9 जून 2024 को नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली और यह साफ कर दिया कि उनके शासन में पड़ोसी देशों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। प्रधानमंत्री मोदी की शपथ ग्रहण समारोह में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना और श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे जैसे पड़ोसी देशों के नेताओं की उपस्थिति ने इस नीति को मजबूत किया। इसके बाद 23 जुलाई को वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए प्रस्तुत पूर्ण बजट में विदेश मंत्रालय ने विकास सहायता के लिए 4883 करोड़ रुपये आवंटित किए। इस बजट का एक महत्वपूर्ण हिस्सा पड़ोसी देशों को दिया जाएगा, जिसमें नेपाल, श्रीलंका, भूटान, मालदीव, अफगानिस्तान और म्यांमार को शामिल किया गया है।
विकास सहायता की जरूरत और इसका महत्व
विकास सहायता, जिसे विदेशी मदद भी कहा जाता है, बड़े देशों द्वारा छोटे देशों को आर्थिक और सामाजिक सहायता प्रदान करने की प्रक्रिया है। इसका उद्देश्य उन देशों को लंबे समय तक प्रगतिशील बनाना है ताकि वे विकासशील बने रहें। यह सहायता केवल वित्तीय नहीं होती बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, पर्यावरण और राजनीतिक सुधारों में भी मदद करती है। इसे राहत कार्य से अलग रखा जाता है, जो आपातकालीन परिस्थितियों जैसे प्राकृतिक आपदाओं के दौरान प्रदान की जाती है। आधिकारिक विकास सहायता (ODA) के माध्यम से इस तरह की सहायता का आकलन किया जाता है।
कैसे दी जाती है विकास सहायता
विकास सहायता दो मुख्य तरीकों से दी जाती है: द्विपक्षीय (बिलैटरल) और बहुपक्षीय (मल्टीलेटरल)। द्विपक्षीय सहायता एक देश द्वारा सीधे दूसरे देश को दी जाती है, जबकि बहुपक्षीय सहायता अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं जैसे विश्व बैंक या संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों के माध्यम से दी जाती है। वर्तमान में लगभग 70% सहायता द्विपक्षीय और 30% बहुपक्षीय होती है। आधिकारिक विकास सहायता का 80% हिस्सा सरकारों द्वारा प्रदान किया जाता है, जबकि शेष 20% निजी संस्थाओं, चैरिटीज और एनजीओ द्वारा दिया जाता है। हालांकि, ज्यादातर मदद अमीर देशों से आती है, लेकिन कुछ गरीब देश भी मदद करते हैं। ध्यान देने वाली बात यह है कि जो पैसे विदेश में रहने वाले लोग अपने देश की मदद के लिए भेजते हैं, उसे विकास सहायता नहीं माना जाता क्योंकि ये पैसे सीधे लोगों को मिलते हैं, न कि किसी योजना के लिए।