उड़ीसा के पुरी के जगन्नाथ मंदिर में आज स्नान पूर्णिमा के मौके पर भगवान जगन्नाथ का स्नान किया जाता है। भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ श्री मंदिर में भक्तों के सामने स्नान करते हैं। इसलिए इस पूर्णिमा का नाम स्नान पूर्णिमा रखा जाता है। महा स्नान, जिसे देवस्नान कहते हैं, इसके बाद भगवान बीमार हो जाते हैं। इसलिए ज्वार होने के कारण उन्हें एकांत वास या अनवसर वास में भेजा दिया जाता है। जहां बैद्य जी भी आकर उन्हें दवा देते हैं।
इस दौरान मंदिर में कोई प्रवेश नहीं कर सकता है। मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। कुछ ही सेवक और वैद्य भगवान की सेवा करते हैं। इस दौरान भगवान जगन्नाथ को श्वेत सूती वस्त्र पहनाए जाते हैं, आभूषण हटा दिए जाते हैं और आहार में केवल फल, जूस और दलिया और जड़ी बूटी दी जाती हैं।
इसके बाद उनके लिए विशेष तेल मंगाया जाता है, जिससे उनकी मालिश की जाती है। औषधी में काढ़े में नीम, हल्दी, हरड़, बहेड़ा, लौंग आदि जड़ी-बूटियों को मिलाकर मोदक बनाए जाते हैं और भगवान को अर्पित किए जाते हैं। जिसके बाद भगवान रथयात्रा के लिए तैयार होते हैं।
मान्यता: सोने की ईंट वाला कुआं, इसमें सभी तीर्थों का जल होता है मंदिर के पुजारियों का कहना है कि इस इस कुएं में कई तीर्थों का जल है। इसी कुंए के जल से भगवान स्नान करते हैं। भगवान को स्नान के लिए मंदिर से बाहर लाया जाता है। इसके बाद 25 तारीख को भगवान के विग्रह को सजाया जाएगा। 26 जून को भगवान के नवयौवन दर्शन होंगे और उनसे रथ यात्रा के लिए याज्ञा ली जाएगी। 27 जून को सुबह गुंडिचा मंदिर के लिए रथयात्रा शुरू होगी। भगवान की रथयात्रा का बहुत महत्व है। ऐसा कहा जाता है कि जो व्यक्ति भगवान की इस रथ को खींचता है, वो जन्म मरण के इस फेर से मुक्त हो जाता है।