शिक्षा प्रणाली शामिल हैं।
निष्कर्ष
ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत में आगमन केवल व्यापार के लिए हुआ था, लेकिन धीरे-धीरे इसने भारत पर राजनीतिक और प्रशासनिक नियंत्रण स्थापित कर लिया। 1857 के विद्रोह के बाद कंपनी के शासन का अंत हो गया, लेकिन इसने भारत के इतिहास और ब्रिटिश साम्राज्यवाद की जड़ों को गहरा करने में अहम भूमिका निभाई।