कर्ण के जन्म की पूरी कहानी महाभारत के आदि पर्व में विस्तार से मिलती है. परंतु बहुत से लोग ये नहीं जानते कि कर्ण आखिर सूर्य के पुत्र कैसे कहलाए. कर्ण के सूर्यपुत्र कहलाने के पीछे बड़ी ही रोचक कथा है.
कर्ण को कहते हैं सूत पुत्र
जैसा कि कर्ण को सूत पुत्र भी कहा जाता है. कर्ण को दानवीर कर्ण के नाम से भी जाना जाता है. माना जाता है कि एक शूरसेन नाम का यदुवंशी राजा था. जिसकी एक प्रथा नाम की पुत्री थी. शूरसेन की बुआ का पुत्र कुंतीभोज था. जिसकी कोई संतान नहीं थी. तब राजा शूरसेन ने अपनी पुत्री प्रथा को कुंतीभोज को गोद दे दिया. कुंतीभोज ने प्रथा का नाम कुंती रख दिया और आगे चलकर प्रथा कुंती के नाम से प्रसिद्ध हुई. कुंती बाल्यावस्था से ही ऋषि और मुनियों की सेवा किया करती थी.
ऋषि दुर्वासा ने दिया मंत्र
एक बार ऋषि दुर्वासा ने कुंती के सेवा भाव से प्रसन्न होकर उसे एक मंत्र दिया और कहा कि इस मंत्र से तुम किसी भी देवता का आह्वान कर सकोगी. जो भी देवता इस मंत्र से तुम्हारे सामने प्रकट होंगे. उसी देवता से तुम्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी. तब कुंती ने सोचा कि ऐसा कैसे हो सकता है. उसे बड़ा ही आश्चर्य हुआ और वह एकांत में छुपकर उसी मंत्र का उच्चारण करने लगी और सूर्य देव का आह्वान किया.
ऐसे कर्ण बने सूर्य पुत्र
तब सूर्यदेव कुंती के समक्ष प्रकट हुए और उनके तेज से कुंती ने गर्भ धारण किया और एक बालक उत्पन्न हुआ. उसी बालक का नाम कर्ण था. कर्ण ने जन्म से ही तेजस्वी कुंडल व कवच धारण किए हुए थे. कुंती कुंवारी थी तो समाज में कलंक और बदनामी के भय से उसने कर्ण को टोकरी में छिपाकर नदी में बहा दिया था. इस प्रकार सूर्य के तेज से उत्पन्न होने के कारण कर्ण को सूर्यपुत्र कहा जाता है.