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Monday, December 9, 2024

शिशुपाल पर्वत का इतिहास, छत्तीसगढ़ की शान, मन मोह लेती है इसकी सुंदरता, जानें यहां के प्रपात का कैसे पड़ा नाम

महासमुंद. आप अगर ट्रैकिंग के शौकीन हैं, तो छत्तीसगढ़ के शिशुपाल पर्वत से ज्यादा खूबसूरत जगह कोई दूसरी नहीं हो सकती. प्रकृति की गोद में सुकून की तलाश करने वाले लोगों का इस पहाड़ पर चढ़ना किसी रोमांचक सफर जैसा है. बता दें कि ऐतिहासिक महत्व वाले इस 1200 फीट ऊंचे पहाड़ से राजा शिशुपाल ने घोड़े सहित छलांग लगा दी थी. स्वाभिमान से जुड़ी दास्तान वाला यह शिशुपाल पर्वत राजधानी रायपुर से करीब 157 किलोमीटर की दूरी और महासमुंद जिले के सरायपाली से करीब 28 किमी की दूरी पर स्थित है.

शिशुपाल पर्वत पर प्राकृतिक सौंदर्य, एडवेंचर और ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए लगभग 1200 फीट की सीधी चढ़ाई यादगार अनुभव बन जाती है. इस पहाड़ की चोटी पर बड़ा सा मैदान है, जो अपने आप में अनोखा है. वहीं, शिशुपाल पर्वत पर घोड़ाधार नाम का बेहद ऊंचाई से गिरने वाला एक झरना है. इसके अलावा पर्वत पर जन आस्था का केंद्र प्राचीन शिव मंदिर स्थित है. ऐसा कहा जाता है कि इस पहाड़ पर जड़ी-बूटियों और कई औषधीय गुणों वाले पौधे पाए जाते हैं.ऐसे पड़ा इस पहाड़ का नाम बताया जाता है कि इसी पहाड़ के ऊपर किसी समय राजा शिशुपाल का महल हुआ करता था. जब राजा को अंग्रेजों ने घेर लिया तब राजा ने अपने घोड़े की आंख पर पट्टी बांधकर पहाड़ से छलांग लगा दी थी. इसी कारण इस पहाड़ को शिशुपाल पर्वत और यहां के झरने को घोड़ाधार जलप्रपात कहा जाता है.

महल और घोड़ाधार झरना
यहां पहाड़ पर राजा शिशुपाल का महल है. जो अब जीर्ण-शीर्ण हालत में है. राजा शिशुपाल के संदर्भ में कहा जाता है कि वे बेहद साहसी और आत्मसम्मानी थे. बताते है कि कब्ज़े की नीयत से जब अंग्रेजी सल्तनत ने महल पर आक्रमण कर राजा को घेर लिया तब शिशुपाल ने अपने घोड़े की आंखों पर पट्टी बांध दी और इस विशाल पर्वत की चोटी से कूद गए. इसलिए इस पर्वत से गिरने वाले झरने को ‘घोड़ाधार जलप्रपात’ कहा जाता है. यह मौसमी झरना है जो बारिश के दिनों में देखा जा सकता है. करीब 1000 फीट की ऊंचाई से गिरने वाले झरने ने पत्थरों को इस तरह काटा है कि दृश्य बहुत ही आकर्षक बन पड़ा है.

शिव मंदिर
यहां एक प्राचीन शिव मंदिर है. भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर के बाहर आज भी मकर संक्रांति के अवसर पर विशाल मेला लगता है. हजारों की संख्या में श्रृद्धालु यहां आते हैं. कहते हैं इस सूर्यमुखी मंदिर में पहले हनुमान सिक्का जड़ा हुआ था. जिसे बहुत शक्तिशाली और प्रभावशाली माना जाता था, लेकिन अब यह सिक्का यहां से गायब है.
रानी तालाब और राजा कचहरी
बताते हैं कि राजा शिशुपाल की दो रानियां थीं। दोनों के अलग-अलग सरोवर यानि तालाब थे जो अब भी हैं. वहीं राजा की कचहरी के भग्नावशेष भी हैं, जहां राजा प्रजा से मिला करते थे.सुरंग में था शस्त्रागार
यहां एक बहुत लंबी सुरंग है. नदी की रेत ने अब इस सुरंग का मार्ग अवरुद्ध कर दिया है लेकिन स्थानीय निवासी बताते हैं कि सुरंग के भीतर अब भी राजा के अस्त्र-शस्त्र पड़े हुए हैं.

विशाल गुफा
यहां पर्वत पर एक बहुत गहरी गुफा है. गुफा इतनी विशाल है कि सैकड़ों लोग एक साथ विश्राम करने के लिए भीतर बैठ सकते हैं.

पंचमुखी हनुमान मंदिर
कुछ सौ मीटर की चढ़ाई करने के बाद आपको एक छोटा सा हनुमान मंदिर मिलेगा. स्थानीय लोग बताते हैं कि इस पंचमुखी हनुमान मंदिर तक पहुंचकर लोग थोड़ा सुस्ता सकें इसके लिए ग्रामीणों ने बड़ी मेहनत की है. वे जब मंदिर के मेले में जाते हैं तो एक थैले में रेत और एकाध ईंट ले आते हैं और यहां उसको बिछा देते हैं. इससे पर्वत पर चढ़ने वालों के लिए थकने पर थोड़ा बैठने की जगह बन गई है.

जड़ी-बूटियां
इस पर्वत के इर्द-गिर्द बहुत सी आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां देखी जा सकती हैं. शतावर और अश्वगंधा खासकर यहां बहुत अच्छी मात्रा में हैं. शिशुपाल पर्वत को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किए जाने की तैयारियां शुरू हो ही चुकी हैं हालांकि पहले से भी यहां पर्यटक आते रहे हैं, लेकिन आगे सुविधाएं और बेहतर होंगी.

कैसे पहुचें शिशुपाल पर्वत
दोस्तों इस जगह पे आप सड़क माध्यम से ही सुगमता से पहुँच सकते हैं। फिर भी हम आपको अन्य माध्यम इस अवगत करा रहे हैं।

सड़क मार्ग – छत्तीसगढ़ जिला मुख्यालय महासमुंद से शिशुपाल पर्वत मात्र 149Km की दुरी में स्थित हैं, तथा विकासखंड सराईपाली से 26Km हैं।
हवाईमार्ग – निकटम हवाई अड्डा राजधानी रायपुर में स्थित हैं।
रेल मार्ग – महासमुंद तक ट्रेन की सुविधा है उसके बाद आपको बस, टैक्सी, या बाइक करना पड़ेगा।

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