उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले से एक बेहद दर्दनाक और चौंकाने वाली खबर सामने आई है। 22 वर्षीय कबड्डी खिलाड़ी बृजेश सोलंकी, जो राज्य स्तर पर गोल्ड मेडलिस्ट रह चुके थे और प्रो कबड्डी लीग की तैयारी कर रहे थे, उनकी मौत रेबीज जैसी जानलेवा बीमारी से हो गई। यह बीमारी उन्हें एक पिल्ले के काटने से हुई थी।
कैसे हुआ हादसा?
मार्च 2025 में बृजेश के गांव फराना में एक दिन एक कुत्ते का छोटा बच्चा (पिल्ला) गांव की नाली में गिर गया था। इंसानियत दिखाते हुए बृजेश ने उसे बाहर निकालने की कोशिश की। इस दौरान पिल्ले ने उनके दाहिने हाथ की उंगली में काट लिया। चोट हल्की थी, इसलिए बृजेश ने इसे मामूली समझकर नजरअंदाज कर दिया। उन्होंने एंटी-रेबीज वैक्सीन नहीं लगवाया, जो कि एक जानलेवा भूल साबित हुई।
दो महीने बाद बिगड़ी तबीयत
लगभग दो महीने बाद, जून 2025 में बृजेश को अपने दाहिने हाथ में सुन्नपन महसूस होने लगा। फिर धीरे-धीरे उनके पूरे शरीर में ठंडक, जलकांटा (पानी से डर) और अजीब से झटके आने लगे। हालत गंभीर होती चली गई। परिजन उन्हें अलीगढ़, मथुरा और फिर दिल्ली के अस्पतालों में ले गए, जहां आखिरकार रेबीज की पुष्टि हुई। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। 27 जून को दिल्ली से गांव लौटते समय रास्ते में ही बृजेश ने दम तोड़ दिया। उनकी तड़पते हुए हालत का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसने सबको झकझोर दिया।
रेबीज क्या है और कितना खतरनाक है?
रेबीज एक वायरल बीमारी है जो मुख्य रूप से संक्रमित जानवरों के काटने से फैलती है। इसका वायरस नर्वस सिस्टम को प्रभावित करता है और सीधे दिमाग तक पहुंचकर सूजन (इंसेफेलाइटिस) पैदा करता है। इसके कारण इंसान को लकवा, कोमा और अंत में मौत हो सकती है। WHO के मुताबिक, हर साल दुनियाभर में 26,000 से 59,000 लोग रेबीज से मरते हैं, जिनमें ज्यादातर मामले एशिया और अफ्रीका से होते हैं।
कितनी तेजी से फैलता है रेबीज?
काटने के स्थान, गहराई और वायरस की मात्रा पर रेबीज का असर निर्भर करता है। आमतौर पर वायरस को दिमाग तक पहुंचने में 1 से 3 महीने लगते हैं।
कुछ मामलों में यह 1 हफ्ते से भी कम या 1 साल तक का समय भी ले सकता है। वायरस की रफ्तार लगभग 3 से 12 मिलीमीटर प्रतिदिन होती है।
बचाव ही सबसे बड़ा इलाज
रेबीज का कोई इलाज नहीं है, लेकिन अगर समय पर टीका लग जाए तो 100% बचाव संभव है। अगर किसी भी जानवर, खासकर कुत्ते या बिल्ली के काटने, खरोंचने या चाटने से चोट लगे, तो तुरंत-
घाव को साबुन और पानी से धोएं,
पास के अस्पताल में जाकर एंटी रेबीज टीका लगवाएं,
और डॉक्टर की सलाह जरूर लें।
एक टीका, जो बचा सकता था जान बृजेश की मौत ने सबको सोचने पर मजबूर कर दिया है कि थोड़ी सी जागरूकता और सतर्कता किसी की जान बचा सकती है। उनकी कहानी सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि हर इंसान के लिए एक चेतावनी है कभी भी किसी जानवर के काटने को हल्के में न लें।