हरित क्रांति (Green Revolution) की शुरुआत भारत में 1960 के दशक में हुई थी। इसका मुख्य उद्देश्य देश में खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करना और अनाज के उत्पादन को बढ़ाना था। भारत में हरित क्रांति को बढ़ावा देने के पीछे मुख्य प्रेरक शक्ति एम. एस. स्वामीनाथन थे, जिन्हें “हरित क्रांति के जनक” के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने इस क्रांति को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
1. हरित क्रांति की पृष्ठभूमि
- 1960 के दशक के शुरुआती वर्षों में भारत में खाद्यान्न की भारी कमी थी। देश अकाल, भुखमरी और गरीबी की समस्याओं से जूझ रहा था।
- 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, भारत को खाद्य सुरक्षा की भारी चुनौती का सामना करना पड़ा। अनाज का उत्पादन मांग के अनुसार नहीं हो रहा था, और देश को बड़े पैमाने पर अनाज का आयात करना पड़ रहा था।
- ऐसे समय में एम.एस. स्वामीनाथन, नॉर्मन बोरलॉग (जिन्हें “हरित क्रांति के पिता” कहा जाता है) के साथ मिलकर, एक ऐसी क्रांति की शुरुआत की, जो भारत को खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बना सके।
2. हरित क्रांति की शुरुआत
- 1965-1966 में हरित क्रांति की शुरुआत हुई। इस दौरान भारत सरकार ने उन्नत कृषि तकनीकों को अपनाया और किसानों को समर्थन प्रदान किया।
- हरित क्रांति के तहत, उन्नत बीजों (विशेषकर गेहूं और धान के), रासायनिक उर्वरकों, और सिंचाई की नई तकनीकों का इस्तेमाल किया गया। इन तकनीकों के माध्यम से खेती को और अधिक उत्पादक और लाभकारी बनाने का लक्ष्य रखा गया।
3. मुख्य तत्व
- उच्च उपज वाली बीज किस्में (HYV): गेहूं और धान की HYV किस्मों को लाया गया, जिनसे पारंपरिक किस्मों की तुलना में अधिक उपज प्राप्त हुई।
- रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक: कृषि में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का व्यापक रूप से उपयोग किया गया, जिससे फसल की गुणवत्ता और मात्रा में सुधार हुआ।
- सिंचाई की बेहतर व्यवस्था: हरित क्रांति के दौरान सिंचाई के लिए नहरों, तालाबों और जलाशयों का निर्माण किया गया। साथ ही, किसानों को पंपसेट और अन्य सिंचाई साधन उपलब्ध कराए गए।
- मशीनों का उपयोग: खेती में ट्रैक्टर, हार्वेस्टर, थ्रेशर जैसी मशीनों का उपयोग बढ़ा, जिससे खेती की प्रक्रिया तेज और प्रभावी हो गई।
4. हरित क्रांति के मुख्य क्षेत्र
- हरित क्रांति की शुरुआत विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा, और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में हुई। इन क्षेत्रों को हरित क्रांति का केंद्र कहा जाता है क्योंकि यहाँ पर गेहूं और धान का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया गया।
- इन राज्यों में किसानों को तकनीकी सहायता, वित्तीय समर्थन, और आवश्यक साधन उपलब्ध कराए गए, जिससे कृषि उत्पादन में भारी वृद्धि हुई।
5. हरित क्रांति के परिणाम
- अनाज उत्पादन में वृद्धि: हरित क्रांति की मदद से भारत में गेहूं और धान के उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। इससे भारत न केवल खाद्य संकट से बाहर निकला, बल्कि खाद्यान्न में आत्मनिर्भर भी हो गया।
- आर्थिक विकास: किसानों की आय में वृद्धि हुई और कृषि क्षेत्र ने देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान की। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर भी बढ़े।
- भुखमरी और अकाल का अंत: हरित क्रांति के कारण देश में खाद्यान्न की कमी को दूर किया गया और भुखमरी और अकाल की समस्याओं से निजात मिली।
- कृषि का आधुनिकरण: हरित क्रांति ने पारंपरिक कृषि से आधुनिक कृषि की ओर परिवर्तन किया। इससे कृषि उत्पादन की दक्षता और गुणवत्ता में सुधार हुआ।
6. हरित क्रांति की चुनौतियाँ
- पर्यावरणीय प्रभाव: हरित क्रांति से जमीन की उर्वरता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा, क्योंकि अत्यधिक रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग किया गया।
- क्षेत्रीय असमानता: हरित क्रांति से कुछ विशेष क्षेत्रों में ही अधिक उत्पादन हुआ, जिससे देश के अन्य हिस्सों में समान लाभ नहीं पहुंचा।
- जल संसाधनों की कमी: सिंचाई की नई तकनीकों ने जल संसाधनों पर दबाव डाला, जिससे कई क्षेत्रों में भूजल स्तर में गिरावट आई।
निष्कर्ष
हरित क्रांति ने भारत को खाद्य संकट से उबारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके कारण न केवल देश का अनाज उत्पादन बढ़ा, बल्कि भारत खाद्यान्न में आत्मनिर्भर भी बन गया। हालांकि इसके साथ कुछ चुनौतियाँ भी आईं, जैसे पर्यावरणीय नुकसान और क्षेत्रीय असमानता, लेकिन कुल मिलाकर हरित क्रांति ने भारत के कृषि क्षेत्र में एक क्रांतिकारी बदलाव लाया। आज भी हरित क्रांति के योगदान को कृषि के विकास में अहम माना जाता है।