28 फरवरी (एएनआई): संयुक्त राज्य अमेरिका ने 40 उइगर शरणार्थियों को जबरन चीन वापस भेजने के लिए थाई सरकार की कड़ी आलोचना की है। अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने इस फैसले पर नाराजगी जताते हुए कहा कि उइगर समुदाय के साथ सम्मानजनक व्यवहार किया जाना चाहिए और उनके अधिकारों की रक्षा होनी चाहिए।
रुबियो ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए लिखा, “थाईलैंड ने उइगरों के एक समूह को जबरन चीन भेज दिया। एक पुराने सहयोगी के रूप में, हम इस कार्रवाई से चिंतित हैं, जो अंतरराष्ट्रीय दायित्वों के खिलाफ है। अमेरिका इस फैसले की निंदा करता है और थाई सरकार से अपील करता है कि वह सुनिश्चित करे कि उइगरों के अधिकारों की रक्षा की जाए।”
थाईलैंड पर नरसंहार में चीन की मदद करने का आरोप
पूर्वी तुर्किस्तान की निर्वासित सरकार (ETGE) ने भी इस कार्रवाई की आलोचना करते हुए कहा कि थाईलैंड उइगरों के खिलाफ चीन के नरसंहार में “शर्मनाक रूप से शामिल” हो रहा है। ETGE के अनुसार, 27 फरवरी 2025 को चाइना सदर्न एयरलाइंस की एक उड़ान (CSN5246) से इन 40 उइगर शरणार्थियों को बैंकॉक से काशगर (पूर्वी तुर्किस्तान) भेजा गया।
बयान में कहा गया, “थाई सरकार ने चीनी सरकार और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) के साथ मिलकर उइगरों के खिलाफ हो रहे अपराधों में सहयोग किया है। यह निर्वासन नरसंहार का स्पष्ट प्रमाण है।”
पहले भी जबरन निर्वासन कर चुका है थाईलैंड
यह पहली बार नहीं है जब थाईलैंड ने उइगर शरणार्थियों को चीन वापस भेजा है। 2015 में भी 100 से अधिक उइगर शरणार्थियों को चीन निर्वासित किया गया था, जिनमें से कई को कैद कर लिया गया, यातनाएं दी गईं या मार दिया गया।
पूर्वी तुर्किस्तान सरकार के निर्वासित अध्यक्ष ममतिमिन अला ने कहा, “थाईलैंड ने निर्दोष उइगरों को नरसंहार करने वाले शासन के हवाले कर दिया है। यह मानवता के खिलाफ अपराध में प्रत्यक्ष भागीदारी है, और इसके गंभीर परिणाम होने चाहिए।”
अंतरराष्ट्रीय समुदाय से कार्रवाई की मांग
ETGE ने सभी अंतरराष्ट्रीय संगठनों, मानवाधिकार समूहों और सरकारों से अपील की है कि वे इस मामले पर ध्यान दें और थाईलैंड की निंदा करें। बयान में यह भी कहा गया कि यदि इस तरह की घटनाओं को रोका नहीं गया तो भविष्य में अन्य देशों में रह रहे उइगर शरणार्थियों पर भी खतरा बढ़ सकता है।
क्या होगी अगली कार्रवाई?
विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश थाईलैंड पर कूटनीतिक दबाव बना सकते हैं और प्रतिबंध लगाने की संभावना भी जताई जा रही है। मानवाधिकार संगठन भी इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने की तैयारी कर रहे हैं।