यह अध्ययन जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को और भी स्पष्ट करता है, खासकर महासागरों की बढ़ती गर्मी के संदर्भ में। शोधकर्ताओं ने पाया कि पिछले 40 वर्षों में महासागरों का तापमान चार गुना से अधिक बढ़ चुका है, और यह भविष्य में और भी तेजी से बढ़ने की संभावना है।
1980 के दशक से महासागर की सतह के तापमान में वृद्धि की दर में उल्लेखनीय परिवर्तन हुआ है। पहले, यह प्रति दशक 0.1 डिग्री फ़ारेनहाइट (0.06 डिग्री सेल्सियस) बढ़ रही थी, लेकिन अब यह दर 0.5 डिग्री फ़ारेनहाइट (0.27 डिग्री सेल्सियस) प्रति दशक हो गई है। यह महासागरों में गर्मी के बढ़ने का संकेत है, और इसका सीधा संबंध जलवायु परिवर्तन से है।
आगे पढ़ेयदि हम जलवायु परिवर्तन के कारणों को गंभीरता से नहीं लेते और जीवाश्म ईंधन का उपयोग कम नहीं करते, तो आने वाले दशकों में समुद्र की गर्मी में वृद्धि और तेज़ हो सकती है। यह चेतावनी दी गई है कि यदि इस प्रवृत्ति को रोका नहीं गया, तो वैश्विक जलवायु के और भी गंभीर परिणाम होंगे, जैसे समुद्र स्तर में वृद्धि, तटीय समुदायों के लिए खतरे, अधिक चरम मौसम, और कृषि उत्पादन में कमी। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन पृथ्वी की प्रजातियों की विविधता को भी खतरे में डाल सकता है, जिसके परिणामस्वरूप कई प्रजातियाँ विलुप्त हो सकती हैं।
अध्ययन में वैज्ञानिकों ने उपग्रह डेटा का इस्तेमाल करते हुए महासागरों के तापमान में दशकों के दौरान हुए परिवर्तनों का विश्लेषण किया। उन्होंने यह पाया कि समुद्रों की बढ़ती गर्मी जलवायु परिवर्तन और पृथ्वी द्वारा ग्रहण की जा रही अतिरिक्त ऊर्जा से संबंधित है, जिसे “पृथ्वी का ऊर्जा असंतुलन” कहा जाता है। ग्रीनहाउस गैसें जैसे CO₂ और CH₄, जो वायुमंडल में गर्मी को फंसा देती हैं, इस असंतुलन का मुख्य कारण हैं।
इस अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि महासागरों की गर्मी में वृद्धि जलवायु परिवर्तन के संकेतक के रूप में कार्य करती है और इसका असर समग्र पृथ्वी के जलवायु तंत्र पर पड़ता है।
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