दीवानी प्रक्रिया संहिता के आदेश 3 नियम 4 में यह उपबंध किया गया है कि कोई भी प्लीडर किसी भी न्यायालय में किसी भी व्यक्ति के लिए कार्य नहीं करेगा जब तक कि वह उस व्यक्ति द्वारा ऐसी लिखित दस्तावेज द्वारा इस प्रयोजन के लिए नियुक्त न किया गया हो जो उस व्यक्ति द्वारा या उस के मान्यताप्राप्त अभिकर्ता द्वारा या ऐसी नियुक्ति करने के लिए मुख्तारनामे द्वारा या उस के अधीन सम्यक रूप से प्राधिकृत किसी अन्य व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित है। ऐसे दस्तावेज को ही हम अभिभाषक-पत्र या वकालत नामा कहते हैं।
वकील ने आप से दो ऐसे अभिभाषक पत्रों पर हस्ताक्षर करवाए हैं जिन्हें भरा नहीं गया है। आप ने वाद पत्र तथा उस के साथ आवश्यक टाइप किए गए जिन कागजों पर हस्ताक्षर किए हैं, उन के अलावा अनेक फार्म और भी हैं जिन्हें आप के वाद पत्र के साथ न्यायालय में प्रस्तुत करना पड़ेगा। इन सभी फार्मों को वकील का क्लर्क या मुंशी भरेगा। आप से जिन खाली वकालतनामों या अभिभाषक-पत्रों पर हस्ताक्षर कराए गए हैं उन्हें भी मुंशी ही भरेगा। उन में से एक तो वाद प्रस्तुत करने के साथ ही न्यायालय में प्रस्तुत कर दिया जाएगा। लेकिन दूसरा अभिभाषक-पत्र आप के वकील ने क्यों हस्ताक्षर करवाया है ? यह आप का वकील ही बता सकता है। हो सकता है उस ने आप की ओर से दो भिन्न न्यायालयों में भिन्न-भिन्न कार्यवाहियाँ दाखिल की हों। अनेक वकील , एक वकालतनामा इस सबूत के रूप में रखते हैं कि वह आप द्वारा नियुक्त वकील है ।
