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Wednesday, February 5, 2025
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अब्दुल रहीम खान ए खाना : सर्वगुण सम्पन्न ऐतिहासिक पुरूष

अब्दुल रहीम खान ए खाना , अकबर के दरबार में नवरत्नों में से एक थे। वे अकबर के सिपहा सलाह बैरम खाँ के बेटे थे। बैरम खाँ ने कम उम्र के बादशाह अकबर के राज्य को मजबूत बनाने में पूरा सहयोग दिया। उनमें मतभेद होने पर बैरम खाँ अकबर की अनुमति से हज जाने निकले पर रास्ते में
गुजरात में बैरम खाँ की हत्या कर दी गई। बैरम खाँ की विधवा सुलताना और बेटा रहीम अकबर के पास पनाह लेने पहुंचे। अकबर ने रहीम की परवरिस की और बाद में सुलताना बेगम से निकाह किया। जिससे रहीम उनके सौतेले बेटे भी बन गये। रहीम की शिक्षा- दीक्षा अकबर की उदार धर्मनिरपेक्ष नीति के अनुकुल हुई। वे भगवान कृष्ण के भी अनन्य भक्त थे . रहीम जन्म से ही विलक्षण प्रतिभा के मालिक थे। उनके अंदर कई ऐसी विशेषताएं थी जिनके कारण वह बहुत जल्दी अकबर के दरबार के नवरत्नों में शामिल हो गये।

अकबर ने उन्हें कम उम्र से ही ऐसे-ऐसे काम सौंपे कि बाकी दरबारी आश्चर्य चकित हो जाया करते थे। मात्र सत्तरह वर्ष की आयु में 1573 ई. में गुजरातियों की बगावत को दबाने के लिए जब सम्राट अकबर गुजरात पहुँचा तो पहली बार मध्य भाग की कमान रहीम को सौप दिया। इस समय उनकी उम्र सिर्फ 17 वर्ष की थी। विद्रोह को रहीम की अगुवाई में अकबर की सेना ने प्रबल पराक्रम के साथ दबा दिया।

गुजरात विजय के कुछ दिनों पशचात, अकबर ने वहाँ के शासक खान आजम को दरबार में बुलाया। खान आजम के दरबार में आ जाने के कारण वहाँ उसका स्थान रिक्त हो गया। गुजरात प्रांत धन-जन की दृष्टि से बहुत ही अहम था। राजा टोडरमल की राजनीति के कारण वहाँ से पचास लाख रुपया वार्षिक दरबार को मिलता था। ऐसे प्रांत में अकबर अपने को नजदीकी व विश्वासपात्र एवं होशियार व्यक्ति को प्रशासक बनाकर भेजना चाहता था। ऐसी सूरत में अकबर ने सभी लोगों में सबसे ज्यादा उपयुक्त रहीम (मिर्जा खाँ) को चुना और काफी सोच विचार करके मिर्जा खाँ को गुजरात प्रांत की सूबेदारी सौंपी गई।

ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार रहीम जैसा कवियों का आश्रयदाता एशिया तथा यूरोप में कोई न था। रहीम के आश्रयदायित्व देश- विदेशों मे इतनी धूम मच गई थी कि किसी भी दरबार में कवियों को अपने सम्मान में जरा भी कमी महसूस होती थी, वह फौरन ही रहीम के आश्रय में आ जाने की धमकी दे डालते थे।

अकबर के दरबार को प्रमुख पदों में से एक मीर अर्ज का पद था। यह पद पाकर कोई भी व्यक्ति रातों रात अमीर हो जाता था, क्योंकि यह पद ऐसा था जिससे पहुँचकर ही जनता की फरियाद सम्राट तक पहुँचती थी और सम्राट के द्वारा लिए गए फैसले भी इसी पद के जरिये जनता तक पहुँचाए जाते थे। इस पद पर हर दो- तीन दिनों में नए लोगों को नियुक्त किया जाता था। सम्राट अकबर ने इस पद का काम- काज सुचारु रुप से चलाने के लिए अपने सच्चे तथा विश्वास पात्र अमीर रहीम को मुस्तकिल मीर अर्ज नियुक्त किया।

मशहूर हल्दी घाटी लड़ाई में भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। रहीम एक ऐतिहासिक पुरूष थे। वे ऐसे व्यक्तित्व थे जो अपने अंदर कवि का गुण, वीर सैनिक का गुण, कुशल सेनापति, सफल प्रशासक , अद्वितीय आश्रयदाता, गरीबदाता, विश्वासपात्र मुसाहिब, नीति कुशल नेता, महान कवि, विविध भाषाविद, उदार कला पारखी जैसे अनेकानेक गुणों के मालिक थे।

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