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मप्र में अब निकाय अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के खिलाफ तीन वर्ष से पहले अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकेगा।

मध्य प्रदेश में नगर पालिका और नगर परिषद अध्यक्ष-उपाध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की अवधि तीन साल करने की योजना है। वर्तमान में इसकी अवधि दो वर्ष है, लेकिन इसे एक वर्ष अधिक करने पर सहमति हुई है।मध्य प्रदेश में अब नगर पालिका और नगर परिषद अध्यक्ष-उपाध्यक्ष के खिलाफ तीन वर्ष से पहले अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकेगा। भाजपा और कांग्रेस ने अविश्वास प्रस्ताव लाने की अवधि बढ़ाने पर समझौता कर लिया है, जिसके बाद नगरीय विकास एवं आवास विभाग ने योजना बनाई है।

नगर पालिका अधिनियम 1961 की धारा 43 क को अध्यादेश से संशोधित किया जाएगा। वहीं, वरिष्ठ सचिव समिति ने अविश्वास प्रस्ताव को दो तिहाई पार्षदों के स्थान पर तीन चौथाई पार्षदों के हस्ताक्षर से प्रस्तुत करने का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया।

भी पढ़ेंजुलाई-अगस्त 2022 में पूरे राज्य में नगरीय निकायों के दो वर्षीय चुनाव हुए। इस बार पार्षदों ने नगर पालिका और नगर परिषद के अध्यक्ष का चुनाव नहीं किया, बल्कि जनता से सीधे चुनाव किया गया। यदि पार्षदों को अध्यक्ष या उपाध्यक्ष पर विश्वास नहीं है, तो अधिनियम में प्रविधान है कि वे अविश्वास प्रस्ताव ला सकते हैं।

इसके लिए दो तिहाई पार्षदों के हस्ताक्षर वाले प्रस्ताव और दो वर्ष की अवधि में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव होना चाहिए। यह आशंका थी कि अविश्वास प्रस्ताव आ सकता है क्योंकि दो वर्ष की अवधि पूरी हो गई थी और विधानसभा चुनाव के समय बड़ी संख्या में पार्षदों ने दलबदल किया था।

पार्टी स्तर पर विचार कियाइस बार नगर पालिका और परिषद के अध्यक्ष का चुनाव पार्षदों द्वारा किया गया है, जो महत्वपूर्ण है। लेकिन महापौर चुनाव सीधे मतदाताओं द्वारा हुआ है। जब अविश्वास प्रस्ताव स्वीकृत हो जाता है, तो पार्षदों का सम्मेलन होता है और एक नए अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का चुनाव होता है।

जबकि महापौर के मामले में खाली जगह भरी जाती है। इसमें मतदाता निर्धारित करते हैं कि महापौर रहे या नहीं। इस प्रविधान में कोई बदलाव नहीं होगा।

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