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Saturday, April 19, 2025
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एक्सपर्ट की राय, बच्चों में Reels देखने की आदत से हो सकता मायोपिया

सोशल मीडिया पर रील्स देखने की आदत अब बच्चों और युवाओं के लिए गंभीर आंखों और मानसिक स्वास्थ्य का संकट बन चुकी है। विशेषज्ञों का कहना है कि लंबे समय तक रील्स देखने से आंखों में कई समस्याएं हो सकती हैं, जैसे ड्राई आई सिंड्रोम, मायोपिया (नजदीक की दृष्टि कमजोर होना), धुंधली दृष्टि और आंखों में जलन। इसके साथ ही यह मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा असर डाल रहा है, जिससे माइग्रेन और तनाव जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं।

Reels दे रही डिजिटल आई स्ट्रेन
नेत्र रोग विशेषज्ञों ने इस समस्या को ‘डिजिटल आई स्ट्रेन की महामारी’ करार कर दिया है। उनका कहना है कि बच्चों और युवाओं में यह समस्या तेजी से बढ़ रही है, क्योंकि वे लगातार स्क्रीन पर ध्यान लगाए रखते हैं। रील्स का छोटा और आकर्षक कंटेंट लोगों को घंटों तक स्क्रीन पर ध्यान बनाए रखने के लिए मजबूर करता है। इस दौरान पलकें झपकाने की दर 50 प्रतिशत तक घट जाती है, जिसके कारण आंखें सूख जाती हैं और आई स्ट्रेन बढ़ जाता है। इसके अलावा, ज्यादा समय तक रील्स देखने से नजदीकी दृष्टि (मायोपिया) की समस्या हो सकती है, खासकर उन लोगों में जो रोजाना घंटों तक रील्स देखते हैं।

2050 तक 50 फीसदी आबादी को हो सकता है मायोपिया
चौंकाने वाली बात यह है कि 2050 तक दुनिया की 50 प्रतिशत आबादी मायोपिया (निकट दृष्टि दोष) से प्रभावित हो सकती है। पहले 21 साल की उम्र के बाद चश्मे का नंबर नहीं बढ़ता था, लेकिन अब 30 साल तक की उम्र में भी चश्मे का नंबर बढ़ने का खतरा बढ़ गया है।

ब्लू लाइट दे रही सिरदर्द-माइग्रेन और अनिद्रा
Adults में भी नीली रोशनी (ब्लू लाइट) के अधिक संपर्क से सिरदर्द, माइग्रेन और नींद की समस्या बढ़ रही है। रील्स और मोबाइल स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताने से आंखों के अलावा मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित हो सकता है।

क्या करें?
इस बढ़ती समस्या से बचने के लिए विशेषज्ञों ने कुछ उपाय सुझाए हैं
20-20 का नियम अपनाएं: हर 20 मिनट में 20 सेकंड का ब्रेक लें और 20 फीट दूर देखे।
पलकें झपकाएं: स्क्रीन के सामने रहते हुए पलकें झपकाने की आदत डालें ताकि आंखों को आंतरिक नमी मिल सके। आंखों में पानी के छींटे भी मारते रहे अगर ड्राई नेस की समस्या अधिक है तो डाक्टर को चेकअप जरूर करवाएं।

स्क्रीन टाइम सीमित करें: रील्स और अन्य स्क्रीन टाइम को नियंत्रित करें ताकि आंखों पर कम दबाव पड़े। रील्स और सोशल मीडिया पर ज्यादा समय बिताने से आंखों और मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं बढ़ रही हैं। खासकर बच्चों और युवाओं में यह समस्या ज्यादा घेरे हुई है। 2 साल से छोटे बच्चे को बिलकुल स्क्रीन ना दिखाए। वहीं, बड़े बच्चों को भी एक नियत समय के लिए फोन का इस्तेमाल करने को दें।

पहले समझिए क्या होता है स्क्रीन टाइम?
स्क्रीन टाइम का मतलब होता है कि आपका बच्चा 24 घंटे में कितनी देर तक मोबाइल, टीवी, लैपटॉप और टैबलेट जैसे गैजेट का इस्तेमाल कर रहा है। उम्र के अनुसार, स्क्रीन टाइम यूज करने के लिए उम्र के अनुसार एक निश्चित समय सीमा होती है और उसी के हिसाब से ही हमें अपने बच्चों को स्क्रीन पर समय बिताने देना चाहिए।

कितना होना चाहिए बच्चों का स्क्रीन टाइम
कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, 2 साल से छोटे बच्चों को स्क्रीन टाइम से दूर ही रखना चाहिए। 2-5 साल तक के बच्चे को एक घंटे से ज्यादा स्क्रीन न देखने दें लेकिन 5 साल से बड़ी उम्र के बच्चों के लिए स्किन टाइम देखने के लिए कोई निश्चित गाइडलाइंस नहीं बनाई है लेकिन आप इस उम्र के बच्चों के लिए यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर सकते हैं कि उनकी शारीरिक गतिविधि, पर्याप्त नींद, स्कूल के काम के लिए समय, भोजन और परिवार के समय जैसी अन्य गतिविधियों के साथ स्क्रीन समय को बैलेंस किया जा सके।

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