शनिवार को यूनेस्को विश्व विरासत समिति ने जापान की विवादित साडो सोना खदान को सांस्कृतिक विरासत स्थल के रूप में पंजीकृत करने का निर्णय लिया। इससे पहले, जापान ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान कोरियाई कर्मचारियों के शोषण का काला इतिहास दिखाने पर सहमति जताई थी।
यह फैसला जापान और दक्षिण कोरिया के बीच बेहतर होते संबंधों का संकेत है।
उत्तरी जापान के नीगाता तटीय द्वीप पर स्थित यह खदान करीब 400 वर्षों तक सक्रिय था और 1989 में बंद होने से पहले दुनिया के सबसे बड़े सोना उत्पादक खदानों में से एक था।
इस खदान का संबंध जापान द्वारा युद्ध के दौरान कोरियाई मजदूरों के उत्पीड़न से जुड़ा हुआ है।
दक्षिण कोरिया सहित समिति के सदस्यों ने नयी दिल्ली में वार्षिक बैठक में शनिवार को इसके लिये सर्वसम्मत समर्थन प्रदान किया।
समिति ने कहा कि जापान ने अतिरिक्त जानकारी मुहैया कराई है और योजना में सभी जरूरी संशोधन किये हैं। इतना ही नहीं जापान ने युद्ध के समय में खदान के इतिहास पर दक्षिण कोरिया से चर्चा भी की है।
जापानी प्रतिनिधिमंडल ने बैठक में बताया कि जापान ने कार्य की गंभीर परिस्थितियों (कोरियाई मजदूरों) और उनकी मेहनत के बारे में विस्तार से बताने के लिए नयी सामग्री प्रकाशित की है।
जापान ने स्वीकार किया कि कोरियाई मजदूरों को खदान में अधिक खतरनाक कार्यों में लगाया गया था, जिसके परिणामस्वरूप कुछ की मौत भी हो गयी। उनमें से कई को बहुत कम मात्रा में भोजन दिया जाता था और उन्हें कोई छुट्टी भी नहीं मिलती थी।
दक्षिण कोरियाई प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि कोरियाई देश जापान से उम्मीद करता है कि वह इतिहास की सच्चाई को लोगों के सामने रखेगा और साडो खदान के सुनहरे और काले इतिहास से लोगों को अवगत कराएगा ताकि दोनों देशों के बीच संबंध बेहतर हों।