दुनिया में जब भी दो देशों के बीच युद्ध होता है, तो अक्सर केमिकल वेपन का जिक्र सामने आता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि केमिकल वेपन क्या होता है और सबसे पहले किस देश ने इसका इस्तेमाल किया था? आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से।
केमिकल वेपन क्या है?
केमिकल वेपन को रासायनिक हथियार भी कहा जाता है। ये हथियार गैस, तरल या ठोस रूप में इस्तेमाल किए जा सकते हैं। इनकी फैलने की गति बहुत तेज होती है और ये कुछ ही मिनटों में हजारों जानें ले सकते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, रासायनिक हथियारों का भंडार पृथ्वी पर जीवन को कई बार समाप्त कर सकता है। जब कोई देश केमिकल अटैक करता है, तो जहरीले तरल, ठोस या गैस को पर्यावरण में छोड़ा जाता है, जिससे व्यापक स्तर पर जनहानि होती है।
इन खतरनाक केमिकल में विषैली गैस ऑक्सिम, लेविसिट, सल्फर मस्टर्ड, नाइट्रोजन मस्टर्ड, सरीन, क्लोरीन गैस, हाइड्रोजन साइनाइड, फॉस्जीन और डाई फॉस्जीन शामिल हैं
आगे पढ़ेसबसे पहले किस देश ने किया था इसका इस्तेमाल?
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी ने सबसे पहले केमिकल हथियारों का इस्तेमाल किया था। प्रथम विश्व युद्ध 1914 में शुरू हुआ और 1918 में समाप्त हुआ था। इस युद्ध में नागरिकों और सैनिकों सहित करोड़ों लोगों की जान गई थी। इस दौरान केमिकल हथियारों का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया।
एक अनुमान के अनुसार, प्रथम विश्व युद्ध में हुई कुल मौतों में से 85% मौतें केमिकल हथियारों के कारण हुई थीं। इस दौरान सबसे ज्यादा मस्टर्ड गैस का उपयोग किया गया था।
किन देशों पर किया गया था केमिकल हथियार का इस्तेमाल?
जर्मनी ने केमिकल हथियार के रूप में जहरीली मस्टर्ड गैस का इस्तेमाल विशेष रूप से कनाडा, ब्रिटेन और फ्रांस की सेनाओं पर किया था। इसकी वजह से अनगिनत सैनिकों के साथ-साथ आम नागरिकों की भी जान चली गई थी।
मस्टर्ड गैस बेहद जहरीली होती है और इसके संपर्क में आने से त्वचा, आंखों और फेफड़ों पर गंभीर असर पड़ता है। यह गैस सैनिकों और नागरिकों के लिए अत्यधिक घातक साबित हुई थी।
केमिकल हथियारों का उपयोग आज भी एक गंभीर वैश्विक मुद्दा बना हुआ है, और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई संधियों के माध्यम से इसके इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया गया है।
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