वास्तु पुरुष के जन्म की कथा : पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार देवताओं और असुरों के बीच भयंकर युद्ध हुआ था. अंधकासुर के साथ युद्ध के दौरान, शिव के सिर से उनके पसीने की कुछ बूंदें धरती पर गिरीं, जिससे एक विशालकाय प्राणी का जन्म हुआ. इसी विशालकाय प्राणी को वास्तु पुरुष के नाम से जाना जाता है. विशालकाय होने के कारण यह प्राणी ब्रह्माण्ड में मौजूद हर चीज को खाने लगा और अपनी भूख मिटाने लगा, जिससे देवता भयभीत हो गए और संसार को बचाने के लिए ब्रह्मा की शरण ली. तब ब्रह्मा ने अष्ट दिकापालकों (आठ दिशाओं के संरक्षक) को आदेश दिया कि वे उस प्राणी को धरती पर इस प्रकार दबाएं कि उसका सिर उत्तर-पूर्व की ओर और पैर दक्षिण-पश्चिम की ओर रहे.
ब्रह्मा ने वास्तु पुरुष के मध्य भाग पर अधिकार कर लिया और अन्य 44 देवताओं उनके शरीर के विभिन्न अंगों पर अधिकार कर लिया. उस विशालकाय प्राणी ने ब्रह्मा से कहा कि वह तो केवल अपनी भूख मिटा रहा था, इसके लिए उसे क्यों सजा मिल रही. उसका निर्माण ही इस प्रकार से किया गया है, इसमें उसकी क्या गलती है. तब ब्रह्मा ने वास्तु पुरुष को आशीर्वाद दिया कि जब भी धरती पर कोई संरचना बनाई जाएगी, तो वह संरचना तुम्हारा भोजन बन जाएगी. यदि उस भूखंड के मालिक ने तुम्हारी पूजा नहीं की या तुम्हें नाराज किया. यदि वो तुम्हारे अनुसार संरचना करते हैं, तो तुम और तुममें मौजूद 44 देवी-देवता उस घर या संरचना के ऊर्जा क्षेत्रों की रक्षा करोगे.
45 हिस्सों में बांट दिया वास्तु को : इस प्रकार, वास्तु पुरुष को 45 ऊर्जा क्षेत्रों में बांटा गया है, जो वास्तु मंडल कहलाता है. ‘वास्तु पुरुष’ तीन अलग-अलग आकारों से मिलकर बना है, जिसमें वास्तु प्रतीक है विवेक का, पुरुष प्रतीक है शरीर का और मंडल प्रतीक आत्मा का. वास्तु पुरुष के शरीर का प्रत्येक अंग हमारे शरीर के और जीवन के उन हिस्सों को इंगित करता है, जो कि घर में उक्त स्थान पर विद्यमान ऊर्जा से प्रभावित होते हैं. जैसे कि ईशान कोण मस्तिष्क को प्रभावित करता है और यह स्थान वास्तु पुरुष के भी मस्तिष्क के रूप में दिखाया गया है.
मस्तिष्क संवेदनशील होते हैं, इसलिए इस स्थान को घरों में खाली रखा जाना चाहिए. वो स्थान जहाँ पर भारी निर्माण किया जा सकता है, उन स्थानों को वास्तु पुरुष में जांघो या हाथों के प्रतीक के रूप में दिखाया गया है. वास्तु पुरुष की नाभि का स्थान हमारे घर का ब्रह्म स्थान कहलाता है. जब भी किसी भवन का निर्माण होता है, तो उस भूभाग पर 45 उर्जा क्षेत्रों का भी निर्माण हो जाता है, जो एक तरह से वास्तु पुरुष का पूरा शरीर है.
वास्तु पुरुष के अंदर है 32 देवताओं का वास : वास्तु पुरुष के अंदर 32 देवता और 12 राक्षसों का वास है, उन 32 देवताओं, जिन्होंने उसे बाहर से पकड़ा, उनके नाम इस प्रकार से हैं – 1. ईश, 2. पर्जन्य, 3. जयन्त, 4. इन्द्र, 5. सूर्य, 6. सत्य, 7. भृश, 8. आकाश, 9. वायु, 10. पूषा, 11. वितथ, 12. वृहत्क्षत, 13. यम, 14. गन्धर्व, 15. भृङ्गराज, 16. मृग, 17. पितृ, 18. दौवारिक, 19. सुग्रीव, 20. पुष्पदंत, 21. वरुण, 22. असुर, 23. शेष, 24. पापयक्ष्मा, 25. रोग, 26. अहि, 27. मुख्य, 28. भल्लाट, 29. सोम, 30. सर्प 31. अदिति, 32. दिति .
उपरोक्त 32 देव वास्तु की सीमा से बाहर हैं जबकि निम्नांकित 13 देवता सीमा के अन्दर हैं- 1. आप 2. सविता 3. इन्द्रजय, 4. शेष 5. मरीची, 6. सावित्री 7. विवस्वान 8. विष्णु 9 मित्र 10. रुद्र 11. पृथ्वीधर 12. आपवत्स और 13. ब्रह्मा .
आवश्यक है वास्तु : भूमि पूजन से गृह प्रवेश तक, वास्तु पूजा जरूरी पुराणों के अनुसार किसी भी तरह के निर्माण कार्य के मौके पर वास्तु पुरुष की पूजा की जाती है. ऐसा करने से शुभ फल मिलता है. इसलिए सबसे पहले भूमि पूजन के समय वास्तु देवता की पूजा की जाती है. इसके बाद नींव खोदते समय, मुख्य द्वार लगाते समय और गृह प्रवेश के दौरान भी वास्तु पुरुष की पूजा करने का विधान बताया गया है. इससे उस घर में रहने वाले लोग हर तरह की परेशानियों से दूर रहते हैं. उनको हर तरह का सुख और समृद्धि भी मिलती है.